दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 22 मई
हरियाणा में सत्ताधारी भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार के लिए करीब चार दर्जन निकायों – नगर परिषद व नगर पालिका के चुनाव बड़ी परीक्षा से कम नहीं हैं। इन चुनावों में जीत के लिए सरकार काे पूरा जोर लगाना होगा। इस समय राजनीतिक हालात काफी बदले हुए हैं। डेढ़ साल पहले हुए सात निकायों के चुनावों में गठबंधन को तगड़ा झटका लग चुका है। शहरों में प्रभावशाली माने जाने वाली भाजपा को भी मेयर चुनावों में पराजय झेलनी पड़ी थी।
माना जा रहा है कि पुराने नतीजों को ध्यान में रखकर ही भाजपा इस बार चुनावी रणनीति तय करेगी। ये चुनाव सरकार के उस फैसले के बाद और भी अहम हो चुके हैं, जिसमें सरकार ने निगमों में मेयर, नगर परिषद में चेयरमैन और नगर पालिकाओं में अध्यक्ष के डायरेक्ट चुनाव करवाने का निर्णय लिया था। डायरेक्ट चुनावों के बाद ये चुनाव विधायक के चुनाव से भी बड़े और खर्चीले हो गए हैं। बेशक, डायरेक्ट चुनाव के बाद जोड़-तोड़ और सैटिंग का खेल जरूर खत्म हो गया है।
2019 में भाजपा ने जजपा के सहयोग से लगातार दूसरी बार सरकार बनाई। इसके ठीक एक साल बाद नवंबर-दिसंबर, 2020 में हुए तीन नगर निगमों – पंचकूला, अम्बाला सिटी व सोनीपत, रेवाड़ी नगर परिषद व तीन नगर पालिकाओं – सांपला, उकलाना व धारूहेड़ा में दोनों पार्टियों को बड़ा नुकसान हुआ था। रेवाड़ी नगर परिषद में चेयरमैन और तीनों निगमों में मेयर के चुनावों में भाजपा ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। रेवाड़ी नगर परिषद व पंचकूला निगम में मेयर का चुनाव भाजपा जीती लेकिन सोनीपत नगर निगम में निखिल मदान कांग्रेस के मेयर बने। अम्बाला सिटी में पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा की पत्नी शक्ति रानी मेयर बनीं। तीनों पालिकाओं में अध्यक्ष पद का चुनाव जजपा ने लड़ा था और तीनों में ही निर्दलीय प्रत्याशी अध्यक्ष बने। पंचकूला निगम में मेयर का चुनाव कुलभूषण गोयल ने जीता। उनके चुनाव जीतने में भी भाजपा से अधिक उनकी खुद की अधिक भूमिका रही।
इस दौरान दो विधानसभा हलकों – बरोदा व ऐलनाबाद में भी गठबंधन को हार का ही सामना करना पड़ा। बरोदा में कांग्रेस के इंदूराज नरवाल विधायक बने और ऐलनाबाद से अभय सिंह चौटाला अपनी सीट को बचाने में कामयाब रहे। करीब डेढ़ साल बाद अब एक बार फिर भाजपा-जजपा गठबंधन के सामने चुनौती है। बहरहाल, सोमवार को निकाय चुनावों का ऐलान होने जा रहा है। हालांकि भाजपा निकाय चुनावों की तैयारियों में कई माह से लगी है, पार्टी की रणनीति क्या होगी, यह चुनाव की घोषणा के बाद सामने आ सकता है।
कांग्रेस में हुड्डा ही निर्णायक, सिंबल पर लड़ना मुश्किल नहीं
डेढ़ साल पहले जब निकाय चुनाव हुए तो कांग्रेस में जमकर घमासान था और गुटबाजी चरम पर थी। बेशक, दिग्गज नेताओं के बीच क्लेश अभी भी बना हुआ है, लेकिन अब पूर्व सीएम व विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा को पार्टी हाईकमान ‘फ्री-हैंड’ दे चुका है, उनकी सिफारिश पर चौ़ उदयभान को प्रदेशाध्यक्ष बनाया जा चुका है। ऐसे में अब हुड्डा चाहेंगे तो निकाय चुनाव भी सिम्बल पर लड़ना मुश्किल नहीं होगा। इतना जरूर है कि जितनी बड़ी परीक्षा भाजपा-जजपा सरकार की है, उतनी ही हुड्डा की भी होने वाली है।
इस बार आप भी होगी मैदान में
निकायों के चुनाव में आमतौर पर भाजपा के सामने सिम्बल पर कम ही पार्टियां होती थीं, लेकिन तीन निगमों में कांग्रेस द्वारा भी सिम्बल पर प्रत्याशी उतारने के बाद मुकाबला रोचक हो गया। इस बार के चुनाव में आम आदमी पार्टी भी मैदान में आ सकती है। पंजाब में जीत के बाद हरियाणा मामलों के प्रभारी सुशील गुप्ता निकाय चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। ऐसे में अगर अब आप मैदान में आती है तो वोटों का विभाजन भी होगा और चुनाव दिलचस्प हो जाएंगे।