शारा
तीन पीढ़ियों की एक साथ फिल्म में मौजूदगी ही इस फिल्म की यूएसपी थी जो 1971 में रिलीज हुई थी। यह फिल्म एक तरह से भरपाई थी। राजकपूर ‘मेरा नाम जोकर’ फिल्म बनाकर पिट चुके थे क्योंकि उस फिल्म का सबजेक्ट बड़ा टेढ़ा था। ख्वाजा अहमद अब्बास की कहानी थी और यह विद्वता दर्शकों के शायद गले से नहीं उतरी। बहुतेरे इनाम जीतने और समीक्षकों की वाहवाही के बावजूद फिल्म जब पिटी तो राजकपूर अर्श से फर्श पर आ गये। यह फिल्म 1970 में रिलीज हुई थी। राजकपूर प्रोडक्शन को घाटे से उबारने के लिए उन्हें कोई ऐसी फिल्म चाहिए थी जो उनका खाली गल्ला भर दे। हालांकि, ‘कल आज और कल’ बॉक्स ऑफिस पर ठीक-ठीक ही चली लेकिन कपूर खानदान की तीन-तीन पीढ़ियों की उपस्थिति देखने के लिए लोग फिल्म हाल में पहुंचते रहे। राजकपूर शो मैन थे, लिहाजा जवान होते बेटे का झुकाव बबीता की ओर देखकर उन्होंने एक तीर से दो निशाने साधे। एक तो किसी न किसी रूप में दर्शकों से जुड़े रहे, दूसरा बेटे को इसी बहाने निर्देशक बना दिया। इस फिल्म को इसलिए भी याद किया जाता है क्योंकि पृथ्वीराज कपूर की यह अंतिम फिल्म थी, जिसके रिलीज होते ही उनका निधन हो गया। इस फिल्म में बबीता नायिका थी जो जाने-माने फिल्म हस्ताक्षर हरि शिवदसानी की बेटी हैं। हरि शिवदसानी ने एंग्लो इंडियन बारबरा से शादी की थी इसलिए बबीता गोरी-चिट्टी हैं। बबीता जानी-मानी नायिका साधना की चचेरी बहन हैं लेकिन दोनों के बीच खासा पारिवारिक मनमुटाव था। बहरहाल, कपूर खानदान पर चर्चा बंद करके फिल्म की ओर चलते हैं। इस फिल्म के गीत काफी चर्चित रहे जो कि अक्सर राजकपूर की फिल्मों के साथ होता है। और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि राजकपूर गाते भी थे। उन्हें संगीत की बारीकियों की काफी समझ थी। इस फिल्म में ‘तितली उड़ी’ गीत गाने वाली शारदा को राजकपूर ने ही बॉलीवुड में एंट्री दी थी। दक्षिण के ब्राह्मण परिवार की शारदा अय्यंगर को उन्होंने किसी पारिवारिक समारोह में गाते हुए सुना था। फिल्म फेयर पुरस्कारों में फीमेल वॉयस की कैटेगरी उन्हीं की बदौलत शुरू हुई थी। हुआ यह कि ‘सूरज’ फिल्म का गीत ‘तितली उड़ी’ मोहम्मद रफी के गीत ‘बहारो फूल बरसाओ’ के साथ टाई हो गया और रफी साहब ही पुरस्कार ले उड़े। तब से लेकर फिल्मों में गायिका को भी फिल्मफेयर पुरस्कारों की पृविष्टियों के लिए आमंत्रित किया जाने लगा। इससे पहले सिंगर की एक ही एंट्री होती थी। फीमेल एंट्री शारदा की इसी टाई के बाद शुरू हुई। हालांकि, तब मंगेशकर बहनों का बोलबाला कम नहीं था। फिर वह लगातार चार सालों के लिए इसी पुरस्कार के लिए नामांकित होती रहीं और दो सालों के छोटे से अंतराल के लिए उन्होंने दो फिल्मफेयर पुरस्कार जीत लिये वह जितनी शास्त्रीय संगीत में पारंगत थीं, उसी शिद्दत से पॉप म्यूजिक भी गाती थीं। उन्होंने उस जमाने में भी ‘सिज़लर्स’ नामक पॉप वीडियो निकाला था। फिल्म ‘अराउंड द वर्ल्ड’ का गीत ‘दुनिया की सैर कर लो’ और ‘सीमा’ फिल्म का गीत ‘जब भी यह दिल उदास’ उन्हीं का गाया हुआ है। लब्बोलुआब यह कि वह हर किस्म के गाने गाती थीं। वह सिर्फ शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में ही गाती थीं। उनका अंतिम फिल्म में गाया गीत 1986 में रिकार्ड हुआ था। आलोच्य फिल्म के गीत भी शंकर जयकिशन के