हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी
शिमला, 21 सितंबर (हप्र)
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम की दयनीय वित्तीय स्थिति के लिए कुप्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया है।
कोर्ट ने चेतावनी दी है कि यदि कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाया गया, तो एचपीटीडीसी की संपत्तियों को बंद करने का आदेश देने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाएगा, क्योंकि एचपीटीडीसी एक अलग स्वामित्व वाला निगम है और राज्य या निगम के लिए वरदान होने के बजाय राज्य के खजाने पर अभिशाप बनता जा रहा है। कोर्ट ने पर्यटन विभाग के प्रमुख सचिव को मामले में प्रतिवादी बनाया है और कोर्ट द्वारा उठाए गए मुद्दों पर हलफनामा दायर करने के आदेश दिए ताकि पर्यटन निगम की संपत्तियों को लाभ कमाने वाली इकाइयों में बदलने के लिए कुछ किया जा सके। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने सेवानिवृत्त कर्मचारी के सेवानिवृत्ति के बाद के सेवालाभ भुगतान में देरी से जुड़े मामले पर सुनवाई के पश्चात ये आदेश दिए। कोर्ट ने एचपीटीडीसी के प्रबंध निदेशक द्वारा पेश हलफनामे का अवलोकन करने के पश्चात निगम की आर्थिक हालत को चिंताजनक बताया। निगम के अनुसार 31 अगस्त, 2024 तक सेवानिवृत्त कर्मचारियों को देय राशि 35.13 करोड़ रुपये थी। कोर्ट ने इस स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि हिमाचल प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है और एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल के रूप में मशहूर होने के बावजूद एचपीटीडीसी की संपत्तियां पर्याप्त पर्यटकों को आकर्षित नहीं कर पा रही हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसा नहीं है कि प्रदेश में पर्यटक नहीं आ रहे हैं, परंतु मुद्दा यह है कि एचपीटीडीसी की संपत्तियों के प्रमुख पर्यटन स्थानों पर होने के बावजूद वे इनका उपयोग नहीं कर रहे हैं। वे निजी होटलों में रहना और गैर एचपीटीडीसी रेस्तरां में भोजन करना पसंद करते हैं।
कोर्ट ने कहा कि यदि यह तथ्य गलत है तो यह और भी बड़ी चिंता का विषय है। क्योंकि यदि पर्यटक एचपीटीडीसी की संपतियों का पूरा उपयोग कर रहे हैं तो जो वास्तविक राजस्व उत्पन्न होना चाहिए, वह असल में नहीं दर्शाया जा रहा है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हिमाचल प्रदेश में पर्यटन विकास निगम की अनेक संपत्तियां फैली हुई हैं। निगम इन संपत्तियों का प्रबंधन और संचालन करने की स्थिति में नहीं है।