- जजपा विधायक रामकुमार गौतम खुलकर आए कांग्रेस के समर्थन में
- जोगीराम सिहाग और रामकरण काला ने सीट से खड़े होकर जताई नाराज़गी
- बदला जाएगा मुख्य सचिव का पत्र, रेस्ट हाउस में अफसरों को बुला सकेंगे विधायक
- जिलों के अधिकारियों की बैठकें लेने पर लगी रहेगी पहले की तरह रोेक
ट्रिब्यून न्यूज सर्विस
चंडीगढ़, 19 दिसंबर
विपक्षी दल कांग्रेस के विधायक मंगलवार को विधानसभा में मान-सम्मान और प्रोटोकॉल के लिए सरकार से लड़ते नज़र आए। कांग्रेसियों ने भाजपा विधायकों का भी समर्थन मांगा, लेकिन एक भी विधायक ने उनकी बात का समर्थन नहीं किया। अलबत्ता जजपा के नारनौंद से विधायक रामकुमार गौतम खुलकर कांग्रेस के साथ खड़े नज़र आए। वहीं बरवाला विधायक जोगीराम सिहाग और शाहबाद विधायक रामकरण काला बोले तो कुछ नहीं लेकिन वे खड़े होकर अपना समर्थन देते दिखे।
दरअसल, सरकार के निर्देशों के बाद 25 अगस्त, 2023 को मुख्य सचिव की ओर से सभी जिलों के अधिकारियों को पत्र जारी किया था। इस पत्र में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि विधायक जिलों के अधिकारियों की बैठकें नहीं बुला सकेंगे। उन्हें अगर विकास कार्यों या किसी भी मुद्दे के लिए अधिकारियों से बात करनी है तो वे उनके कार्यालयों में जा सकते हैं। इस फैसले से आहत विधायकों की ओर से रोहतक विधायक भारत भूषण बतरा ने सदन में यह मुद्दा उठाया।
उन्होंने कहा कि इस तरह का फैसला विधायकों के मान-सम्मान के साथ खिलवाड़ है। बेशक, विधायक जनता दरबार बुलाकर अधिकारियों को नहीं बुला सकते, लेकिन विकास परियोजनाओं को लेकर उन्हें बैठकें लेने के अधिकार हैं। स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता ने कहा, यह प्रशासनिक मामला है। विवाद बढ़ा तो सीएम मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि विधायक जिलों के डीसी-एसपी से कभी भी उनके कार्यालयों में मुलाकात कर सकते हैं।
पूर्व सीएम और विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा, अगर किसी पटवारी से काम है तो विधायकों को उसके दफ्तर में जाना होगा। हुड्डा ने सलाह दी कि रेस्ट हाउस में अधिकारियों को बुलाने के नियम होने चाहिएं। विवाद बढ़ने के बाद सीएम ने हुड्डा के सुझाव को स्वीकर करते हुए कहा कि विधायक रेस्ट हाउस में अधिकारियों के साथ बैठक कर सकेंगे। अहम बात यह है कि यह बैठक विभागों की नहीं होगी बल्कि व्यक्तिगत रूप से अधिकारी के साथ होगी।
इससे पहले सीएम ने कहा, मंत्रियों और अधिकारियों के पास एग्जक्यूटिव पावर्स हैं। विधायकों के पास ये अधिकार नहीं हैं। वे चुने हुए प्रतिनिधि हैं और किसी भी अधिकारी से मिल सकते हैं, लेकिन एमएलए मीटिंग नहीं बुला सकते। इसी दौरान जजपा विधायक रामकुमार गौतम ने सीएम की ओर इशारा करते हुए कहा, कभी न कभी सीएम भी एमएलए ही रह सकते हैं। मंत्री भी केवल विधायक रह सकते हैं। इनका (मंत्रियों) का नंबर लग गया, म्हारा नहीं लग्या। यह फैसला विधायकों की बेइज्ज्ती है। स्थिति यह है कि जिलों के अधिकारी विधायकों का फोन तक नहीं उठाते।