शारा
वर्ष 1948 में रिलीज ‘मेला’ फीचर फिल्म एक रोमांटिक त्रासदी थी। उस दशक में ऐसे रोल के लिए प्रोड्यूसरों की निगाह दिलीप कुमार को छोड़कर किसी और पर टिकती ही नहीं थी। यह एक म्यूजिकल हिट थी। यह 1956 में चिरंजीवुलू के नाम से तेलुगु में भी बनी थी। ‘मेला’ की स्टोरी लाइन इतनी कमजोर कि शुरू-शुरू में दिलीप कुमार ने इसमें काम करने से मना कर दिया। लेकिन जब वह स्टूडियो पहुंचे तो मुकेश और शमशाद बेगम द्वारा गाए गए गीत ‘मेरा दिल तोड़ने वाले’ ने उन्हें अपने फैसले पर दोबारा सोचने पर मजबूर कर दिया और फिर उन्होंने पटकथा में स्वयं दिलचस्पी ली और कहानीकार के साथ कई सत्र लगाए। उनकी साथी थीं नरगिस। उस समय की जानी-मानी नायिका, जब यह फिल्म रिलीज हुई तो फिल्म समीक्षकों की समीक्षा का निशाना बनी तथापि इसने बॉक्स ऑफिस में खूब पैसे कमाए (शायद नौशाद के संगीत के कारण)। 1948 में ही इस फिल्म ने 50 लाख रुपये कमाए थे। बताते हैं कि कहानी को रत्न फिल्म से लिया गया था। लेकिन नौशाद के गानों की खनक इतनी प्यारी थी कि संगीत ने कहानी के सारे दोषों को भुला दिया। इस फिल्म में ही शमशाद बेगम ने अपने जीवन के बेहतरीन गाने गाए थे, नौशाद के संगीत के साथ। गीत लिखे थे शकील बदायूंनी ने ‘तकदीर बनी बनकर बिगड़ी’, ‘धरती को आकाश पुकारे’ इसी फिल्म के गीत हैं। ‘धरती को आकाश पुकारे’ को शुरू-शुरू में टाइटल सॉन्ग की तरह फिल्म में रखा था लेकिन फिल्म रिलीज़ होने से पूर्व यह दर्शकों और श्रोताओं के मुंह पर चढ़ गया था, लिहाज़ा इसे फिल्म के निर्देशक ने फिल्म के सीन में डाल दिया। ‘गाए जा गीत मिलन के’ एक बार नरगिस ससुराल जाते वक्त गाती है जबकि दूसरी तरफ से घोड़ा गाड़ी हांकते वक्त फिल्म का हीरो गाता है। इसी फिल्म के गीत ‘ये जिंदगी के मेले’ के साथ मोहम्मद रफी सफलता के शिखर तक जा पहुंचे थे। यह फिल्म पहली बार 8 अक्तूबर को बॉम्बे में रिलीज हुई थी। लेकिन फिल्म की कहानी पर खूब नुक्ताचीनी हुई। एक बारगी तो हिंदुओं को ‘साइड लाइन’ करने के भी आरोप लगे। समीक्षकों ने यहां तक कहा था कि यह फिल्म हिंदू-मुस्लिम के बीच नफरत पैदा करती है तथा आत्महत्या जैसे जघन्य अपराध के लिए उकसाती है। फिर सेना भी इस फिल्म के निर्देशक प्रोड्यूसर से नाराज थी कि सेना के भूतपूर्व अफसर (जीवन) को जैसा चांडाल दिखाया है, वैसे सेना अधिकारी ठगबाजी नहीं करते। 1948 में सेना के रुतबे को बनाने के लिए तत्कालीन हुक्मरान बेहद सीरियस भी थे क्योंकि तब नयी-नयी आजादी मिली थी। फिल्म के प्रोड्यूसर पर धारा 309 के तहत केस भी दर्ज होने वाला था। इस फिल्म का प्रोडक्शन और निर्देशक तो एसयू सन्नी ने किया था लेकिन इसकी पेशकश वाडिया मूवीटोन ने की थी। बताया जाता है कि फिल्म के प्रोड्यूसरों में हीला वाडिया के नाम को भी श्रेय दिया था। यह भी बताया जाता है कि हीला वाडिया ने ही जमशेद वाडिया को यह सलाह दी थी कि वह नौशाद को लेकर फिल्म बनाएं। नौशाद की उन दिनों फिल्म अनमोल घड़ी, रत्न, शाहजहां को लेकर गुड्डी चढ़ी थी। मेला की सफलता से ही उत्साहित होकर सन्नी ने अपनी प्रोडक्शन कंपनी सन्नी आर्ट प्रोडक्शन स्थापित की थी, जिसके बैनर तले उन्होंने बाबुल, उड़न खटोला, कोहिनूर जैसी कालजयी फिल्में बनायीं। वाडिया मूवीटोन जानी-मानी भारतीय प्रोडक्शन कंपनी थी, जिसे वाडिया बंधुओं ने बीएच वाडिया व होमी वाडिया ने 1933 में स्थापित किया था। यह कंपनी अधिकतर स्टंटबाजी, फैंटेसी व मिथकीय फिल्में प्रोड्यूस करने के लिए जानी जाती थी। हंटर वाली (1935) में मूवीटोन ने ही प्रोड्यूस की थी, जिसमें नाडिया ने मुख्य भूमिका निभाई थी। वाडिया परिवार (पारसी बंधू) मूल रूप से सूरत के रहने वाले थे जो शिप बनाने वाली कंपनी के लिए जाने जाते हैं। उनके पूर्वज बाद