शारा
कोहरे जैसी तो इस फिल्म में कोई बात नहीं। लेकिन जिस निर्देशक ने इस फिल्म को निर्देशित किया, उसने ‘बीस साल बाद’ फिल्म भी निर्देशित की थी जो कामयाब रही। यह फिल्म भी कामयाब थी, सुपरहिट की श्रेणी में पहुंची थी लेकिन उसके दूसरे कई कारण थे। एक था हेमंत कुमार का दिल का छू लेने वाला संगीत, फोटोग्राफी और सितारे भी। दरअसल, इस फिल्म को अंग्रेजी फिल्म से रीमेक किया गया और वहीं से गड़बड़ हो गयी, हिचकॉक की रिबैका इस फिल्म से कहीं आगे थी। निर्देशक ने विदेशी कहानी में देसी घटनाओं का छौंक लगाना चाहा, मगर वह साम्यावस्था नहीं बैठा सके इसीलिए जिन दर्शकों ने रिबैका देखी है, उनके लिए यह फिल्म कमतर लगेगी, लेकिन केवल कोहरा देखने वालों को इसमें नून, मिर्च का स्वाद बराबर मिलेगा। यह हॉरर फिल्म नहीं है, थोड़ी-सी साइको लेकिन दर्शकों को बांधे रखने के लिए रात की खामोशी में परदों का अपने आप सरकना आदि कुछ ऐसी घटनाएं हैं जो यह अहसास दिलाती हैं कि विशाल हवेली में भूतों का डेरा है, मगर ऐसा नहीं है। ‘यह नयन डरे -डरे’ हेमंत दा के सुरों में बांधने की कूवत का परिचय देता है, मगर इसे जिस शिद्दत से शायर ने लिखा है, इस शिद्दत से फिल्माया नहीं गया। यह डरना शर्म का डरना है, जिसे हॉरर में तबदील करने की कोशिश की गयी है, लेकिन मानना पड़ेगा कि इसे गाया बहुत खूबसूरती से है। गाने कैफी आजमी ने लिखे हैं, जिन्हें संगीतबद्ध किया है हेमंत दा ने, उन्होंने ही इस फिल्म को प्रोड्यूस भी किया है। पाठकों को मालूम होगा कि हेमंत कुमार ही मौसमी चटर्जी के ससुर हैं। इसे निदेर्शित किया है वीरेंद्र नाग ने। वीरेंद्र नाग ने गुरुदत्त के साथ काम किया है इसलिए गमगीन सिचुएशन को और गमगीन बनाना उन्होंने गुरुदत्त से ही सीखा है। दरअसल, वह गुरुदत्त के कला-निर्देशक थे। ‘चौदहवीं का चांद’, ‘साहब बीबी और गुलाम’ तथा ‘सीआईडी’ जैसी फिल्मों का निर्देशन किया। फिल्म में पूनम का रोल करने वाली का नाम थेलमा था। वह एंग्लो इंडियन फिल्मी सितारा थी, जिसने बहुत ही कम हिंदी फिल्मों में काम किया। इस फिल्म के अधिकांश सेट राज कमल कला मंदिर में लगाये थे। यह कला मंदिर वी शांता राम ने बनाया था और दुनिया के प्रतिष्ठित शूटिंग स्थलों में से एक है। इस फिल्म में विश्वजीत, वहीदा रहमान सितारे हैं। ये वही सितारों की टीम है, जिसे वीरेंद्र नाग ने दोबारा रिपीट किया है। इन्हें ही आप ‘बीस साल बाद’ में देख चुके होंगे। यह फिल्म 1962 में रिलीज हुई थी और कोहरा 1964 में। कोहरे की सफलता का स्वाद निर्देशक चख नहीं सके और असमय उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी इस फिल्म को हम थ्रिलर मूवी तो कह सकते हैं, मगर हॉरर मूवी नहीं। यह थोड़ी-थोड़ी मनोविज्ञानिक मूवी भी है, जिसकी कई घटनाएं अंग्रेजी फिल्म ‘साइको’ से ली गयी हैं। एक विशाल हवेली में रहने वाले राजा अमित सिंह की पहली पत्नी पूनम मर चुकी है। फिल्म में विश्वजीत राजा अमित सिंह बने हैं। उन्हें जिस बेसहारा लड़की राजेश्वरी से प्यार हो जाता है, उसके पिता ने कभी राजा के यहां नौकरी की है। राजेश्वरी का यह किरदार निभाया है वहीदा रहमान ने। जब दोनों का प्यार शादी में तबदील हो जाता है तो राजा अमित उन्हें अपनी विशाल हवेली में ले आता