शारा
जिन हरे-भरे जंगलों में सुदूर तक बिखरे सन्नाटे को तोड़ते हुए दिलीप कुमार ‘सुहाना सफर और यह मौसम हसीन’ गीत गाते हुए मंजिल की तरफ बढ़ते दिखाई देते हैे, हकीकत में वे कुमाऊंनी पहाड़ियां नहीं, बल्कि बॉम्बे (मुंबई) के निकट बसी एक मिल्क कालोनी है, उसी लोकेशन पर यह विशाल सेट तैयार किया गया था। इस गीत की शूटिंग दो बार हुई। पहली कुमाऊंनी पहाड़ियों (रानीखेत) पर और दूसरी बार आरे मिल्क कालोनी बम्बई के सेंट पर। इस फिल्म (मधुमति) के नाम पर कई रिकार्ड हैं जिन्हें गिनते-गिनाते फ्लैशबैक छोटा पड़ जाएगा। फिर भी कुछ गिना दें। छठा हिंदी सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार (बिमल रॉय), फिल्म फेयर में सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता दिलीप कुमार, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री वैजयंती माला, सर्वश्रेष्ठ सपोर्टिंग एक्टर जॉनी वॉकर, सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक सलिल चौधरी, सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका लता मंगेशकर, सर्वश्रेष्ठ कहानी ऋत्विक घटक सर्वश्रेष्ठ संवाद राजेंद्र सिंह बेदी सर्वश्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफी दिलीप गुप्ता, सर्वश्रेष्ठ संपादन हृषिकेश मुखर्जी आदि। 12 सितंबर, 1958 को रिलीज हुई यह फिल्म बॉलीवुड की पहली फिल्म है जो पुनर्जन्म कहानी पर बनी है। उसके बाद तो कर्ज, महबूबा, ओम शान्ति ओम जैसी कई फिल्में आयीं और चलीं भी खूब लेकिन जो रिस्पांस मधुमति को मिला, वह किसी को नहीं मिला। उसका कारण था विमल दा का सशक्त निर्देशन। एडिटिंग में, निर्देशन में ऐसा कसाव था कि फिल्म झूठी नहीं लगती, न ही अपने लक्ष्य से भटकी। जो कुंडली को नहीं मानते थे और जिनका ऐसी कहानियों में विश्वास नहीं, उन्होंने भी फिल्म को खूब सराहा। कुंडली में जब केतु और बृहस्पति 12वें, छठे घरों में बैठ या दृष्टि डाले, उस पर चन्द्रमा भी ऐसी जगह बैठे, जहां से उसकी टेढ़ी दृष्टि पड़ती हो तो पंडित लोग ऐसे व्यक्ति को पुनर्जन्म की बातें बताने वाला बताते हैं। फ्लैशबैक को यकीन है कि फिल्म के हीरो का भी ऐसा ही केमिकल लोचा रहा होगा। दूसरा रिकार्ड हर वर्ग में सबसे ज्यादा अवार्ड जीतने का है जो अगले 37 साल तक बरकरार रहा। इसी पुनर्जन्म के विषय को लेकर दूसरी प्रांतीय भाषाओं के निर्देशकों, प्रोड्यूसरों ने खूब फिल्में बनायीं। हिन्दी में तो रिवाज़ चल निकला। तीसरा रिकार्ड था सबसे ज्यादा कमाऊ फिल्म का होना। उसी वक्त उसने 40 मिलियन सिर्फ देश में ही कमाये। यानी उस समय इसकी कमाई 4 करोड़ तक जा पहुंची, जिसमें दो करोड़ विशुद्ध मुनाफा था। बांग्ला फिल्म निर्देशक विमल रॉय ताजी-ताजी चोट देवदास की खा कर बैठे थे। देवदास के बाद वे ऐसी कमर्शियल हिट चाहते थे जो उनके घाटे की भरपाई