शारा
लगभग ऐसी फिल्म ‘मीरा’ के टाइटल से भी बनी थी, लेकिन वह विशुद्ध मीरा के जीवन पर आधारित थी, जिसमें हेमा मालिनी ने मीरा का किरदार निभाया था। कन्हैया की कहानी भी लगभग ऐसी-ऐसी है। फर्क सिर्फ इतना है कि फिल्म की केंद्रीय कलाकार पारो (नूतन) जिस कन्हैया को चाहती है, दरअसल वह गांव का शराबी-कबाबी कन्हैया न होकर मुरली वाला कृष्ण कन्हैया है। यहां पारो बनी नूतन ने जिस तरह मीरा जैसी प्रेम आसक्ति और भक्ति के अलावा जैसी बेखुदी दिखायी है, हेमा मालिनी का तो रोल ही मीरा का था, मगर अभिनय में वह पैनापन, वह शिद्दत नहीं आ पायी है बजाय इसके वह कान्हा की भक्तिन बनी मथुरा आती-जाती हैं, वहां नृत्य के कार्यक्रम करती हैं, वहां से चुनाव लड़ती हैं। नूतन की यह फिल्म है ही ऐसी कि तुलनात्मक अध्ययन हो ही जाता है। मीरा के जीवन को आधार बनाकर यह कहानी कॉमेडी के बादशाह ओमप्रकाश ने लिखी है और उन्हीं ने ही फिल्म को डायरेक्ट किया है। वही दस लाख फिल्म में दिलीप कुमार के भाई बने ओमप्रकाश जो भदेस भूमिकाओं में खूब सजते हैं। पाठकों को बता दें कि यह ओमप्रकाश जम्मू के पहाड़ी थे, जिनको बाल्यावस्था में ही अभिनय का शौक था। गली-मोहल्ले में आयोजित होने वाले छोटे-मोटे नाटकों में वह महिला कलाकार की भूमिकाएं करते थे। उन्होंने अपने जीवन में एक ही फिल्म निर्देशित की थी लेकिन निर्देशन का यह कीड़ा जल्दी ही मर गया फिर वह सहायक भूमिकाओं में खूब दिखने लगे। उनका पूरा नाम ओमप्रकाश बख्शी था और पता चला है कि फिल्म प्रोड्यूस उनके भाई ने की थी। इस फिल्म में राजकपूर कन्हैया बने हैं। राजकपूर पर फ्लैशबैक में काफी चर्चा हो चुकी है। इस बार नूतन पर। नूतन तो नूतन ही थीं—ओल्ड गोल्ड शोभना सामर्थ और कुमारसेन की पहली संतान। वह उस जमाने में इंग्लिश स्कूल में पढ़ी थीं। उसके बाद स्विट्ज़रलैंड पढ़ने गयीं तो आते ही एक नेवी के अफसर रजनीश बहल को दिल दे बैठीं और बात शादी पर आकर खत्म हुई। मोहनीश उन्हीं के बेटे हैं। उनकी शदी से पहले उनके एकाउंट्स का सारा काम उनकी मां शोभना सामर्थ देखा करती थीं। जब नूतन के घर आयकर विभाग की रेड हुई तो नूतन की अपनी मां से लड़ाई हो गयी। बात कोर्ट-कचहरी तक पहुंची। दोनों मां-बेटी के बीच काफी साल अबोला रहा। नूतन को जब कैंसर हुआ तो उन्होंने मां के पास जाना ठीक समझा। बताते हैं कि जब नूतन ने शोभना सामर्थ से लड़ाई की तो शोभना सामर्थ की माली-हालत बड़ी पतली थी। घर के खर्चे पूरे करने के लिए छोटी बहन तनुजा को कमाने के लिए उतरना पड़ा था। भाई जयदीप अभी छोटा ही था। मां-बेटी के बीच इस लड़ाई के लिए कई लोग रजनीश बहल को भी दोषी ठहराते हैं। तब तक मोतीलाल से भी शोभना सामर्थ की खटपट हो चुकी थी। बताते हैं कि लिवइन रिलेशन की शुरुआत दबंग शोभना ने ही की थी। वह मोतीलाल के साथ अपने पति से तलाक के बाद काफी साल लिवइन रिलेशन में रही थीं। बहरहाल, बंदिनी, सीमा, सुजाता मिलन आदि ऐसी फिल्में हैं, जिनमें नूतन का किरदार देखकर उनके अभिनय की ऊंचाइयों का पता चलता है। ऐसा ही कुछ-कुछ इस फिल्म के साथ है।
