नीलम मानसिंह चौधरी
इब्राहीम अल्काजी (1925-2020) ने अपने एकांगी संकल्प के साथ अनूठी प्रशिक्षण शैली के जरिये भारतीय नाटक शैली की ऐसी रूपरेखा तैयार की जो आधुनिकता का प्रतीक बनी। भारतीय समाज की परिस्थिति के अनुसार सफलतापूर्वक बदलाव के लिए आधुनिकता को आत्मनिर्भर शैली में बदलने की जरूरत थी, क्योंकि तब ही रंगमंच की दुनिया अतीत में बदलाव के साथ कुछ नया बनकर उभर सकती थी। समाज की संरचना या विचारधारा में बदलाव किए बगैर नयी और आत्मनिर्भर धारणा बनाकर इस आधुनिकता का निर्माण करने में अल्काजी का योगदान था।
नयी दिल्ली में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) प्रमुख के तौर पर उन्होंने हम विद्यार्थियों को सिखाया कि ‘सजीवता’ रंगमंच (थियेटर) का प्राथमिक उद्देश्य हो। यानी दर्शकों एवं खुद के लिए किसी पात्र-ऐतिहासिक या काल्पनिक को सजीव करना। अल्काजी ने हमें यह भी सिखाया कि ‘सजीवता’ एक ऐसी चीज थी जिसके लिए सहज ज्ञान, धैर्य, रचनात्मकता और मेहनत की आवश्यकता होती है, न कि सारहीन बातों या सनक की।
उन्होंने 1977 तक शिक्षक, निर्देशक और एनएसडी के प्रमुख के तौर पर 15 वर्षों तक जिम्मेदारियां निभाईं। उन्होंने एकल रूप से संवेदनशीलता और नवाचार के साथ, आधुनिक नाट्यकला को एक रूप दिया, जिसे उनके धुर आलोचक भी नकार नहीं सकते। बतौर एनएसडी प्रमुख 1962 से उन्होंने समय की नब्ज को पकड़ा और प्रशिक्षण, कहानी, अंतराल, भाषा और मिथक पर सवाल उठाकर आधुनिक भारतीय रंगमंच को ढाला। वास्तव में उन्होंने उस वक्त की नाटकीय धारणाओं को चुनौती दी और आधुनिक प्रारूप तैयार किया। जैसा न किसी ने किया और न जैसा हुआ।
अल्काज़ी एनएसडी में मेरे गुरु थे और मैंने उनकी रचनात्मक प्रक्रियाओं का बारीकी से अवलोकन किया। काम के लिए उनका जुनून और प्रचंड भूख प्रेरणादायक थी और वह उससे अलग चीजों पर ज्यादा वक्त जाया नहीं करते थे। किसी भी लेखक या नाटककार ने उनके काम का व्यवस्थित तरीके से दस्तावेजीकरण नहीं किया है, और जो कुछ भी व्याख्यानों, अवलोकनों से बटोरा जा सका वह एनएसडी के गलियारों में गूंजता है।
वर्षों तक वह मेरे गुरु रहे और जो एक अटल सबक मैंने सीखा, वह यह था कि रंगमंच का काम एक हॉबी क्लास में शामिल होने जैसा नहीं है, यह उसी तरह है जैसा कि किसी पेशेवर काम के लिए समर्पण और प्रतिबद्धता चाहिए होती है, उसी तरह जैसे कि कोई डॉक्टर या वकील बनना चाहता है।
अल्काजी के एनएसडी में जाने से पहले, यहां के विद्यार्थियों को एकल नाटक प्रस्तुत करना होता था जो रंगमंच की प्राथमिक कक्षा के लिए अधिक महत्वपूर्ण थे। कभी-कभी पूर्ण लंबाई वाले नाटकों को भी प्रस्तुत करना होता था जो कभी भी बाहर के दर्शकों के लिए मंचित नहीं किए जाते थे। अल्काजी हालांकि प्रदर्शन के सभी पहलुओं, पेशेवर कलाकार से लेकर प्रशिक्षण तक से जुड़े रहते थे : जटिल पात्रों का विश्लेषण करने से लेकर सेट, ऐतिहासिकता के हिसाब से वेशभूषा और रंगमंच की सामग्री तक में उनकी सक्रियता रहती थी। आधुनिक भारतीय नाटक के रूपांतरों में, अल्काज़ी के लिए कुछ भी बहुत अधिक या बहुत कम नहीं था।