कर दे। देवदास हालांकि अभिनय का शाहकार थी। इस फिल्म में भी यही टीम थी जो मधुमति में थी। इस फिल्म के गाने क्या थे? जिन्हें विमल दा ने मनोहारी सिंह से कंपोज कराया था। मनोहारी सिंह को कलकत्ता से लाये थे। हालांकि सभी गीतों को सुरबद्ध करने वाले सलिल चौधरी थे। उनकी देखरेख में 11 गीत रिकार्ड किए गए जिन्हें गाया था मुकेश, लता, मन्ना डे, मोहम्मद रफी, मुबारक बेगम आदि ने। इनकी धुनें पहले तैयार कर ली गयी थीं जिन्हें गीतों में ढाला शैलेन्द्र ने। अगर फ्लैशबैक के पाठकों ने ‘जागते रहो’ फिल्म देखी होगी तो मैं यहां याद कर दूं उसका बैकग्राउंड म्यूजिक इसी को विस्तारित करके ‘आ जा रे परदेसी’ गीत की धुन तैयार की गयी। सबसे ज्यादा गीत बिका ‘सुहाना सफर।’ बिमल दा की इस फिल्म ने तो पौ बारह की ही सलिल चौधरी का भी गल्ला भारी हो गया। इसे 12 सितंबर को ओपेरा हाउस के निकट बने रॉक्सी सिनेमा हाल में दिखाया गया। यह बालीवुड की पहली फिल्म थी जिसे विदेशी धरती पर ले जाया गया। इसे फिल्म फेस्टिवल चैकोस्लोवाकिया में दिखाया गया। सोवियत अभिनेत्री तात्याना ने दिलीप कुमार की हीरो के रूप में फोटो ली और बारबरा पोलेमस्का ने क्लैपर का अभिनय किया। इसके बाद तो मद्रास में कई जगहों पर इसके शो हुए। मेघना गुलजार ने कई साल बाद लिखा था ‘मधुमति एक श्वेत और श्याम कविता है।’ जावेद अख्तर लिखते हैं ‘मधुमति ने भारतीय सिनेमा, भारतीय टेलीविजन यहां तक कि विश्व सिनेमा तक के लिए पुनर्जन्म के विषय को लेकर दरवाजे खोल दिये।’ आओ इस फिल्म की कहानी के बारे में बताएं। एक तूफानी रात को इंजीनियर देवेंद्र अपने दोस्त के साथ रेलवे स्टेशन की ओर जाता है ताकि वह पत्नी व बेटी को घर ला सके। तूफान इतना भयंकर था कि बीच सड़क एक भारी-भरकम पेड़ गिर जाता है और लाख कोशिशों के बावजूद उस पेड़ को ड्राइवर और दोस्त की मदद से हटा नहीं सका और निकट बने महलनुमा घर में शरण लेता है, जहां बूढ़े बाबा के सिवाय घर में कोई नहीं था। मगर सामने ऐसी तस्वीर टंगी हुई थी जो उसकी शक्ल से हूबहू मिलती है। उसे देखकर वह पुरानी यादों में खो जाता है और बाबा कैसे उसे उसकी पुरानी कहानी बताता है कि आनंद श्यामनगर टिम्बर एस्टेट का नया मैनेजर है। खाली समय में वह पेंटिंग करता है और जंगलों में घूमता है। तभी उसकी मुलाकात एक कबीलाई लड़की मधुमति से होती है, जिसके गीत उसे खींचकर उस तक ले आते हैं। दोनों के बीच प्यार पनपने लगता है। आनंद का मालिक उग्र नारायण सिंह बेहद निर्मम और चाल-चलन का बुरा आदमी है। वह आनंद से वैसी ही जी-हजूरी कराना चाहता है जैसे बाकी स्टाफ से करता है। इससे खफा उग्र नारायण आनंद को टिम्बर एस्टेट के कार्य से बाहर भेजता है। जाने से पूर्व वह जब मधुमति से मिलने जाता है तो उसे पता चलता है कि उसे उग्र नारायण ने उठवा लिया है। वह उग्र नारायण का सामना करता