भिवानी, 12 नवंबर (हप्र)
मन की वृति बड़ी तेज है। मन के फेर से कोई नहीं बच पाया। इसने बड़े-बड़े महारथियों को पटक दिया। मन की गति से जीव को संतों का सत्संग ही बचा सकता है। यह सत्संग वचन परमसंत हुजूर कंवर साहेब महाराज ने दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में साध संगत के समक्ष फरमाया। गुरु महाराज जी ने कहा कि रूह ने इस जगत में आकर अनेक बंधन खुद पर बांध लिए। कहीं ये रिश्ते नातों के बंधन में बंधी तो कहीं ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी के। इन बंधनों से छुटकारा केवल सच्चा संत ही दिला सकता है। जब तक पूरे रहबर की शरणाई नहीं मिलती तब तक ये मन की घाटियों में भटकती फिरती है। ये घाटियां भी अनेक हैं। गुरु महाराज ने फरमाया कि पूरा जग माँगनहारा है अगर कोई दाता है तो केवल संत सतगुरु है। उन्होंने कहा कि इस जग को उसी ने जीता है, जिसने अपने मन को वश में करना सीख लिया है। उन्होंने मन को कव्वा वृति का बताते हुए कहा कि जिस प्रकार कव्वे को कितना ही साध लो लेकिन मौका लगते ही वो अपनी चोंच को भिष्टा में ही मारेगा। उसी प्रकार मन को आप कितना ही साध लो लेकिन थोड़ी सी ढील मिलते ही वो अपनी ढोंगी चाल पर आ जाता है।