भिवानी, 28 मई (हप्र)
हरियाणा के ग्वार उत्पादक क्षेत्रों में ग्वार का उखेड़ा रोग अभी एक प्रमुख समस्या बना हुआ है। यद्यपि बहुत से किसान बीज उपचार द्वारा इस रोग की सफल रोकथाम भी कर रहे हैं। उखेड़ा रोग, जिसे जड़-गलन रोग भी कहते हैं, एक फंगस के कारण होता है, जो जमीन में रहती है। जैसे ही फसल बोई जाती है, यह फंगस जड़ों पर आक्रमण कर देती है। इसके प्रकोप से जड़ें गल जाती हैं तथा पौधों की खुराक व पानी बाधित हो जाते हैं। परिणामस्वरूप, पौधे छोटे रह जाते हैं तथा पीले होकर सूख जाते हैं। बिजाई से पहले बीज पर कार्बंडाजिम 50 प्रतिशत नामक फंफूदनाशी से उपचार करने से लगभग 10 प्रतिशत पौधे इसके प्रकोप से बच जाते हैं। उक्त विचार चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कीट विज्ञान विभाग से सेवानिवृत्त डा. आरके सैनी ने व्यक्त किए। वह कृषि एवं किसान कल्याण विभाग तथा हिंदुस्तान गम एंड कैमिकल्स भिवानी द्वारा खंड लोहारू के गांव नकीपुर में आयोजित कृषि शिविर में किसानों को संबोधित कर रहे थे।
शिविर में ग्वार फसल पर साहित्य तथा बीज उपचार की दवा के सैंपल भी बांटे गए। विषय विशेषज्ञ डा. संजीव कुमार ने विभिन्न खरीफ फसलों, विशेषकर नरमा कपास की अच्छी पैदावार के लिए आवश्यक सुझाव दिए। इस अवसर पर नरमा कपास की गुलाबी सुंडी की रोकथाम के उपायों पर भी विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई।
शिविर में सरपंच प्रतिनिधि ताराचंद के अलावा अनिल कुमार, विकास, सुरेंद्र सिंह, ओमप्रकाश, सोमबीर, महेंद्र, पालाराम, गजेंद्र, महेश, मुकेश कुमार, कुलदीप, सचिन, सुरेश, राजवीर सिंह, जगदीश सहित 70 किसानों ने भाग लिया।