गांव की छोरी सन्नो (नूतन) की लय उस प्रभु कन्हैया से लग जाती है। वह कृष्ण कन्हैया के प्रति इतनी आसक्त हो जाती है कि उसकी धुन में नाचती-गाती वह जंगलों, बियावान रास्तों पर कब निकल जाती है, यह उसे भी पता नहीं चलता। वह वीरान जगह इसीलिए जाती हैं ताकि कृष्ण कन्हैया की बांसुरी सुन सके। वह दिन-रात उसके ख्यालों खोयी रहती है कि एक दिन बावली होकर वह कन्हैया की बांहों में आकर गिरती है। वह कोई और नहीं बल्कि गांव का ही शराबी कबाबी है। वह उसे ही अब तक कन्हैया समझ बैठी थी। गांव में यह बात आग की तरह फैल गयी। पहले तो सन्नो के घर वालों ने ना-नुकर की फिर कन्हैया के साथ रिश्ते के लिए तैयार हो गये। शादी की तारीख मुकर्रर कर दी गयी। एक दिन कन्हैया शराब पीकर सन्नो के घर आ गया तो सन्नो के पिता ने रिश्ता तोड़ दिया और सन्नो को घर में बंद कर दिया। इस दौरान गांव में प्लेग फैल जाता है। सन्नो किसी तरह भागकर पहाड़ों, जंगलों में कन्हैया को ढूंढ़ती है, जहां कन्हैया उसे फिर मिलता है। कन्हैया गांव वालों को बुलाकर लाता है और उन्हें बताता है कि वह पेट से है क्योंकि वह भी उससे प्यार करती है जबकि सन्नो इससे इनकार करती है। वह सीता की तरह अग्नि परीक्षा देती है क्योंकि उसे विश्वास है कि कृष्ण कन्हैया उसे बचाने आयेंगे। कृष्ण कन्हैया तो बचाने के लिए नहीं आते, मगर शराबी-कबाबी कन्हैया सन्नो को ऐसा करने से रोकता है और कृष्ण भगवान को उसकी लाज रखने के लिए कहता है। तभी बारिश शुरू हो जाती है और सन्नो आग में जलने से बच जाती है। मगर इन सबके बीच वह शराबी कन्हैया को अपना लेती है क्योंकि वही एक व्यक्ति उसे अग्नि परीक्षा से बचाने आया था। बाकी चर्चित फिल्मों की तरह इस फिल्म में भी नूतन का अभिनय देखते ही बनता है। कई जज्बों को उन्होंने जिस बारीकी से अभिनीत किया है, वह काबिले-तारीफ है। भले ही वह प्यार, गर्व, डर, उम्मीद, गुस्सा, आशा, भक्ति की बात हो, ऐसे भाव नूतन ही अभिव्यक्त करती हैं। कहीं ओवर एक्टिंग नहीं। जैसी पिक्चर बन पायी है, वह महाभारत धारावाहिक का एक भाग लगता है जो मूवी बना दी गयी हो। क्योंकि अग्नि परीक्षा के दौरान सन्नो पर जल बरसना, यह तो महाभारत में ही संभव हो सकता है।
निर्माण टीम
प्रोड्यूसर : सन्त सिंह पंछी
निर्देशक : ओमप्रकाश
संवाद लेखन : जगदीश कंवल, डीएन मधोक
मूल व पटकथा : ओमप्रकाश
सिनेमैटोग्राफी : जी. सिंह
गीत : हसरत जयपुरी, शैलेन्द्र
संगीत : शंकर जयकिशन
सितारे : राजकपूर, नूतन, ललिता पवार, मदनपुरी आदि।
गीत
मुझे तुमसे कुछ भी न चाहिए : मुकेश
रुक जा ओ जाने वाली : मुकेश
ओ मेरे सांवरे सलोने पिया : लता मंगेशकर
नी बलिए रुत है बहार की : लता, मुकेश
ओ कन्हैया आज आना ख्वाब में : लता मंगेशकर
याद आयी आधी रात को : मुकेश
सावन आन कह गए दिल में : लता मंगेशकर
कहां है कहां है कन्हैया : लता मंगेशकर