शारा
लोफर
थी तो लोफर फिल्म एक थ्रिलर, लेकिन इसमें क्या नहीं था? लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के एक से बढ़कर एक गीत, उम्दा कहानी, भीम सिंह का कसावभरा निर्देशन, मसाला प्लॉट, धर्मेंद्र की बॉडी, गुब्बारे ही गुब्बारों में झांकती दिखती पद्मा खन्ना और मुमताज की वार्डरोब। हां, गुरबत ढोते आमजन को सपने परोसती धनाड्य वर्ग की ऐशोआराम वाली शैली भी। फिर इस फिल्म में मारधाड़ और हिंसा देखने को नहीं मिली, हालांकि विषय वस्तु गैर-कानूनी धंधाखोरों की थी। इस फिल्म ने वहां-वहां खूब तहलके मचाए जहां भी यह रिलीज हुई। अपने देश में यह हिट रही। धर्मेंद्र ने इसी हिट फिल्म के जरिए लगातार हिट दे रहे राजेश खन्ना की गति में विराम लगा दिया। लगातार सात हिट देने वाले राजेश खन्ना का रिकॉर्ड इसी फिल्म से टूटा। यह फिल्म 1973 में रिलीज हुई थी। इससे पहले धर्मेंद्र यादों की बारात, झील के उस पार, कहानी किस्मत की तथा ब्लैकमेल आदि फिल्में दे चुके थे। उनके समानांतर चलते राजेश खन्ना का जादू दर्शकों के जेहन से उतरते नहीं बन रहा था। दर्शक उनकी आंखों की अदाओं को भुला नहीं पा रहा था, लेकिन यह काम आसान कर दिया धर्मेंद्र ने। उन्होंने दर्शकों को अपने अभिनय के जरिए बता दिया कि ‘जमाने में और भी गम हैं मोहब्बत के सिवा’। फिल्मों में मुमताज के साथ उनकी बनी केमिस्ट्री ने राजेश खन्ना के कई चहेते खींचे। लड़कियों को इसी धर्मेंद्र के जरिए ‘हीमैन’ की बुक्कत का पता चला। उससे पहले उनके लिए लवर ब्वॉय ही सब कुछ था। चॉकलेटी हीरो के इतर पसीने से नहाए धर्मेंद्र का चौड़ा सीना हर लड़की के दिल में घर कर गया। इस फिल्म में हास्य-ठिठोली, गुरबत, अमीरी, जज्बाती विवशता सभी कुछ दिखाई गई है। शराब की बोतलों में अपने खोए बेटे का गम उड़ेलता ओमप्रकाश जब एक अमीर की पार्टी में अपनी वास्तविकता को छिपा नहीं पाता तो यहां पर भरी सभा में सभी के सामने असहयता सुबक उठती है। ‘आज मौसम बड़ा बेईमान है’ इसी फिल्म का गाना है, जिसे 2001 में बनी फिल्म ‘मानसून वेडिंग’ में रिपीट किया गया था। इसे कलमबद्ध किया था आनंद बख्शी ने। क्या सिचुएशन गीत लिखा है-एक अनपढ़ हीरो जो डकैती मारने वाले के हाथों में खेलता है, अपनी प्रेमिका के लिए ऐसा ही गाना गा सकता है। और प्रेमिका भी कम नहीं है वह तो प्रतिद्वंद्वी सरगना के कहने पर उसकी जासूसी करते-करते (रणजीत) धर्मेंद्र के प्यार में फंस जाती है।
इस फिल्म में मुमताज ने जो डांस किए हैं वह देश की हर गली-कूचे की सभी छोरियों के पसंदीदा डांस थे। शादी-विवाह में तो यह डांस लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की धुनों को बरबस याद करवा देते थे। मुमताज के लाचे की दीवानी लड़कियां इसी फिल्म से हुई थी। यह फिल्म जितनी देश में चली उससे कहीं ज्यादा विदेश में चली। हालांकि शाहरुख की तरह धर्मेंद्र को विदेशों में इसकी लॉन्चिंग के लिए कतर ब्योंत नहीं करनी पड़ी। इस फिल्म की कहानी का प्लॉट बाद में अमिताभ बच्चन की प्रसिद्धि और सफलता के लिए आधार स्तंभ बना कि कैसे एक आपराधिक परिवेश तथा गुरबत से निकला व्यक्ति बड़े सामाजिक रुतबे को ग्रहण कर सकता है। वह अमीर हो सकता है, वह खूबसूरत लड़की से प्यार कर सकता है, वह किसी भी असहाय का सहारा बन सकता है।
