भिवानी, 19 मई (हप्र)
परमसंत सतगुरु कंवर साहेब महाराज ने दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाया कि घर और मन दोनों में शांति जरूरी है। घर में शांति तभी आएगी जब मन शांत होगा। उन्होंने कहा कि दो ही बातें रह जाती हैं, एक गीत और दूसरी भीत। यही गीत और भीत यानी दीवारें आपके जाने के बाद भी आपको अमर बना कर रखती हैं। युग बदलने पर भी आज महापुरुषों के आदर्श जिंदा हैं। जो परोपकार और परमार्थ का रास्ता स्थापित कर गए गीत सदा उन्हीं के गाये जाते हैं। गुरु महाराज ने फरमाया कि गुरु नाम ज्ञान है। ज्ञान अच्छे और बुरे में फर्क करना है। गुरु अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाता है। ज्ञान है भक्ति की समझ। ज्ञान है परमात्मा के भेद को जान लेना। इंद्री भोग में व्यस्त इंसान इसी तक सीमित है, उसे नाम रस के आनंद का संज्ञान ही नहीं है। लेकिन जब नाम का रस आना शुरू हो जाता है तब बाकी रस फीके पड़ जाते हैं। उन्होंने फरमाया कि सत्संग की बुराई वही करता है जिसकी स्वयं की बुराई नहीं छुटी। नाच ना जाने आंगन टेढ़ा की तर्ज पर ऐसे अज्ञानी लोग सतगुरु सत्संग और सतनाम में खोट निकालते हैं। आपके कर्म आपको आगे बढ़ने नहीं देते।
हाथों पर सरसों हरी नहीं होती। संयम और धैर्य भक्ति के आभूषण हैं। पहले अपनी रहनी सुधारो करनी स्वत: सकारात्मक हो जाएगी। उन्होंने कहा कि परमात्मा सबका ख्याल रखता है। उसकी करोड़ों आंखें और हाथ हैं। हम भेदभाव करते हैं, परमात्मा नहीं। समय की कीमत पहचानो जो जन्मा है, वो मरेगा जरूर। इसलिए भक्ति करो ताकि जन्म मरण के चक्कर से छुटकारा मिल सके।