शारा
कुंदन फिल्म 1955 से रिलीज हुई थी। यह अंग्रेजी फिल्म ‘लेस मिजरेबल्ज’ को मुख्य रख कर बनायी गयी थी। और यह फिल्म बनी थी विक्टर ह्यूगो के उपन्यास के आधार पर जिसकी रचना 1862 में हुई थी। जब ह्यूगो का उपन्यास होगा तो उसमें छलनी हुई विवश मानवीय संवेदनाएं भी होंगी। इसका हिंदी रूपांतर सोहराब मोदी की देखरेख में हुआ क्योंकि वही तो फिल्म के निर्देशक थे और वही प्रोड्यूसर। प्रोडक्शन कंपनी थी मिनर्वा मूवीटोन कंपनी। सोहराब मोदी का निर्देशन होगा तो कमाल तो उसमें होगा ही। उन दिनों सोहराब मोदी शेक्सपियर के सारे नाटक हिंदी में मंचित करते थे। उनकी स्टेज की पकड़ गजब की थी। मूक फिल्मों से पहले वह अपने भाई केकी मोदी के साथ नाट्य कंपनी चलाते थे, लेकिन जैसे ही फिल्मों में अभिनेता/अभिनेत्री गाने और गुनगाने लगे, उन्होंने फिल्मों का रुख कर लिया। ‘कुंदन’ उनकी बेहतरीन फिल्मों में से एक है। पाठकों को याद करवा दूं। वे शायद सोहराब मोदी का चेहरा भूल चुके हों। एक फिल्म थी यहूदी, जिसमें प्रेमनाथ ने यहूदी का किरदार निभाया था, उसमें पोरस बने थे सोहराब मोदी। उन्हीं सोहराब मोदी ने इस फिल्म में मुख्य किरदार निभाया था। उनके साथ थे निम्मी और एक डेब्यू चेहरा सुनील दत्त। इसमें गीत शकील बदायूुंनी ने लिखे थे। यह फिल्म कथानक के लिए जानी जाती है, जिसका हीरो रोटी चुराने के आरोप में जेल चला जाता है। उस समय में दुनिया के हर हिस्से का समाज ऐसा ही था। विश्व युद्धों ने सारी दुनिया में भुखमरी, गुरबत की सी स्थिति पैदा कर दी थी कि कानून रोटी चुराने वाले को भी सोना चुराने वाले चोर की सी सजा देता था। क्या हालात थे? मिनर्वा मूवीटोन प्रोडक्शन हाउस ऐसी ही फिल्में प्रोड्यूस करता था, जिसकी शुरुआत सोहराब मोदी ने की थी। उस समय पारसियों के पास ही पैसा होता था। और सोहराब मोदी पारसी थे, जिनके पिता अंग्रेजों के वक्त के आईसीएस ऑफिसर थे। सोहराब को शेक्सपियर ड्रामों का जनक कहा जाता है। ‘खून का खून’ फिल्म हैमलेट पर आधारित थी। फिल्म की नायिका निम्मी के बारे में भी बताती चलूं जो फिल्म उड़नखटोला की नायिका थी, उसी निम्मी ने इस फिल्म में डबल रोल निभाया है। एक मां का, बेटी का। निम्मी का असली नाम नसीब बानो था। राजकपूर ने उन्हें निम्मी नाम दिया था। इसके संगीत निर्देशक गुलाम मुहम्मद थे। यह बात दूसरी है कि फिल्म के गाने काफी लोकप्रिय नहीं हुए। इस फिल्म में उल्हास ने वाकई ही उम्दा काम किया। इसीलिए उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड के लिए नामांकित किया गया। इसमें ओमप्रकाश ने भी काम किया है। वह निम्मी के भाई बने हैं। यह फिल्म आर्ट डायरेक्शन के लिए भी जानी जाती है। इसके आर्ट डायरेक्टर थे रूसी के बनकर। रूसी ने जो भूमिगत ड्रेनेज सेट डिजाइन किया था, हूबहू अंग्रेजी फिल्म जैसा था। उस समय हालांकि, बॉलीवुड फिल्मों के पास सीमित तकनीकी साधन थे।
