प्रदीप साहू/निस
चरखी दादरी, 6 अप्रैल
ओडिशा के राज्यपाल प्रो. गणेशी लाल वैसे तो हरियाणा से हैं, करीब 4 साल से ओडिशा में प्रवास करते हुए वहां की उड़िया बोली को भी अपनी दिनचर्या में आत्मसात किया है। हिंदी भाषा पर विशेष पकड़ रखने वाले 81 वर्षीय प्रो. गणेशी लाल ने ओडिशा में रहते हुए वहां की उड़िया बोली सीख ली है। अब उड़िया भाषा में हरियाणवी लोकगीत ओडिशा के लोगों को सुना भी रहे हैं।
राज्यपाल प्रो. गणेशी लाल चरखी दादरी में एक कार्यक्रम में पहुंचे थे और उन्होंने ‘दैनिक ट्रिब्यून’ को अपने मन की बात की। चरखी दादरी में अपने पुराने दोस्तों से मिले और पुरानी यादें ताजा की।
प्रो. गणेशी लाल ने बताया कि वे उन्होंने अपने जीवन में 27 साल गणित प्राध्यापक के रूप में सेवाएं दीं। बाद में राजनीति में आए और देश-प्रदेश की राजनीति में कई अहम पदों पर कार्य कर जनेसवा की। ताउम्र गणित पढ़ाया और अब उड़िया भाषा सीखी है। वे श्याम बाबा के भक्त हैं और अकसर भजन संकीर्तन में स्वयं भी भजन गीत गाते हैं।
बता दें कि प्रो. गणेशी लाल की गिनती ओडिशा के एक्टिव गवर्नर्स में होती है। वे वहां के गणमान्य लोगों के साथ-साथ आम लोगों से भी मिलते रहते हैं। वहां की संस्कृति को नजदीक से जान रहे हैं और सीख रहे हैं। ओडिशावासी भी उनके स्वभाव व व्यवहार के कायल हैं।
ओडिशा की संस्कृति जानने का मिला अवसर
राज्यपाल ने बताया कि वे पिछले चार साल से ओडिशा में रह रहे हैं। वहां के परिवेश, संस्कृति को नजदीक से जानने का अवसर मिला है। ओडिशा के लोग अद्भुत हैं और गौरवशाली संस्कृति है। उड़िया बोली सीख कर गीत के माध्यम से अपने मनोभावों को प्रकट किया है। ओडिशा प्रदेश वाकई अद्भुत हैं और लोग भी मिलनसार हैं।
दादरी को बताया अपना घर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह हमें वसुधैव कुटुंबकम की भावना रखकर अपने राष्ट्र की सेवा करनी चाहिए। सबका साथ, सबका विकास जैसे मूलमंत्र से ही हम भारत को विश्व शिरोमणि बना सकते हैं। यह बात ओडिशा के राज्यपाल प्रो. गणेशीलाल ने बुधवार को पूर्व चेयरमैन राजेंद्र सांगवान के निवास पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही। यहां व्यक्तिगत कार्यक्रम में आए प्रो. गणेशीलाल ने कहा कि संघ के कार्यक्रमों में अकसर मेरा दादरी आना होता था। यहां अरविंद मित्तल, जीतराम गुप्ता, राजेंद्र आदि अनेक ऐसे घर हैं, जो मेरे परिवार की तरह हैं। जननी जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान होती है। चरखी दादरी आकर मैं बहुत अपनत्व महसूस करता हूं। यह नगरी मेरे घर- परिवार की तरह है।