जसमेर मलिक/हप्र
जींद, 3 नवंबर
परिंदे भी प्यार और सुरक्षा के भूखे हैं। ऐसे बेजुबान पक्षियों को बचाने में जींद का कालवन गांव दूसरे गांवों को राह दिखा रहा है। इस गांव को जींद के वन्य प्राणी विभाग ने परिंदों की सुरक्षा के मामले में रोल मॉडल बनाया है। जींद का वन्य प्राणी विभाग कालवन गांव में पक्षी अभयारण्य विकसित करने की योजना पर गंभीरता से विचार कर रहा है।
टोहाना जिले की सीमा से लगते जींद के कालवन गांव की बनिया पाना की 27 एकड़ जमीन में प्राकृतिक झील बनी हुई है। जींद जिले में सबसे ज्यादा प्रवासी पक्षी कालवन गांव की इस झील में आते हैं। कालवन गांव के लोग सर्दी में प्रवासी पक्षियों के स्वागत के लिए फिर से तैयार हैं। वन विभाग इस प्राकृतिक झील को पक्षी अभयारण्य के रूप में विकसित करने की योजना पर गंभीरता से विचार कर रहा है। जींद के कालवन गांव में वन्य प्राणी विभाग ने प्राकृतिक झील के आसपास परिंदों को बचाने के लिए बोर्ड लगाए हुए हैं। इन पर बेजुबान हैं पक्षी बेचारे, लेकिन परम मित्र हमारे। हम सब ने ठाना है, कालवन की तरफ पक्षियों को बचाना है। पंछी वहीं बार-बार आते हैं, जहां प्यार और सुरक्षा पाते हैं, जैसे स्लोगन लिखे गए हैं। विभाग के इस तरह के स्लोगन लोगों को बेजुबान परिंदों को बचाने और उन्हें सुरक्षा तथा प्यार देने का संदेश दे रहे हैं।
जींद में वन्य प्राणी विभाग के इंस्पेक्टर मनबीर सिंह का कहना है कि कालवन की इस प्राकृतिक झील को पक्षी अभयारण्य के रूप में विकसित करने के लिए ग्राम पंचायत से प्रस्ताव मांगा गया है। प्रस्ताव मिलते ही इस झील को पक्षी अभ्यारण के रूप में विकसित करने की योजना पर कदम आगे बढ़ाए जाएंगे।
प्रवासी पक्षियों का जींद में सबसे बड़ा डेरा
साइबेरिया और दूसरे ठंडे देशों से हर साल भारत में सर्दियों में आने वाले प्रवासी पक्षियों का जींद जिले में सबसे बड़ा डेरा गांव की 27 एकड़ में फैली यह झील है। इस झील में 50 से ज्यादा प्रजातियों के प्रवासी पक्षी डेरा डालते हैं। यूं तो साल के 12 महीने कालवन की झील में परिंदे डेरा डाले रहते हैं, लेकिन सर्दी में प्रवासी पक्षी आ जाने से झील पक्षियों से पूरी तरह भर जाती है। इस झील में बड़े-बड़े पेड़ भी हैं , जिन पर परिंदे सुरक्षा के लिए अपना डेरा डाल देते हैं।