70 के दशक के मध्य में, मैं एनएसडी में जब तक बतौर विद्यार्थी रही, अल्काजी ने तीन नाटकों का निर्देशन किया जिन्हें उनके बेहतरीन काम के तौर पर याद किया जाता है, ये नाटक थे धर्मवीर भारती का अंधा युग, गिरीश कर्नाड का तुगलक और बलवंत गार्गी का रजिया सुल्तान। इन सभी का 1974 में भव्य पुराने किले में मंचन किया गया। कुछ ही समय के भीतर एनएसडी अल्काज़ी का पर्याय बन गया और दृश्य कला में अपनी महानगरीय पृष्ठभूमि और विशेषज्ञता के साथ उन्होंने अपने छात्रों को न केवल नाट्य कला, बल्कि कविता, चित्रकला, साहित्य और सिनेमा की दुनिया से अवगत कराया। छात्रों को अल्काज़ी द्वारा पुस्तकें भी दी जाती थीं। इन भेंट को प्राप्त करने वालों में मैं भी थी, इसके बाद वह परखते थे कि उन किताबों को पढ़ा गया कि नहीं।
अल्काजी को उनके विद्यार्थी चाचा कहकर पुकारते थे, हमेशा अपने विद्यार्थियों से वह किसी न किसी विषय पर चर्चा करते रहते थे जो पुराने विषयों पर भी उसी जुनून के साथ चर्चा करते थे जैसे कि चेखव या इबसेन के नाटकों पर। उन्होंने हम सभी को मुग्ध कर दिया था। 2018 में आखिरी बार जब मैं उनसे मिली थी तो वह लंच के लिए अपनी बेटी अमल अल्लाना के घर पर थे। उनका जाना अपूरणीय क्षति है। वह रंगमंच की दुनिया के असाधारण चरित्र थे।
मुंबई से सफर शुरू कर दिल्ली पहुंचे
अभिनेताओं और निर्देशकों की एक नयी पीढ़ी तैयार करने वाले रंगमंच के जादूगर थे इब्राहीम अल्काजी। 40-50 के दशक में मुंबई में अल्काजी ने रंगमंच की दुनिया में नाम कमाया। फिर वह 37 साल की उम्र में दिल्ली आ गए। अभिनय की दुनिया के कई सितारे अनुपम खेर, नसीरुद्दीन शाह, सुरेखा सीकरी, पंकज कपूर और ओम पुरी को भी उन्होंने शिक्षा दी थी। उन्होंने नयी दिल्ली में आर्ट हेरिटेज गैलरी की स्थापना की थी। अल्काजी पद्म विभूषण (2010), पद्मभूषण (1991) और पद्मश्री (1966) सम्मानों से सम्मानित थे। उन्हें एक सख्त अनुशासक के रूप में जाना जाता था। उनके दोनों बच्चे भी थिएटर कलाकार हैं। अमल अल्लाना, एक थिएटर डायरेक्टर हैं और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की पूर्व चेयरपर्सन हैं। फैसल अल्काजी भी थिएटर डायरेक्टर हैं। पिछले दिनों उनके निधन पर अभिनेता अनुपम खेर ने ट्वीट किया, ‘मेरे एक्टिंग गुरु इब्राहीम अल्काजी साहब का निधन हो गया। हमारे जीवन में अब तक का सबसे बड़ा आदमी। उन्होंने हमें न केवल रंगमंच, अभिनय या नाटकों के बारे में, बल्कि जीवन के बारे में भी सिखाया। वह महान अभिनय के लिए हमारे संदर्भ बिंदु थे। आप बहुत याद आएंगे। ओम शांति!!’ बॉलीवुड अभिनेता और एनएसडी के छात्र रहे नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने अल्काजी की एक फोटो शेयर करते हुए लिखा, ‘वह आधुनिक भारतीय रंगमंच के सच्चे वास्तुकार थे। डोयेन जो कला के सभी पहलुओं में चरम ज्ञान के पास थे। वो जादूगर जिसने रंगमंच के कई महापुरुषों को पाला। स्वर्ग से अपनी प्रतिभाशाली चिंगारी हमें प्रबुद्ध देना।’ कलाकार कबीर बेदी ने ट्वीट किया, ‘मैं उन्हें तब से जानता था जब वह 1960 के दशक में एनएसडी के निदेशक थे। उन्होंने भारत को महान रंगमंच दिया और अभिनेताओं और निर्देशकों की एक नयी पीढ़ी बनाई।’ कलाकार पंकज त्रिपाठी ने ट्वीट किया, ‘आप मेरे शिक्षकों के गुरु थे। आपके अनगिनत क़िस्से हमने अपने गुरुओं से सुने हैं। आप हमारी स्मृतियों में रहेंगे। विनम्र श्रद्धांजलि।’ इनके अलावा कला की दुनिया के तमाम लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।