संगीतबद्ध किए हुए हैं और आज भी खूब चलते हैं। हल्के-फुल्के ये गीत हर किसी की जुबान पर चढ़ते हैं। ‘आप यहां आये किस लिये’ और ‘भंवरे की गुंजन’ उतना ही लोकप्रिय हुआ जितना कि ‘टिक टिक चलती जाये घड़ी’ और ‘हम जब होंगे साठ साल के’ व अन्य गीत हुए थे। ये गीत वीरेन्द्र सिन्हा के रचे हुए हैं। जैसे कि फिल्म के टाइटल से ही लगता है कि फिल्म कल (पृथ्वीराज कपूर) आज (राजकपूर) और कल (रणधीर कपूर) के बीच मूल्यों का टकराव है। खासकर कल और आने वाले कल के बीच जो आदर्शों का टकराव है, उसमें पिसता है आज, जो कोल्हू का बैल भी है और आटे का घुन भी। थोड़े आदर्श बीते कल के और थोड़ी बातें आने वाले कल की मानकर आज दोनों को खुश रखना चाहता है लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। दूसरों को सुखी रखने के लिए उसने जो स्वयं के अरमानों को दरकिनार किया है, उसका भान उसे बाद में होता है। यही बात बीते कल और आने वाले कल को घर कर जाती है और अंत भला सो सब भला। राम बहादुर कपूर (राजकपूर) खाते-पीते घर का लड़का है जो अपने पिता दीवान बहादुर कपूर (पृथ्वीराज कपूर) के साथ रहता है। राम बहादुर कपूर का इकलौता बेटा राजेश कपूर (रणधीर कपूर) उच्च शिक्षा के लिए लंदन पढ़ने गया है। उसके दादा दीवान बहादुर कपूर ने उसकी शादी अपने बचपन के साथी की पोती से तय कर रखी है। जबकि राजेश मोनिका (बबीता) से प्यार करता है। जब राजेश अपनी पढ़ाई पूरी करके स्वदेश लौटता है तो उसे दादा की इस बात का पता चलता है। अब घर में ही तलवारें खिंच जाती हैं। दादा अडिग हैं अपने दोस्त को दी जुबान पर और पोता अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीना चाहता है। एक करेला तो दूसरा नीम चढ़ा। दोनों की इस हठधर्मिता का शिकार होता है राम बहादुर जो एक का बाप है और दूसरे का बेटा। इसी कारण वह घर छोड़कर कहीं और रहना शुरू कर देता है। अब तक जो दादा-पोता आपस में लड़-झगड़ रहे थे, राम बहादुर के जाते ही शांत होने का अभिनय करने लगते हैं ताकि राम बहादुर को दोबारा घर बुलाया जा सके। लेकिन अभिनय करते-करते दोनों सचमुच में एक-दूसरे को दिलोजान से चाहने लगते हैं। अपनी-अपनी बात पर अड़े दादा-पोता अब एक-दूसरे के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने को तैयार हैं। नतीजतन राम बहादुर घर वापस आ जाते हैं क्योंकि राजेश उसी लड़की से शादी करने के लिए तैयार हो जाता है जो उसके लिए उसके दादा ने पसंद करके रखी है। लेकिन जब शादी होती है तो उसी मोनिका (बबीता) से होती है जिसे राजेश प्यार करता है क्योंकि दादा ने ऐसा करना चाहा। और अंत भी दादा के इस डायलॉग से होता है ‘बच्चू, अगर तुम अपने दादा का कहना मान सकते हो तो क्या मैं इतना भी तुम्हारे लिये नहीं कर सकता ?’
निर्माण टीम
प्रोड्यूसर : राज कपूर
निर्देशक : रणधीर कपूर
संवाद व कथा लेखक : वीरेंद्र सिन्हा
गीत : वीरेन्द्र सिन्हा
संगीत : शंकर जयकिशन
सिनेमैटोग्राफी : तारु दत्त
सितारे : पृथ्वीराज कपूर, राज कपूर, रणधीर कपूर, बबीता, इफ्तेखार, अचला सचदेव, डेविड अब्राहिम आदि
गीत
आप यहां आये : किशोर कुमार, आशा भोसले
भंवरे की गुंजन : किशोर कुमार
हम जब होंगे साठ साल के : किशोर कुमार, आशा भोसले
टिक टिक चलती जाए घड़ी : मुकेश, आशा भोसले, किशोर कुमार
एक पांव चल रहा है : मन्ना डे
किसी के दिल को : शारदा