रणजीत (धर्मेंद्र) जब स्कूल में पढ़ता था तो तब भी वह बड़ा शरारती था, जिसकी शरारतों से आजिज आकर मोहन नामक उसके सहपाठी उसकी शिकायत मास्टर जी से कर देता है, जिस पर तैश में आकर वह मोहन को छत से नीचे गिरा देता है और पुलिस की डर से खुद भाग जाता है। वह मुंबई की ट्रेन में बैठ जाता है। मुंबई में उसे केएन सिंह मिलता है जो गैरकानूनी धंधों का सरगना है। लेकिन वह रणजीत (धर्मेंद्र) की बच्चों की तरह परवरिश करता है ताकि बड़े होकर रणजीत को काले धंधों में शरीक कर सके और अपना दाहिना हाथ बना सके। फिर रणजीत को बड़ा दिखाया गया जो शहर में बड़ी-बड़ी डकैतियों के लिए जाना जाता है। लेकिन रंग में भंग डालता है राकेश (रूपेश) जो प्रताप का बंदा है। काले धंधों के दूसरे गुट का सरगना है। यहां प्रताप का रोल प्रेमनाथ ने अदा किया है। जब प्रताप को यह पता चलता है कि रणजीत के सामने राकेश द्वारा की जा रही उसकी जासूसी का भंडाफोड़ हो गया है तो वहां प्रताप राकेश को मौत के घाट उतारना चाहता है लेकिन आगे मंजू (मुमताज) आकर भाई को यह कहकर बचाती है कि वह भाई का काम करेगी। मतलब रणजीत की जासूसी करेगी। जासूसी करते-करते वह रणजीत के प्रेम जाल में फंस जाती है। और प्रताप को टका-सा जवाब भी दे देती है। शहर में गहनों की एग्जीबिशन लगी है। चारों तरफ पुलिस की खूब सुरक्षा है। अलार्म व्यवस्था होने के बावजूद रणजीत चोरी करने में कामयाब हो जाता है और अपने घर में उस मुंहबोली बहन (पद्मा खन्ना) की शादी रचाता है, जिसका बाप एक साधारण-सा फल विक्रेता है। वह कोई और नहीं बल्कि ओमप्रकाश है, जिसके बेटे मोहन का कत्ल स्कूल झगड़े के दौरान रणजीत के हाथों ही हुआ था। और यह बात रणजीत को तब पता चलती है जब वह प्रकाश के कमरे में मोहन की तस्वीर देख लेता है जिसे ओमप्रकाश अपना बेटा बताता है। ओमप्रकाश की बेटी शिमला के एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ती है। ओमप्रकाश ने उसे बता रखा है कि वह अमीर बाप की बेटी है जो दीवालिया हो चुका है ताकि उसकी बेटी किसी ग्रंथि का शिकार न हो। उधर पश्चाताप का मारा रणजीत मन ही मन फैसला कर लेता है कि वह ओमप्रकाश के परिवार की जिम्मेदारी लेगा। इसकी पहल वह ओमप्रकाश की बेटी की शादी भाई बनकर बड़ी शान-ओ-शौकत से करता है, लेकिन शादी के दौरान ही उसे पुलिस गिरफ्तार करने आ जाती है। उसके बाद की कहानी फ्लैशबैक के पाठक बताएंगे। हालांकि कहानी इतनी लंबी नहीं, मगर समाप्ति तो हर अफसाने की होती है।
निर्माण टीम
निर्देशक : ए. भीम सिंह
लेखक : जगदीश कंवल
पटकथा : नवेन्दु घोष
मूल कहानी : विजय
प्रोड्यूसर : आरसी कुमार
सिनेमैटोग्राफी : राजेंद्र मैलोन
गीत : आनंद बख्शी
संगीत : लक्ष्मीकांत प्यारेलाल
सितारे : धर्मेंद्र, मुमताज, ओमप्रकाश, प्रेमनाथ, केएन सिंह आदि
गीत
मैं तेरे इश्क में : लता मंगेशकर
कोई शहरी बाबू
दिललहरी : आशा भोसले
कहां है वो दीवाना : आशा भोसले
मोतियों की लड़ी हूं मैं : आशा भोसले
आज मौसम बड़ा
बेईमान है : मोहम्मद रफी
दुनिया में तेरा है बड़ा
नाम : महेंद्र कपूर