में मुंबई आ बसे थे और 1933 में ही दो वाडिया बंधुओं ने फिल्म कंपनी बना ली थी, जिसके डिस्ट्रीब्यूटर थे नादिर शाह टाटा, लेकिन 3 सालों के अंदर-अंदर टाटा बंधुओं ने कंपनी छोड़ दी थी। तब वाडिया बंधुओं ने फिल्में बनानी जारी रखीं, जिसका दफ्तर था वाडिया परिवार का विशाल बंगला। ‘अरेबियन नाइट्स’ इसी बंगले से प्रोड्यूस की गयी थी। मिथकीय फिल्में बनाने के कारण यह कंपनी घाटे में चल रही थी। इस कंपनी द्वारा प्रोड्यूस अंतिम फिल्म ‘राजनर्तकी’ थी। इस फिल्म स्टूडियो को बाद में वी. शांताराम ने खरीदा था । जिन्होंने इसी परिसर में राजकमल कला मंदिर की स्थापना की थी। इसी में 1974 में उन्होंने बसंत पिक्चर्स की नींव रखी, जिसने 1988 तक काम किया। बाद में जेबीएच वाडिया के पोते रियाद वाडिया ने इस स्टूडियो को पुनः खरीद कर यहीं से ही हंटरवाली नाडिया पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई। उनका निधन 2003 में हुआ था। चलते हैं फिल्म की कहानी की ओर। मंजू (नरगिस) अपने शिक्षक बाप तथा सौतेली मां के साथ-साथ गांव में रहती है। मंजू और मोहन (दिलीप कुमार) बचपन से ही दोस्त हैं, जवान होते-होते उनकी दोस्ती प्यार में बदल गई। वे शादी के सपने देखने लगे। उनकी सगाई भी हो गई। मोहन अपनी शादी के लिए जेवर खरीदने तई शहर जाता है कि रास्ते में उसे लूट लिया जाता है और लुटेरे उसकी खूब पिटाई करते हैं। वह बेहोश हो जाता है और खुद को अस्पताल में पाता है। महकू (जीवन) भी उसी गांव में रहता है। वह सेना से रिटायर्ड एक अफसर है, लेकिन गांव भर की जवान लड़कियों पर नजर रखता है। उसने मंजू की सौतेली मां को अपने वश में कर रखा है। वह मोहन की गैरमौजूदगी में गांव की पंचायत बुला लेता है। जब पंचायत बैठती है तो वह झूठ ही जानकारी देता है कि मोहन शहर की लड़की के साथ भाग गया है और वह कभी वापस लौटेगा नहीं। चूंकि शादी की तारीख मुकर्रर की गई है। इसलिए पंचायत फरमान देती है कि मंजू की शादी अमुक तारीख को महकू के साथ कर दी जाए। महकू के बारे में पाठकों को बता दें कि वह 75 वर्षीय बीमार व्यक्ति है, जिसकी पत्नी मर चुकी है और उसके चार बच्चे हैं।
हालांकि मंडप में बैठने पर वह मानता है कि उससे गलती हो गई क्योंकि मंजू उसके लिए काफी जवान है, मगर वह चाहता है कि वह उसके बच्चों की देखभाल जरूर करे। अब मंजू के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचता।
उधर, अस्पताल से छुट्टी होने पर जब मोहन घर लौटता है तो उसे षड्यंत्र का पता चलता है मगर अब क्या किया जाये? उधर मंजूर एक तूफानी रात को मोहन से मिलने जाती है तो उसकी गहरी खाई में गिरने से मौत हो जाती है। महकू तथा अन्य गांव वाले इसका जुर्म मोहन के सिर मढ़ते हैं। मंजू की हत्या के जुर्म में मोहन को 20 साल कैद हो जाती है। वह अपनी सफाई में कुछ नहीं कहता क्योंकि वह अब जीना ही नहीं चाहता। जेल से रिहा होने के बाद मोहन उसी जगह पर जाता है जहां मंजू की मौत हुई थी। वहां पर उसे मंजू की आत्मा दिखाई देती है, जिसका पीछा करते-करते वह भी किनारे पर पहुंचकर नीचे गहरी खाई में गिर कर मर जाता है। कहानी खत्म।
निर्माण टीम
निर्देशक/प्रोड्यूसर : एसयू सन्नी
मूल एवं पटकथा : अजय बाजीपुरी
सिनेमैटोग्राफी : फली मिस्त्री
गीतकार : शकील बदायूंनी
संगीत : नौशाद
सितारे : दिलीप कुमार, नरगिस, जीवन, रहमान आदि
गीत
ये जिंदगी के मेले : रफी
गाये जा गीत मिलन : मुकेश
फिर आह दिल से : जोहरा बाई अम्बाले वाली
धरती को आकाश : शमशाद बेगम, मुकेश (अलग-अलग)
मेरा दिल तोड़ने : शमशाद बेगम, मुकेश
आयी सावन ऋतु : मुकेश, शमशाद बेगम
मैं हूं भंवरा तू है : शमशाद बेगम, मुकेश
मोहन की मुरलिया : शमशाद
तकदीर बनी बनकर : शमशाद
परदेस बालम तुम : शमशाद
गरीबों पर जो होती : शमशाद