प्रदीप साहू/हप्र
चरखी दादरी, 28 नवंबर
किसान परिवार की तीन पीढ़ियों को करीब 24 वर्ष तक मालामाल करने वाली भैंस के निधन पर जहां विधि विधान से उसका क्रिया कर्म किया गया, वहीं उसकी मौत के बाद न केवल अस्थियां विसर्जित की बल्कि सत्रहवीं की भी रस्में निभाई। भैंस को “लाडली” के नाम से पुकारने वाले किसान परिवार द्वारा मृत्युभोज का भी आयोजन किया गया।
इस मौके पर पूरे गांव को दावत दी गई और पूरे विधि-विधान से सभी ग्रामीणों ने भैंस को श्रद्धांजलि दी. यह अनूठी सत्रहवीं पूरे इलाके में चर्चा का विषय बनी हुई है। इस मौके पर बाकायदा श्रद्धांजलि सभा का भी आयोजन किया गया। मृत्युभोज के लिए किसान ने बकायदा नाते-रिश्तेदारों के अलावा ग्रामीणों को आमंत्रण भी भेजा और लोगों को देशी घी में बने पकवान और लजीज खाना भी परोसा गया।
28 साल पहले घर पर लायी गयी थी ‘लाडली’
किसान सुखबीर सिंह के पिता रिसाल सिंह करीब 28 वर्ष पहले एक भैंस लेकर आए थे। जिससे पैदा हुई कटिया का पालन-पोषण किया और किसान के घर भैंस ने लगातार 24 बार कटिया को जन्म देकर रिकार्ड बनाया। “लाडली” भैंस का परिवार की तीन पीढ़ियों ने दूध पिया और उससे जन्म लेने वाले बच्चों को तैयार करते हुए काफी पैसा भी कमाया। पिछले दिनों अपनी पालतू भैंस का निधन पर होने पर परिवार ने पूरा शोक मनाते हुए विधि विधान से सभी क्रियाकर्म करते हुए अस्थियां भी विसर्जित की। भैंस की सत्रहवीं पर किसान परिवार ने अपने घर पर मृत्युभोज का ठीक उसी तरह आयोजन किया, जिस तरह परिवार के किसी सदस्य के मरने पर किया जाता है।
मानते थे परिवार का सदस्य
किसान सुखबीर सिंह ने बताया कि वे अपनी भैंस को “लाडली” के नाम से पुकारते थे और उसे परिवार का सदस्य मानते थे। भैंस से परिवार के लोगों को विशेष लगाव था। उनके मुताबिक करीब तीन दशक से भैंस ने परिवार का पोषण किया इसलिये किसान सुखबीर ने बताया कि भैंस के मृत्युभोज में चावल, लड्डू, जलेबी, गुलाब जामुन उन्होंने देसी घी में ही बनवाये थे। किसान के अनुसार आसपसा के इलाके के लोगों के अलावा करीब चार सौ नाते-रिश्तेदार भैंस के मृत्युभोज कार्यक्रम में शामिल हुए।