दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 6 मार्च
हरियाणा के शहरी स्थानीय निकायों – नगर निगम, नगर परिषद व नगर पालिका की कमाई घटने जा रही है। स्टाम्प ड्यूटी पर लगने वाली 2 प्रतिशत अतिरिक्त फीस को सरकार ने दो हिस्सों में बांट दिया है। अब निकायों को एक प्रतिशत पैसा मिलेगा और बाकी पैसा सीधा शहरी स्थानीय निकाय मुख्यालय के खाते में जमा होगा। इस पैसे का इस्तेमाल मुख्यालय अपने हिसाब से करेगा। अभी तक यह अधिकार स्थानीय निकायों के पास ही था।
इस प्रस्ताव पर सरकार की मुहर लगने के बाद शुक्रवार को निकाय विभाग ने नोटिफिकेशन भी जारी कर दी। वहीं शराब की बिक्री से प्रति बोतल मिलने वाली एक्साइज ड्यूटी का पैसा भी निकायों को पिछले कई वर्षों से नहीं मिल रहा। शहरों में जमीन की रजिस्ट्री पर सरकार ने दो प्रतिशत एडिशनल स्टाम्प ड्यूटी तय की हुई है। यह पैसा शहरों के विकास के लिए निकायों को देने की योजना थी। महिला के नाम रजिस्ट्री पर 3 प्रतिशत स्टाम्प ड्यूटी तय है, और इसमें 2 प्रतिशत अतिरिक्त जुड़ने के बाद यह 5 प्रतिशत होती है। इसी तरह से पुरुष के नाम रजिस्ट्री होने पर 5 प्लस 2 यानी कुल 7 प्रतिशत स्टाम्प ड्यूटी तय है। अतिरिक्त 2 प्रतिशत स्टाम्प ड्यूटी पहले जो राजस्व विभाग के खाते में ही जाती है। इसके बाद इसे निकायों के खातों में ट्रांसफर किया जाता था। इसके लिए भी लम्बी प्रक्रिया अपनानी पड़ती है।
संबंधित नगर, नगर परिषद व नगर पालिका के अधिकार हर महीने तहसीलों से शहर में होने वाली कुल रजिस्ट्री का रिकार्ड निकलवाते थे। डीसी के माध्यम से होने वाली इस प्रक्रिया के बाद निकायों द्वारा 2 प्रतिशत स्टाम्प ड्यूटी के हिसाब से बिल तैयार किया जाता है। यह बिल निकाय विभाग से होते हुए राजस्व विभाग तक जाते हैं। राजस्व विभाग की क्लीयरेंस के बाद ट्रेजरी के जरिये संबंधित निकायों को पैसा मिलता था।
अब सरकार ने इस सिस्टम में भी बदलाव कर दिया है। अतिरिक्त 2 प्रतिशत स्टाम्प ड्यूटी में से 1 प्रतिशत पैसा सीधे निकायों के खातों में जमा होगा। इसके लिए सभी निगमों, परिषदों व पालिकाओं को पत्र जारी करके उनसे एसबीआई बैंक के अकाउंट नंबर पूछे गए हैं ताकि उनमें पैसा जमा करवाया जा सके। बाकी का एक प्रतिशत पैसा सीधे शहरी स्थानीय निकाय मुख्यालय के खाते में जमा होगा। इस पैसे का इस्तेमाल मुख्यालय द्वारा विकास कार्यों के लिए अपने हिसाब से किया जाएगा।
एक्साइज का पैसा भी नहीं मिल रहा
निकायों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए शराब पर प्रति बोतल के हिसाब से सैस लगाया गया है। यह पैसा भी निकायों को मिलना चाहिए लेकिन पिछले कई वर्षों से पैसा नहीं मिल रहा। एक अनुमान के अनुसार, सामान्य सी पालिका में अकेले शराब बिक्री से सालाना 1 करोड़ से अधिक, परिषदों में 2 से 5 करोड़ और नगर निगमों में 5 से 20 करोड़ रुपये सालाना तक की आय होती है।