है मगर उसके आदमी आनंद को बुरी तरह पीटते हैं। वह बेहोश हो जाता है। जब उसे बेहोशी की हालत में महल से बाहर ले जाते हैं तो मधुमति के पिता के साथ उनका टाकरा होता है जो अपनी बेटी को वापस लाने के लिए आया है। उग्र नारायण के बंदे उसकी भी पिटाई करते हैं और उसे मौत के घाट उतार देते हैं। चरणदास (जॉनी वाकर) छिप कर देखता है और आनंद की बॉडी को अस्पताल ले जाता है। आनंद की जान तो बच जाती है मगर दिमाग अभी भी यहां-वहां घूमता है। तभी वह माधवी नामक लड़की को मिलता है, जिसकी शक्ल हू-ब-हू मधुमति से मिलती है। जब उसके पास अपना स्कैच देखती है तो वह विश्वास कर लेती है कि आनंद सच बोल रहा है। वह आनंद की कहानी सुनती है। कहानी बताते-बताते उसे माधवी में मधुमति नजर आती है। वह माधवी को बताता है कि वह मधुमति है और उग्र नारायण ने उसकी हत्या कर दी थी। वह माधवी से आग्रह करता है कि वह उग्र नारायण के सामने मधुमति होने की एक्टिंग करे, जिसके लिए वह मान जाती है। आनंद उग्र नारायण से उस का पोट्रेट बनाने की अनुमति लेता है। कुछेक स्ट्रोक ही लगाता है कि उसे अपने सामने मधुमति खड़ी नजर आती है, जिससे वह हिल जाता है और वह भय से मान लेता है कि उसने मधुमति की हत्या की थी। इस पर बाहर खड़ी पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेती है। तभी आनंद माधवी को मधुमति की हत्या वाली जगह दरयाफ्त करने को कहता है। इस पर माधवी हंसती है जो इस वक्त मधुमति के रूप में है। तभी आनंद को याद आता है कि वह रास्ते में कार खराब होने की वजह से लेट हो गया था। तो क्या उसने मधुमति का भूत देखा था? वह मधुमति का पीछा करते-करते टैरेस तक जाता है और देखता है कि मधुमति नीचे गिर जाती है। सारी कहानी बताते-बताते देवेंद्र को समाचार मिलता है कि जिस ट्रेन में उसकी पत्नी आ रही थी, उसका एक्सीडेंट हो गया है। वह स्टेशन की तरफ दौड़ता है वहां राधा (पत्नी) को जीता जागता देखकर उसकी सांस में सांस आती है। पाठकों को बता दूं कि राधा के रूप में ही मधुमति का जन्म हुआ है। कहानी खत्म।
निर्माण टीम
निर्देशक : बिमल रॉय
मूल कहानी व पटकथा : ऋतिक घटक
प्रोड्यूसर : बिमल रॉय प्रोडक्शन
सिनेमैटोग्राफी : दिलीप गुप्ता
संगीत : सलित चौधरी
गीत : शैलेंद्र
सितारे : दिलीप कुमार, वैजयंती माला, प्राण, जॉनी वॉकर, जयंत, तरुण बोस आदि।
गीत
दिल तड़प-तड़प के कह रहा है : मुकेश, लता मंगेशकर
सुहाना सफर ओर यह मौसम हंसी : मुकेश
आजा रे परदेसी : लता मंगेशकर
चढ़ गयो पापी बिछुवा : लता मंगेशकर, मन्ना डे
घड़ी -घड़ी मेरा दिल धड़के : लता मंगेशकर
टूटे हुए ख्वाबों ने : मोहम्मद रफी
जुल्मी संग आंख लड़ी : लता मंगेशकर
हम हाले-दिल सुनाएंगे : मुबारक बेगम
कांचा ले : आशा भोसले, सविता चौधरी, गुलाम मुहम्मद
तन जले मन जलता रहे : द्विजेन मुखोपाध्याय
जंगल में मोर नाचा : मोहम्मद रफी