शारा
यह फिल्म 1965 में रिलीज हुई थी जिसे प्रोड्यूस किया था पन्नालाल माहेश्वरी ने। गुलशन नन्दा के उपन्यास माधवी की कहानी है काजल फिल्म की जिसको पटकथा में तबदील किया था फणि मजूमदार ने, जबकि संवाद लेखन में सहयोग दिया था किदार शर्मा ने। साहिर लुधियानवी के गीतों को सुरबद्ध किया था रवि ने। वही रवि जिसे साहिर लुधियानवी ने बॉलीवुड में एंट्री दिलायी। जितना बढ़िया गुलशन नंदा ने माधवी नॉवेल लिखा, उतनी ही अच्छी निर्देशक राम माहेश्वरी ने फिल्म बनायी। यह वही माधवी है, जिसके नाम से ही गुलशन नंदा रातोंरात अमीर हो गये थे। हर तीसरा युवा पाठ्यपुस्तक के बीच नॉवेल रख कर पढ़ता था ताकि घर वाले न देख लें। यह दिक्कत लड़कियों को खूब आती थीं क्योंकि उन दिनों जवां लड़कियों के लिए रोमांस की कहानियां वर्जित थीं और गुलशन नंदा की कहानियों में रोमांस होता था—यह बात उस भले ज़माने के माता-पिता बखूबी जानते थे। इस फिल्म में धर्मेंद्र के साथ मीना कुमारी और राजकुमार थे। एक अन्य हीरोइन भी थीं पद्मिनी, पुरानी वाली। पाठकों को उनका चेहरा याद करा दूं—‘जिस देश में गंगा बहती है’ में जिस हीरोइन ने कम्मो का रोल किया था, वही पद्मिनी है। इन चारों हीरो-हीरोइनों ने अभिनय के मामले में एक-दूसरे को तो टक्कर दी ही है, साथ ही खूबसूरती और चेहरों की तरोताजगी के मामले में भी। धर्मेंद्र तो खूबसूरत, बांके दिखे ही हैं, पद्मिनी का गठीला शरीर दिखाया जाना धर्मेंद्र की हीरोइन बनने की दावेदारी पुख्ता करता है। सलेक्शन में निर्देशक की दाद दी जानी चाहिए। मीना कुमारी पहले की तरह पूरी फिल्म को ढोती फिर रही हैं। यहां भी मीना कुमारी ने अपना रोना-धोना जारी रखा है। ‘छू लेने दो नाजुक होठों को’ इसी फिल्म का गीत है जिसे राजकुमार पर फिल्माया गया है। क्या सुंदर बिगड़ैल शराबी शहजादे की एक्टिंग की है। कई दर्शक तो इसी गीत को देखने के लिए जाते थे। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट रही। इतनी हिट रही कि उस साल की कमाऊ फिल्मों में इसका दसवां नंबर था। बाद में इसे तेलुगू में भी बनाया गया। पाठक इस फिल्म की कमाई का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि इसने उस वक्त भी दो करोड़ रुपये कमाये थे जो कि आज कितने होंगे, पाठक अंदाज़ा लगा सकते हैं। ‘तोरा मन दर्पण कहलाये’—जी, इसे लता मंगेशकर ने नहीं बल्कि आशा भोसले ने गाया है। इस भजन में आशा की आवाज़ लता का भ्रम देती है। राजकुमार पर फिल्माया गया ‘यह जुल्फ अगर खुलकर बिखर जाए तो अच्छा’ इसी फिल्म का गाना है। इस फिल्म ने कई पुरस्कार जीते कई जॉनर में नामांकन हुए। मीना कुमारी को बेस्ट एक्ट्रेस तो पद्मिनी फिल्मफेयर का सपोर्टिंग एक्ट्रेस का पुरस्कार ले गयीं। एक ही गीत