शिमला, 30 मई (एजेंसी)
हिमाचल प्रदेश में बड़ी तादाद में सेब उत्पादक मतदाता हैं जो इस बार भारतीय जनता पार्टी के लिए परेशानी पैदा कर सकते हैं। इन किसानों का आरोप है कि पिछले दस वर्षों में उनकी समस्याओं को हल नहीं किया गया है जबकि एक प्रभावशाली किसान संघ ने कांग्रेस को अपना समर्थन दे दिया है। सेब की बागवानी मुख्य रूप से शिमला, मंडी, कुल्लू और किन्नौर जिलों के 21 विधानसभा क्षेत्रों और चंबा, सिरमौर, लाहौल और स्पीति, कांगड़ा और सोलन जिलों के कुछ इलाकों में की जाती है। इसकी बागवानी कुल मिलाकर 1,15,680 हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है। प्रमुख सेब उत्पादक क्षेत्र शिमला और मंडी संसदीय क्षेत्रों के अंतर्गत आते हैं। तीन लाख से अधिक परिवार सीधे तौर पर सेब उत्पादन से जुड़े हैं। संयुक्त निदेशक (बागवानी) हेम चंद ने बताया, आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2022 में सेब का उत्पादन 3.5 करोड़ पेटी और 2023 में दो करोड़ पेटी था। उनके मुताबिक, उत्पादन और बाजार मूल्य पर निर्भर होने के बावजूद राज्य में सेब का कारोबार लगभग 4,000 करोड़ रुपये से अधिक था। सेब उत्पादकों की मुख्य मांगें सस्ती किस्म के सेब के आयात पर रोक लगाने के लिए 100 प्रतिशत आयात शुल्क, कृषि के लिए इस्तेमाल होने वाली चीजों और उपकरणों पर जीएसटी समाप्त करना, ऋण माफी और उर्वरकों तथा कीटनाशकों पर सब्सिडी हैं। ‘प्रोग्रेसिव ग्रोअर्स एसोसिएशन’ के अध्यक्ष लोकिंदर बिष्ट ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बड़े-बड़े दावों के बावजूद पिछले दस वर्षों में सेब उत्पादकों की परेशानी को दूर करने के लिए कुछ भी नहीं किया गया है। उन्होंने यह भी दावा किया कि न तो आयात शुल्क बढ़ाया गया और न ही सेब को विशेष श्रेणी की फसल में शामिल किया गया। संयुक्त किसान मंच (एसकेएम) ने कांग्रेस को समर्थन दे दिया है। एसकेएम के संयोजक हरीश चौहान ने कहा कि संगठन ने कांग्रेस को इसलिए समर्थन देने का संकल्प लिया है, क्योंकि पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में उनकी मांगों को शामिल किया है। एसकेएम का दावा है कि उसे सेब, गुठलीदार फल और सब्जी उत्पादक संघों के 27 संगठनों का समर्थन हासिल है। उन्होंने कहा कि किसानों की मांगों को घोषणा पत्र में शामिल करने के अलावा, कांग्रेस और उसके गठबंधन ने एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) सुनिश्चित करने के लिए एक कानून लाने का भी वादा किया है ताकि सेब उत्पादकों को बड़े औद्योगिक संस्थानों के शोषण से बचाया जा सके, जिन्होंने सेब पट्टी में गोदामों और कोल्ड स्टोरेज का निर्माण किया है। मनाली के पास खकनाल गांव में सेब उत्पादक रोशन लाल ठाकुर ने कहा कि भारतीय बाजार तुर्की, ईरान, इटली, चिली और दक्षिण अफ्रीका से आयातित सेबों से भरे पड़े हैं। उनके मुताबिक, स्थानीय उत्पादक उच्च लागत वाले श्रमिकों पर निर्भर हैं और उन्हें विदेशी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, भाजपा नेताओं का कहना है कि किसान सम्मान निधि और सौर बाड़ लगाने जैसी कई योजनाएं शुरू करके उसने किसानों और फल उत्पादकों के लिए बहुत कुछ किया है। भाजपा ने याद दिलाया कि आयात शुल्क को 50 प्रतिशत पर सीमित करने के लिए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के साथ समझौते पर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग-2) सरकार में तत्कालीन वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने हस्ताक्षर किए थे, जो कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में कांगड़ा से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं।