हिंदी दिवस को राष्ट्र एक संकल्प दिवस के रूप में मनाए, जिसमें हमारी युवा पीढ़ी संकल्प ले कि हिंदी हमारी पहचान है, शान है। उसे अपने जीवन में स्वीकार करे। आज का युवा आधुनिकता की नकल में जी रहा है और हिंदी से परहेज करता है। जिस प्रकार हमारे माता-पिता, हमारा जन्म स्थान, हमारा रंगरूप हमारा अपना है, ठीक उसी प्रकार हिंदी हमारी मातृभाषा है, जिस पर हमें गर्व होना चाहिए। शिक्षक वर्ग का दायित्व है कि बच्चों को इस प्रकार शिक्षित किया जाए कि आने वाले पीढ़ी हिंदी भाषी होने पर गर्व कर सके। हिंदी लेखन, पठन और उच्चारण पर जोर दिया जाए। यही हिंदी दिवस का सच्चा उद्देश्य है।
श्रीमती केरा सिंह, नरवाना
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किसान आंदोलन आम आदमी को परेशान करने वाला और जिद पर सवार होकर लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने वाला आंदोलन साबित हो रहा है। प्रदर्शनकारी इस बात पर अड़े हुए हैं कि कृषि कानूनों को वापस लिया जाए जबकि सरकार इन कानूनों को वाजिब मानते हुए आंशिक सुधारों के लिए तैयार है। दीगर बात यह है कि प्रदर्शनकारियों और सरकार के मध्य चल रहे इस अनिर्णीत दंगल का निकट भविष्य में कोई हल भी नहीं दिखाई देता। यही लड़ाई यदि आमजन को तकलीफ में डालकर लड़ी जायेगी तो यह लोकतांत्रिक न होकर राजनीतिक, स्वार्थपरक और हठधर्मिता रूपी स्वार्थ कहा जायेगा।
चंद्र प्रकाश शर्मा, दिल्ली
भयमुक्त हों बेटियां
दैनिक ट्रिब्यून में 14 सितंबर को प्रकाशित संपादकीय ‘एक और निर्भया’ मानवीय दरिंदों की करतूतों पर कड़ा प्रहार लगा। देश में कड़े कानून लागू होने के बाद भी बेटियां न गांव और न ही शहरों में सुरक्षित हैं। एक निर्भया की मौत के बाद जब दरिंदों को फांसी की सजा दी गई थी तब ऐसा लगने लगा था कि शायद इस तरह की घटनाएं अब समाज में सामने नहीं आएंगी। हाल ही में पीड़िता के साथ जिस तरह का घिनौना व्यवहार किया गया है, उसके लिए मौत की सजा भी कम है।
अमृतलाल मारू ‘रवि’, धार म.प्र.