गाने के लिए (छू लेने दो नाजुक होंठों को) मोहम्मद रफी को सर्वोत्तम पार्श्व गायक का फिल्मफेयर मिला। राजकुमार का नामांकन फिल्म फेयर अवार्ड के लिए बेस्ट एक्टर के तौर पर हुआ था। साथ ही बेस्ट स्टोरी के लिए गुलशन नंदा का नामांकन हुआ था। स्टोरी पढ़कर स्वयं देख लीजिए कि यह फिल्म इतने पुरस्कारों की हकदार है या नहीं। रानी मां (दुर्गा खोटे) का मुनीम अपने छोटे-छोटे बच्चों कौशल व माधवी के साथ रहता था लेकिन मुनीम के निधन के बाद रानी मां दोनों बहन-भाइयों कौशल व माधवी को लेकर हवेली आ गयी ताकि उसके इकलौते बेटे राजा (धर्मेंद्र) के साथ भी रहेंगे और उनकी परवरिश भी ठीक होगी। साल दर साल गुजरते गए और राजेश (धर्मेंद्र) किशोर से बांका गबरू में तबदील हो गया था। रानी मां उसके लिए लड़की ढूंढ़ ही रही थी कि राजेश की आंख भानु सक्सेना (पद्ममिनी) से लड़ गयी। राजेश कौशल और माधवी के साथ बोटिंग कर रहा था कि उसकी वहां हादसे में मौत हो जाती है, जिसका कसूरवार राजेश खुद को और रानी मां को ठहराता है। कुछ दिन बाद राजेश और भानु की शादी हो जाती है और वह राजेश के घर आ जाती है। यहीं पर कहानी मोड़ लेती है क्योंकि भाई की हादसे में मृत्यु हो जाने के कारण माधवी रानी मां की हवेली में रहती है, जिसे भानु बर्दाश्त नहीं करती और चाहती है कि वह हवेली से बाहर चली जाये। वह उस पर शक करती है। जिस दिन भानु ने माधवी पर राजेश से गैर-कानूनन ताल्लुकात का आरोप लगाया काजल ने ज़हर खा लिया था। वह नदी में डूब जाती, लेकिन मोती (राजकुमार) ने बचा लिया। राजेश ने माधवी के लिए मोती को पसंद कर लिया। जब यही बात मोती से पूछी तो वह सहर्ष तैयार हो गया, लेकिन न तो यह बात माधवी जानती थी और न ही राजेश कि माधवी की शादी मोती के एजेंडे में शामिल थी। मोती कहां से आया? राजेश सही मायने में माधवी का क्या लगता है? मोती ने किसे घर से निकाल दिया—इन सवालों का जवाब फ्लैशबैक के पाठक देंगे ताकि वे इतनी खूबसूरत फिल्म मिस न कर दें।
निर्माण टीम
प्रोड्यूसर : पन्ना लाल माहेश्वरी
निर्देशक : राम माहेश्वरी
मूलकथा : फणि मजूमदार
संवाद : किदार शर्मा
गीत : साहिर लुधियानवी
संगीत : रवि
सिनेमैटोग्राफी : सुधीन मजूमदार
सितारे : मीना कुमारी, धर्मेंद्र, राजकुमार, पद्मिनी, शोभा खोटे आदि
गीत
छू लेने दो नाजुक होठों को : मोहम्मद रफी
यह जुल्फ अगर खुल के : मोहम्मद रफी
कबीरा निर्भया नाम : आशा भोसले, मोहम्मद रफी
जरा सी और पिला दो : आशा भोसले, मोहम्मद रफी
तोरा मन दर्पण कहलाये रे : आशा भोसले
मेरे भैया मेरे चंदा : आशा भोसले
छम छम घुंघरू बोले : आशा भोसले
अगर मुझे न मिली तुम : महेंद्र कपूर, आशा भोसले
आपके पास जो आएगा : महेंद्र कपूर
मुद्दत की तमन्नाओं का सिला : महेंद्र कपूर