शिमला, 21 अप्रैल (हप्र)
हिमाचल की सुक्खू सरकार राज्य के पशु पालकों की आर्थिकी सुदृढ़ करने के लिए दूध गंगा की धारा अभी नहीं बहा पाई है। सरकार ने पशुपालकों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए दूध खरीद योजना तैयार की थी, जिसके तहत 5 रुपये प्रति टन के हिसाब से रेत-बजरी पर सेस लगाया जाना था, लेकिन बीच में लोकसभा चुनाव आ गए और सेस लेने के लिए नियम बनाने का काम पूरा नहीं हो पाया। अब प्रदेश के पशुपालकों को स्थायी आमदनी मिलती रहे, इसके लिए जून तक नियम बनने का इंतजार करना होगा। दूध की धारा को रेत-बजरी का ही सहारा है।
सुक्खू सरकार ने कांगड़ा, हमीरपुर, चंबा और ऊना जिलों में क्लस्टर बनाने का काम पूरा कर लिया है। ढंगवार दूध संयंत्र स्थापित करके इस क्षेत्र में दूध की खरीद को डेढ़ लाख से बढ़ाकर तीन लाख लीटर पहुंचाने का लक्ष्य है। मौजूदा वित्त वर्ष के लिए सरकार ने इस कार्य के लिए बजट में 250 करोड़ का प्रावधान किया है। इस राशि से दूध की खरीद को विस्तार दिया जाना है। एक अनुमान के अनुसार, रेत-बजरी पर सेस लगने से दूध की खरीद के लिए 50 से 70 करोड़ की राशि एकत्र होेने की उम्मीद है।
प्रदेश सरकार ने लोकसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले नयी खनिज व खनन नीति को स्वीकृति प्रदान की थी। सरकार ने नई नीति में खनन से 5 रुपये प्रति टन मिल्क सेस और 5 रुपये प्रति टन मिनरल सेस निर्धारित करने का प्रविधान किया था। उसके बाद नीति विधि विभाग के पास भेजी गई थी। नीति के तहत सब कुछ तो हो गया, लेकिन नियम नहीं बन सके। इस मद से प्रदेश सरकार को पिछले वित्त वर्ष तक 250 करोड़ रुपये राजस्व से प्राप्त होता था। नयी नीति से इससे 500 करोड़ रुपये कमाने का लक्ष्य रखा गया है।
सरकार ने पशुपालकों से गाय का दूध 80 रुपये और भैंस का दूध 100 रुपये प्रति लीटर खरीदने की घोषणा की थी। इस समय बाजार में दूध का मूल्य 60 रुपये लीटर चल रहा है। दूध की खरीद और बाजार मूल्य के बीच में आने वाले अंतर को पूरा करने के लिए बकाया धनराशि यानी गैप फंडिंग के लिए दो तरह का सेस लगाया जाना था। पहला शराब की प्रत्येक बोतल पर 10 रुपये सेस लग चुका है और 100 करोड़ तक शराब की बिक्री से आ रहे हैं। उसके बाद रेत-बजरी पर प्रति टन 5 रुपये सेस लगाया जाना था। एकत्र धनराशि से गैप फंडिंग को पूरा करने का रास्ता निकाला जाना था।