लोहारू, 28 मई (निस)
लोहारू कस्बे में एक शताब्दी पूर्व बनाए गए जलाशय-बावड़ी और गोघाट आज बूंद-बूंद को तरस रहे हैं। तपती गर्मी के बीच बेजुबान पशु-पक्षियों की प्यास बुझाने के लिए कोई भी सुध नहीं ले रहा है। आज से 109 वर्ष पूर्व लोहारू-पिलानी रोड पर तत्कालीन नवाब अमीनुद्दीन ने 1100 बीघा गोचर भूमि समाज को दी। इसी गोचर भूमि में नवाब विला के पास सामाजिक लोगों का साथ लेकर राजस्थान के नजदीकी गांव काजड़ा के सेठ हरनारायणदास ईश्वरदास ने 1972 में विशाल गोघाट तथा तालाब बनवाए थे। इन जलाशयों के शिलापट्ट इस बात के गवाह हैं कि एक शताब्दी पूर्व के हमारे पूर्वज अपने पर्यावरण और इको सिस्टम को लेकर कितने जागरूक थे। करीब 50 फीट चौड़े तथा 100 फीट लंबे गोघाट को इस तरीके से बनवाया गया है कि इसमें बछड़ा और ऊंट भी आसानी से पानी पी सकता है।
पक्षियों के लिए भी अलग से व्यवस्था बनवाई हुई है। बुजुर्गों ने बताया कि यह 1100 बीघा गोचर भूमि प्राकृतिक वृक्षों कैर, जाल, देशी कीकर तथा विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों आदि से बहुत गहरी थी। यहां हिरण, नीलगाय, ऊंट, खरगोश, लोमड़ी, गाय आदि वन्य जीव बहुत होते थे। ये सब वन्य जीव यहीं आकर पानी पीते थे। अब सूखी हालत में इन जलाशयों को देखकर वन्य जीव-जन्तु आज के इनसान की इंसानियत पर गहरा सवालिया निशान लगा रहे हैं।
इस तालाब का निर्माण इस तरीके से कराया गया था कि यह आसपास के जोहड़ों से जुड़ा हुआ था। बारिश के मौसम में पानी अपने आप ही जोहड़ों से तालाब व गोघाट में आ जाता था।
लेकिन अब तो लोहारू के 10 किमी की परिधि में कई जोहड़ ऐसे बचे ही नहीं कि वहां बारिश का पानी एकत्रित होता हो।
पर्यावरण प्रेमी रविंद्र कस्वां, राकेश आर्य, रामअवतार आर्य, धनपत सैनी, संजय खंडेलवाल, जगदीश जायलवाल, प्रेम सोनी आदि ने मांग की कि इन जलाशयों को नहरी पानी से जोड़ा जाए ताकि यह हमेशा कामयाब हो सके।
नगरपालिका के निवर्तमान प्रधान दौलतराम सोलंकी ने बताया कि इस तालाब के जीर्णोंद्धार का पूरा प्लान सरकार को भेजा हुआ है।
उन्होंने कहा कि आने वाले वक्त में सरकार इसे बेहतरीन रमणीक स्थल बनाएगी।