है, जहां उनका स्वागत घर की पुरानी नौकर करती हैं। इस नौकर यानी दाई मां का रोल निभाया है ललिता पवार ने, जिसे वहीदा रहमान घर की सदस्या समझ कर पैर छू लेती है और नौकर हंस पड़ते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि राजा अमित अपनी दूसरी पत्नी का तारूफ नहीं करवाते हैं। उनका यह बर्ताव भी समीक्षा के घेरे में आता है। कहानी आगे बढ़ती है तो घर का रहस्यमयी माहौल राजेश्वरी को कचोटने लगता है खासकर जब कई-कई दिन राजा अमित काम के सिलसिले में घर से बाहर रहते हैं। बिना हवा के परदों का सरकना, दरवाजे खुल जाना, अनाम पदचापों की खौफनाक आवाजें और दाई मां का राजेश्वरी से बुरा बर्ताव। सिरहानों के गिलाफों पर ‘पी’ तौलिये पर ‘पी’ गाऊन पर ‘पी’, बिस्तरे की चादरों पर ‘पी’। इस ‘पी’ ने राजेश्वरी को डिस्टर्ब करके रख दिया, उस पर दाई मां के राजा अमित की पूर्व पत्नी की बात-बात पर कसीदे पढ़ना, उसकी ड्रेस सेंस, उसका मैनरिज्म, उसकी अदाएं, उसकी खूबसूरती की तारीफ करके दाई मां राजेश्वरी को उसके अनाथ होने का और अहसास कराती। दाई मां की ये बातें उसे और छोटा महसूस करवाती। घटती चली जाती घटना दर घटनाएं उसे बताती कि राजा अमित ने अपनी पहली पत्नी का कत्ल किया है क्योंकि उसने राजा को धोखा दिया था। तमाम ऐश्वर्यों के बावजूद वह कमल को प्यार करती थी। उसकी लाश मिलने पर पुलिस राजा अमित को गिरफ्तार कर लेती है। केस के अंत में जब अदालत राजा अमित को फांसी की सजा सुनाने वाली होती है, दाई मां कठघरे में खड़ी हो जाती है और अदालत को बताती है कि राजा अमित की पूर्व पत्नी का कत्ल उसी ने ही किया है क्योंकि वह जानती थी कि वह राजा को धोखा दे रही है। एक रोज जब वह नदी के पार गेस्ट हाउस में अपने प्रेमी के साथ शराब पीकर मदहोश थी तो दाई मां ने उसका कत्ल कर दिया। हालांकि इतना बड़ा कदम उठाने की कोई ठोस वजह नहीं बतायी कि अगर वह राजा अमित से धोखा कर रही थी तो उसके पेट में मरोड़ क्यों पड़ रहे थे? ये मरोड़ तो राजा अमित को पड़ने चाहिए। राजा दाई मां के बयान के बाद बच जाता है। हालांकि, फिल्म की कहानी मंथर गति से चलती है तथापि वीरेंद्र नाग के निर्देशन की दाद देनी चाहिए जो दर्शकों को पल भर के लिए भी बोर नहीं होने देती। हालांकि, फिल्म की कहानी किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचती नजर नहीं आती लेकिन जीएल जाधव और टीके देसाई ने जो सेट लगगाये थे, उन्होंने कहानी को कहानी नहीं रहने दिया। रही-सही कसर मार्शल ब्रिगैंजा की फोटोग्राफी ने निकाल दी। उन्होंने अपनी फोटोग्राफी से ऐसे माहौल की रचना की कि फिल्म के टाइटल से मेल खाने लगा। उन्होंने कमाल की रोशनियों का प्रयोग किया। उन्होंने अपनी फोटोग्राफी से दर्शकों को देर तक भ्रम में डाले रखा कि विशाल हवेली कुछ और नहीं बल्कि एक खंडहर है। पाठकों को यह फिल्म जरूरी देखनी चाहिए।
निर्माण टीम
निर्देशन : वीरेन नाग
प्रोड्यूसर व संगीतकार : हेमंत कुमार
कहानी : ध्रुव चटर्जी
गीत : कैफी आजमी
सिनेमैटोग्राफी : मार्शल ब्रिगैंजा
सितारे : वहीदा रहमान, विश्वजीत, ललिता पवार, मदनपुरी, तरुण बोस आदि
गीत
ये नयन डरे डरे : हेमंत कुमार
राह बनी खुद मंजिल : हेमंत कुमार
ओ बेकरार दिल : लता मंगेशकर
झूम झूम ढलती रात : लता मंगेशर