बाबैन, 28 जुलाई (निस)
प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने हरियाणा सरस्वती हेरिटेज बोर्ड का गठन किया और जबसे धुम्मन सिंह किरमच को सरकार द्वारा हरियाणा सरस्वती हेरिटेज बोर्ड का डिप्टी चेयरमैन बनाया है, तब से लेकर आज तक सरस्वती पर चार चांद लगे हैं और मुख्यमंत्री मनोहर लाल व धुम्मन सिंह किरमच के प्रयासों की बदौलत सरस्वती नदी दोबारा धरती पर जीवित हो गई है। इनके प्रयासों अब सरस्वती नदी आज धरती के पटल पर तेजी से बहती आम दिखाई दे रही है। डिप्टी चेयरमैन धुम्मन सिंह किरमच का कहना है कि सरस्वती नदी न केवल करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है बल्कि इस नदी के साथ लगने वाले क्षेत्र के सभी किसानों के लिए यह नदी वरदान साबित हुई है। जब से सरस्वती में जल आया है तभी से यमुनानगर, कुरुक्षेत्र व कैथल में सरस्वती नदी के नजदीक पड़ने वाले 10 किलोमीटर के एरिया का वाटर लेवल काफी हद तक बढ़ा है। उन्होंने कहा है कि अब सरस्वती में चार से छह महीने तक पानी बहता है, जिसकी वजह से किसानों के चेहरे खिले हैं।
धुम्मन सिंह किरमच बताया है कि देखने में आया कि साढ़ौरा, बिलासपुर, रादौर, लाडवा, थानेसर, पिहोवा, गुहला, कैथल, जींद, फतेहाबाद व सिरसा के किसानों का क्षेत्र जो डार्क जोन में चला गया था, अब वह धीरे-धीरे ऊपर आ रहा है, जिसका प्रमाण खुद लोगों ने अपनी बात बता कर किया है। गांव ईशरगढ़ के सरपंच गुरुदत्त शर्मा का कहना है कि दो सीजन में पानी आने से क्षेत्र में वाटर लेवल बढ़ा है। यह सब डिप्टी चेयरमैन की मेहनत का परिणाम है। सरपंच गुरुदत्त शर्मा ने बताया है कि दो साल में किसानों ने ट्यूबवेल के बोर में कोई भी पाइप नहीं डाला। बोड़ला गांव के प्रदीप, कोल्हापुर के हरमेश सैनी रामपुरा के सतबीर, बरगढ़ जाटान के धर्मवीर, ज्ञानीराम भैनी गांव मंगोली से सतवीर व् वीरेंद्र,बड़तोली से पवन राणा, झिवरेहडि से बलकार आदि किसानों ने बताया कि जब से सरस्वती में पानी आया है तब से लेकर आज तक वाटर लेवल धरती का बढ़ा है। सिंचाई विशेषज्ञ मनीष बब्बर का कहना है कि सरस्वती के 10 किलोमीटर के दायरे में भूमिगत जल का फायदा सरस्वती से किसानों को मिलता है। इसके अलावा सरस्वती के आस-पास बड़े-बड़े सरोवरों को स्थापित किया जा रहा है। एक बोहली में बनकर तैयार हो गया है और अकेले इस सरोवर की वजह से 8 करोड़ लीटर पानी इस क्षेत्र में रिचार्ज होगा। धुम्मन ने लोगों से निवेदन किया कि नदी में पूजा-पाठ की सम्पूर्ण सामग्री न डालें केवल चावल, आटा व अन्य अन्न डाल दें ताकि नदी में रहने वाले जीव-जन्तुओं को भोजन मिल सके।