फिल्म की कहानी इस प्रकार है-फिल्म स्टार्ट ही इस सीन से होती है कि कुंदन बना सोहराब मोदी अपनी बीमार मां तथा जवां बहन राधा का पेट भरने के लिए किसी के किचन में से रोटी चुराता है और पुलिस उसे जेल में डाल देती है। हालांकि, इससे पहले उसने भिक्षा मांगी, काम मांगा, मगर किसी अमीरजादे ने उसे नौकरी नहीं दी। विवश होकर उसने रोटी चुरायी। जज ने उसे दो साल की कैद की सज़ा सुनायी। जेल में उसे मिलने उसकी भानजी आती जो उसे उसकी मां के निधन की खबर देती है, कुंदन किसी तरह जेल की सलाखों को तोड़कर भाग जाता है। जेल से भागने के आरोप में उसे पांच साल की और सज़ा हो जाती है। दूसरी बार भी वह जेल से भागने की कोशिश में पकड़ लिया जाता है और उसे सात साल की सज़ा हो जाती है। कुंदन जेल में कुल 14 साल बिताता है। तब तक राधा (निम्मी) की शादी गोपाल (प्राण) से हो जाती है और उनके यहां उमा नामक बेटी भी हो जाती है। चूंकि प्राण तो प्राण हैं उनसे क्या अपेक्षा की जा सकती है। वह बुरी संगत में है और एक दिन राधा के सारे गहनों के साथ भाग जाता है। राधा उमा के साथ टी-स्टॉल के मालिक ओमप्रकाश व उसकी पत्नी मनोरमा के यहां शरण लेती है। ओमप्रकाश उसे बहुत थोड़े पैसों के लिए काम पर रख लेता है। इधर जब कुंदन जेल से रिहा होता है तो राधा को ढूंढ़ता है, लेकिन पड़ोसी उसे डाकू कहकर भगा देते हैं। विवश होकर वह गुरुदेव (मुराद) की शरण लेता है जो उसे मिट्टी के बर्तन बनाना सिखाता है। वहां काम करते हुए वह राधा व उमा से भी मिलता है। बीमारी के कारण राधा का निधन हो जाता है और उमा (जवां निम्मी) अमृत (सुनील दत्त) को दिल दे बैठती है। अमृत भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़ा है और उसके पीछे पुलिस पड़ी है। एक बार पुलिस कर्मियों और आंदोलनकारियों की जबरदस्त मुठभेड़ होती है और आंदोलनकारी शेर सिंह (उल्हास) को बंदी बना लेते हैं, लेकिन कुंदन उन्हें छुड़ा लाता है। क्योंकि यह वही शेर सिंह है जो जेल में कुंदन को सुधारता था। शेर सिंह को छुड़ाने के दौरान कुंदन और अमृत में झड़प होती है और अमृत घायल हो जाता है। कुंदन उसका अस्पताल में उपचार कराता है तो उसे शेर सिंह की ओर से एक खत मिलता है, जिसमें उसने लिखा है कि वह ऐसे दोनों व्यक्तियों के भागने में मदद कर रहा है जो कानून के अपराधी है। इसलिए अपनी ड्यूटी में कोताही के अपराधबोध से वह खुद को खत्म कर रहा है। कुंदन उसे नदी में कूदने से बचा लेता है। उमा और अमृत की शादी हो जाती है और गोपाल कुंदन से माफी मांगता है। कहानी यहीं खत्म हो जाती है। सोहराब ऐसे ही सामाजिक मुद्दों को लेकर फिल्में बनाते थे और उस वक्त उनकी फिल्में चलती भी खूब थीं।
निर्माण टीम
प्रोड्यूसर व निर्देशक : सोहराब मोदी
पटकथा : पंडित सुदर्शन
संवाद : मुंशी अब्दुल, पंडित सुदर्शन
गीत : शकील बदायुंनी
संगीत : गुलाम मुहम्मद
सिनेमैटोग्राफर : एमएन मल्होत्रा, लतीफ भंडारे
कला निर्देशन : रूसी के बनकर
सितारे : सोहराब मोदी, निम्मी, सुनील दत्त, उल्हास, प्राण आदि
गीत
नौजवानो भारत की तकदीर बनो : मोहम्मद रफी
शिकायत क्या करूं ? : लता मंगेशकर
जहां वाले हमें दुनिया में : लता मंगेशकर
मेरी आंखों के तारे : लता मंगेशकर
ये बहारों के दिन : लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी
मतवाले ओ नैनों के तीर : रफी, लता
होश में आ मूर्ख बंदे : मन्ना डे
मेरी जान तुमने गैर को पान खिलाया : गीता दत्त, रफी
आओ हमारे होटल में : एसडी बातिश, सुधा मल्होत्रा
मेरा भोला बालम : मुबारक बेगम