शारा
बांग्ला फिल्मों की सुपर स्टार रहीं सुचित्रा सेन ने बेशक हिंदी में गिनी-चुनी फिल्में ही कीं, लेकिन जितनी भी कीं, झंडे गाड़ दिए। कहा तो यह तक जाने लगा कि कुछ गीतों में अगर सुचित्रा सेन का अभिनय नहीं होता तो शायद उन गीतों के साथ न्याय नहीं होता। सुना है न वह गीत जिसके बोले हैं, ‘रहें ना रहें हम, महका करेंगे बन के कली, बन के सबा, बाग़े वफ़ा में।’ निश्चित रूप से सुना होगा और कभी-कभी गुनगुनाते भी होंगे। सुचित्रा ही थीं इस फिल्म में। फिल्म का नाम था ममता। आज का फ्लैशबैक ‘ममता’ पर ही। फिल्म की चर्चा से पहले कुछ बातें सुचित्रा सेन की। उनकी बेटी मुनमुन सेन आज राजनीति में भी सक्रिय हैं और अदाकारा तो हैं ही। नौजवान लोग सुचित्रा की दोहतियों यानी मुनमुन की बेटियों राइमा और रिया को जानते ही होंगे। सुचित्रा सेन की एक्टिंग उस दौर में मील का पत्थर साबित हो गयी थीं। ‘ट्रेजिडी किंग’ के नाम से मशहूर दिलीप कुमार भी सुचित्रा के अभिनय की तारीफ तमाम मंचों पर करते थे। फ्लैशबैक के पाठकों को बता दें कि सुचित्रा सेन का असली नाम रोमा दासगुप्ता था। उनका जन्म पवना (अब बांग्लादेश) में हुआ था। उनकी पहली फिल्म बांग्ला भाषा में 1952 में रिलीज हुई थी। नाम था ‘सारे चतुर।’ उनके साथ थे बंगाली फिल्मों के मशहूर कलाकार उत्तम कुमार। आगे चलकर उत्तम कुमार के साथ उन्होंने कई हिट फिल्में दीं। इंग्लैंड से उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाली सुचित्रा की 1963 में सुपरहिट फिल्म ‘सात पाके बांधा’ रिलीज हुई। उन्हें इस फिल्म में अदाकारी के लिए मास्को फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ फिल्म एक्ट्रेस के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बताया जाता है कि किसी भारतीय अदाकारा को पहली बार ऐसा पुरस्कार मिला। इसी फिल्म की कहानी पर 1974 में हिंदी में ‘कोरा कागज’ बनीं। लंबे समय तक भारतीय युवतियों में फैशन का ‘सुचित्रा स्टाइल’ सर चढ़कर बोला। खास अंदाज में संवरे बाल और उस पर काला चश्मा। बांग्ला फिल्मों की यह अदाकारा जब हिंदी फिल्मों में आईं तो आते ही छा गयीं। वर्ष 1955 में रिलीज ‘देवदास’ में सुचित्रा सेन ने पारो की जो भूमिका अदा की, उसे आज तक याद किया जाता है। सुचित्रा सेन के जीवन की और भी कई कहानियां हैं, जिनकी चर्चा फिर कभी। चलिए अब उनकी सुपरहिट फिल्म ममता पर बात हो जाये।
सचुमुच ममता फिल्म एकदम जुदा अंदाज में बनी फिल्म है। सुचित्रा सेन ने डबल रोल में क्या कमाल की एक्टिंग की है। युवा वकील के तौर पर जोरदार जिरह करने वाली सुपर्णा का किरदार हो या फिर हालात से मजबूर जिस्म फरोशी के धंधे में धकेल दी गयी गरीब महिला देवयानी का अभिनय। ओहफो… क्या अभिनय है सुचित्रा सेन का। उतना ही शानदार म्यूजिक और निर्देशन। असित सेन हैं इस फिल्म के निर्देशक। असित सेन के निर्देशन की बात ही कुछ और होती थी। असित सेन के बेहतरीन निर्देशन में जब रोशन का संगीत मिक्स हो जाए तो सोने पे सुहागा। लता मंगेशकर की खूबसूरत आवाज और उस पर उतना ही सुंदर फिल्मांकन। कुल मिलाकर हर एंगल से फिल्म बेजोड़।
