कैथल स्थित कैलरम गांव के हर्बल पार्क में जर्जर हालत में खड़ा शिलापट्ट और आसपास उगी झाड़ियां। -हप्र
ललित शर्मा/हप्र
कैथल, 8 जून
गांव कैलरम में 5 एकड़ में बना हर्बल पार्क प्रदेशभर के लिए नजीर बनने की बजाये सरकार लापरवाही का नमूना बनकर रह गया है। इस हर्बल पार्क के माध्यम से सपना देखा गया था कि इससे किसानों को अच्छी आमदनी होगी, लोगों को बीमारियों से छुटकारा दिलाने वाली जड़ी-बूटियां मिलेगी, प्राकृतिक व औषधियों से शुद्ध वातावरण मिलेगा, लेकिन सरकारी कारगुजारियों के चलते इस सपने का भी वही हाल हुआ है जो अकसर अन्य योजनाओं का हो जाता है। इसके साथ ही यह सपना भी टूट गया।
एलोवीरा के पौधे सूख गये, बेलपत्र मुरझा गये, तुलसी, सौफ व इलाइची के पौधों को तीखी धूप ने लील लिया। पानी के अभाव में घास भी अपनी अंतिम सांसें ले रही है। लंबे समय से यहां किसी कर्मचारी या अधिकारी ने देखा ही नहीं। यही हाल हार्बल पार्क के बीचोंबीच बने झूलों का भी है। यहां झूले टूट चुके हैं और गांव का कोई बच्चा यहां नहीं आता।
हर्बल पार्क का निर्माण वर्ष-2018 में 24 लाख रुपए की लागत से पंचायत विभाग की पांच एकड़ जमीन पर किया गया था। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत गांव कैलरम में बनाये पार्क का उद्घाटन पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने किया था, मगर विभागीय लापरवाही व वन विभाग की अनदेखी के कारण हर्बल पार्क बदहाली के आंसू बहा रहा है। ये हर्बल पार्क सरकार द्वारा गांव को दी गई बेहद शानदार सौगात थी। पार्क एक और प्रशासनिक अनदेखी का शिकार है, वहीं ग्रामीण भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। हर्बल पार्क के पास अज्ञात लोगों द्वारा आग लगा दी गई। जिससे बचे-कुचे सूखे व ठूंठ हुए औषधीय पौधों को अपनी चपेट में ले गई। सबमर्सिबल से जुड़ी तारों से लेकर अन्य सामान का भी कुछ अता-पता नहीं है। पार्क में पगडंडियों को आधा अधूरा बनाकर छोड़ रखा है। पार्क में न तो स्ट्रीट लाइट है और न ही बैठने लायक कोई ढंग की जगह है। पार्क की चारदीवारी नहीं है लेकिन चारों ओर खींची गई तारें भी कई जगहों से टूट चुकी है।
हमें फिलहाल इस बारे में पता नहीं है। अब मामला हमारे संज्ञान में आ गया है। शीघ्र ही वन विभाग के साथ मिलकर हर्बल पार्क की साफ सफाई व देख-रेख का बीड़ा उठाया जाएगा।
-सीता देवी, सरपंच, कैलरम
दाद, खाज, खुजली दे रहा पार्क
दाद, खाज, खुजली को ठीक करने वाले औषधीय पौधों की बजाय हर्बल पार्क में खाज-खुजली की बीमारी फैलाने वाली कांग्रेसी घास व झाड़ियां उगी हुई है। पानी के सोर्स का भी कुछ अता-पता नहीं है। लाखों की लागत से बने हर्बल पार्क से ग्रामीणों को उम्मीद जगी थी कि वे हर दिन सैर करेंगे, इसकी औषधियों का उन्हें फायदा होगा लेकिन ग्रामीणों की सारी उम्मीदें धरी की धरी रह गई। गांव के जिस वजीर नगर रोड पर ये पार्क मौजूद है वहां तक आने के लिए ही पूरा रास्ता कच्चा है।
हमारे संज्ञान में हर्बल पार्क की अनदेखी का मामला अभी दैनिक ट्रिब्यून के माध्यम से ही आया है। सोमवार को पार्क का निरीक्षण करवाकर इस मामले की जांच करेंगे। इसके बाद आगे की कार्रवाई करते हुए हार्बल पार्क की देखरेख की जाएगी।
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।