ज्ञान ठाकुर/हप्र
शिमला, 13 नवंबर
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य की सुक्खू सरकार द्वारा नियुक्त सभी 6 मुख्य संसदीय सचिवों (सीपीएस) को तुरंत प्रभाव से पद से हटाने का आदेश दिया है।
गौर हो कि मुख्यमंत्री सुक्खू ने अपने मंत्रिमंडल के विस्तार से पहले आठ जनवरी 2023 को छह सीपीएस-अर्की विधानसभा क्षेत्र से संजय अवस्थी, कुल्लू से सुंदर सिंह, दून से राम कुमार, रोहड़ू से मोहन लाल बराकटा, पालमपुर से आशीष बुटेल और बैजनाथ से किशोरी लाल की नियुक्ति की थी।
जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने भाजपा नेताओं और एक अधिवक्ता की याचिका को स्वीकारते हुए हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) अधिनियम, 2006 को भी खारिज कर दिया। कुल 33 पन्नों के अपने फैसले में हाईकोर्ट की डबल बैंच ने अधिनियम को रद्द करते हुए नियुक्तियों को अवैध, असंवैधानिक और शून्य घोषित किया। कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव तथा अन्य हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि विधानमंडल अप्रत्यक्ष विधि अपनाकर संवैधानिक निर्देशों का उल्लंघन नहीं कर सकता। ऐसा करना संवैधानिक प्रावधान के साथ धोखाधड़ी होगी। हाईकोर्ट ने पाया कि मुख्य संसदीय सचिव या संसदीय सचिव के रूप में वे कैबिनेट मंत्री के कार्यालय के सहायक/आकस्मिक कार्य करते हैं। यद्यपि उनकी भूमिका अधिकतम अनुशंसात्मक होती है, फिर भी वे राजनीतिक कार्यपालिका के संवैधानिक या वैधानिक, संप्रभु कार्यों के निष्पादन से सक्रिय रूप से जुड़े होते हैं।
विधायकों से भी ज्यादा वेतन मामले पर जिरह के दौरान बताया गया कि हिमाचल प्रदेश में विधानसभा सदस्य 55,000 रुपये प्रति माह वेतन पाते हैं, जबकि मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिवों को क्रमशः 65,000 रुपये और 60,000 रुपये प्रति माह मिलता है। राज्य मंत्री, कैबिनेट मंत्री और मुख्यमंत्री क्रमशः 78,000 रुपये, 80,000 रुपये और 95,000 रुपये वेतन के हकदार हैं। संसदीय सचिवों को आलीशान आवास का भी प्रावधान है। रखरखाव शुल्क राज्य सरकार वहन करती है। प्रत्येक मंत्री और संसदीय सचिव को एक कार भी मिलती है। वाहन भत्ता और रखरखाव भी सरकार वहन करती है।
बिना प्रावधान आवंटित विभाग
बिना प्रावधान के मुख्य संसदीय सचिवों को विभाग भी आवंटित किए गए हैं। उन्हें मंत्रियों के साथ संबद्ध किया गया है। बताया गया कि इसके अलावा भी अनेक सुविधाएं ऐसी हैं जिनकी उपलब्धता बिना प्रावधान के ही तय की गयी थी।
सुप्रीम कोर्ट जाएगी प्रदेश सरकार
हिमाचल प्रदेश सरकार हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। महाधिवक्ता अनूप रत्न ने कहा कि उन्हें सरकार की ओर से इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने को कहा गया है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से मामले पर जल्द सुनवाई का आग्रह भी करेंगे।