असल में ममता फिल्म एक ऐसी लड़की देवयानी की कहानी है जो किसी को अपना दिल दे बैठती है। लेकिन हालात ऐसे बनते हैं कि उसे अपने प्यार को छोड़कर एक ऐसे व्यक्ति से शादी करनी पड़ती है जो नशेड़ी है, चरित्रहीन है। इस शादी से देवयानी को जीवन में कुछ भी नहीं मिला, सिवा एक सुंदर बेटी के। इस बेटी का नाम है सुपर्णा। देवयानी नाम की यह महिला जब अपने पति से दूर भागती है, तो खुद को एक नए नाम पन्नाबाई के साथ कोठे पर पाती है। लेकिन यहां भी उसका पति उसे कहां छोड़ता है। वह उससे पैसे वसूलता रहता है। अपनी बेटी को वह इस लायक बनाना चाहती है कि उसका नाम समाज में खूब चमके। उधर, पन्नाबाई बन चुकी देवयानी का पहला प्यार मनीष (अशोक कुमार) अब नामी वकील होता है। एक दिन उससे देवयानी की मुलाकात हो जाती है। पूरी हकीकत पता चलने पर आखिरकार मनीष पन्नाबाई की बेटी को अपने पास रखता है और उसे वकालत की पढ़ाई कराता है। अब सुपर्णा एक नामी वकील हो जाती है। यह किरदार भी सुचित्रा सेन से क्या खूबसूरती से निभाया है। एक फिल्म में इस तरह से दो अलग-अलग भूमिकाएं निभाना कोई आसान काम नहीं है। बेशक हिंदी फिल्मों में डबल रोल सैकड़ों बार देखने को मिले हों, लेकिन यहां जो दोहरी भूमिका है, वह अलहदा तो है ही, शानदार भी है। युवा धर्मेंद्र भी इसमें खूब फबे हैं। उनका फिल्मी नाम इंद्रनील है। इंद्रनील और अपर्णा में प्रेम हो जाता है। उधर, देवयानी यानी पन्नाबाई पर मर्डर का इल्जाम लगता है। मामला कोर्ट में पहुंचता है तो वहां जो जिरह का अभिनय सुचित्रा सेन ने किया है, वह हैरान करने वाला है। फिल्म ममता वर्ष 1966 में रिलीज हुई थी। असल में यह फिल्म बांग्ला फिल्म उत्तर फाल्गुनी (1963) का रीमेक है। लेकिन हिंदी फिल्म ममता देखने पर कहीं लगता नहीं कि इसे किसी अन्य भाषा की फिल्म से लिया गया है। फिल्म के बीच में कुछ रोमांस है। कर्णप्रिय गीत हैं। फिल्म में कोर्ट का सीन वाकई बहुत इमोशनल है जब अपर्णा सरकारी वकील के तौर पर जिरह करती है और पन्नाबाई एक हत्यारोपी के तौर पर कठघरे में खड़ी होती है। यानी मां-बेटी आमने-सामने। फिल्म देखने पर ही पता चलेगा कि आखिर देवयानी यानी पन्नाबाई किसकी हत्या के आरोप में कठघरे में है और अपर्णा किस तरह से जिरह करती है। युवा धर्मेंद्र का अभिनय और अशोक कुमार जैसी शख्सियतों के अलावा इस फिल्म में अनेक ऐसे डॉयलॉग हैं जो आपको इमोशनल कर देंगे। बेटी के प्यार में खुद को कुर्बान कर देने वाली मां की इस कहानी पर बनी फिल्म ‘ममता’ देखने लायक है।
निर्माण टीम
स्टोरी : निहार रंजन गुप्ता
संवाद : कृष्ण चंदर
निर्माता : चारु चित्रा
निर्देशक : असित सेन
गीत : मजरूह सुल्तानपुरी, पंडित भूषण
संगीत : रोशन
कलाकार : सुचित्रा सेन, अशोक कुमार, धर्मेंद्र, चमनपुरी, प्रतिमा देवी, छाया देवी, डेविड आदि
गीत
चाहे तो मेरा जिया ले ले : लता मंगेशकर
छुपा लो यूं दिल में प्यार मेरा : लता, हेमंत कुमार
हम गवनवा ना जयबे हो : लता मंगेशकर
रहें न रहें हम : लता मंगेशकर
रहें न रहें हम : मोहम्मद रफी, सुमन कल्यापुर
रहते थे कभी जिनके : लता मंगेशकर
इन बहारों में : आशा भोसले, मोहम्मद रफी