सुरेंद्र मेहता/हप्र
यमुनानगर, 20 अक्तूबर
यमुनानगर में हुए आरसी फर्जीवाड़ा मामले में पुलिस द्वारा जब्त किए गए वाहनों को छुड़ाने के लिए वाहन चालक पिछले कई महीनों से दफ्तरों के चक्कर काटने पर मजबूर हैं। हरियाणा के कई जिलों के प्रभावित वाहन मालिक एसआईटी के सदस्य डीएसपी रादौर रजत गुलिया से मिले और उन्हें उनके वाहन वापस दिए जाने की गुहार लगाई।
बता दें कि करीब 2200 के करीब गाड़ियों की फर्जी आरसी तैयार की गई थी। सोनीपत, करनाल, कैथल व अम्बाला से पहुंचे इन वाहन मालिकों राकेश डाचर, राकेश लांबा, सुरेश, राजिंदर ने बताया कि आरसी फर्जीवाड़ा मामले में उनकी गाड़ियों को पुलिस द्वारा जब्त किया था, जिन्हें आज तक छोड़ा नहीं जा रहा है, जिसके लिए वे कई महीनों से अधिकारियों के चक्कर लगाने पर मजबूर हैं। उन्होंने कहा कि आरसी फर्जीवाड़ा कर संबंधित अधिकारियों ने तो अपनी जेब गर्म कर ली, लेकिन अधिकारियों के इस भ्रष्टाचार को भुगतना उन्हें पड़ रहा है। उन्होंने प्रशासन से मांग करते हुए कहा की उन्हें जल्द उनकी गाड़ियां दी जाएं, ताकि उनकी परेशानी दूर हो। इस बारे एसआईटी के सदस्य डीएसपी रादौर रजत गुलिया ने बताया कि आरसी फर्जीवाड़ा मामले में कब्जे में ली गई गाड़ियों के मालिक उनसे मिले थे कि उन्हें उनकी गाड़ी कैसे मिलेगी। इसके लिए वे जगाधरी एसडीएम को इस संबंध में आरसी कैंसल करने के लिए पत्र भेजेंगे। उसके बाद एसडीएम जगाधरी की ओर से जैसे निर्देश प्राप्त होंगे कार्रवाई की जाएगी।
सिरसा पुलिस ने किया था पर्दाफाश
गाड़ियों के फर्जी रजिस्ट्रेशन का खेल उस समय सामने आया जब सिरसा पुलिस ने एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया जो यमुनानगर रजिस्ट्रेशन कार्यालय से गाड़ियां रजिस्टर्ड करवा कर बेचता था। धीरे-धीरे परतें खुलने लगी और पता चला कि यमुनानगर के बिलासपुर का वाहन रजिस्ट्रेशन कार्यालय भी इसमें शामिल है।
मिलिट्री के वाहन दिखाकर लगाते थे चूना
वाहनों के फर्जी रजिस्ट्रेशन घोटाले में दिन प्रतिदिन नयी बातें सामने आ रही हैं। रजिस्ट्रेशन के समय वाहनों को मिलिट्री वाहन दिखाया जाता था, जिसमें एनओसी की जरूरत नहीं पड़ती थी और वाहन का चेसीज नंबर भी बदल दिया जाता था। जिसके चलते वाहन का रजिस्ट्रेशन हो जाता था। इससे न सिर्फ हरियाणा सरकार को राजस्व का नुकसान हुआ बल्कि जिस राज्य से गाड़ियां ली जाती थी वहां भी राजस्व का नुकसान हुआ है। इसके अलावा गाड़ी की कीमत भी कम दिखाई जाती थी। ऐसे वाहन भी एजेंटों के पास थे जिन्होंने दूसरे राज्यों में सरकार को पैसा देना था। इस मामले में गठित एसआईटी बहुत तेजी से जांच कर रही है। यह लोग फाइनेंस कंपनियों के द्वारा नीलाम की गई गाड़ियों को खरीदते थे और उनके फर्जी बिल बनाए जाते थे।