जयनारायण प्रसाद
मूवी कैमरे के जरिये भी एक अच्छी कहानी कही जा सकती है। यह ऑस्कर विजेता फिल्मकार सत्यजित रे ने हमें सिखाया था। उनकी बनाई पहली बांग्ला फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ (पथ का गीत, द सांग ऑफ रोड) ने देखते ही देखते रे मोशाय को ग्लोबल बना दिया। ‘पाथेर पांचाली’ वर्ष 1955 में बनी थीं और सिर्फ सत्तर हजार रुपए में, वह भी बेहद मुश्किलों से। यह पहली बार रिलीज हुई कलकत्ता के बसुश्री सिनेमा हॉल में 26 अगस्त, 1955 को।
सत्यजित रे के लिए एक सपने को साकार करने की लड़ाई थी फिल्म ‘पाथेर पांचाली।’ 2 मई, 1921 को में पैदा हुए सत्यजित रे की मौत 23 अप्रैल, 1992 को कलकत्ता में ही हुई। तब सत्यजित रे सत्तर साल के थे और बहुत बीमार थे। आज वे जीवित रहते, तो 103 वर्ष के होते।
आसानी से नहीं बनी थी पहली क्लासिक फिल्म
रे मोशाय ने करीब 36 फिल्में बनाईं। इनमें ज्यादातर फीचर, कुछ लघु और कुछ डॉक्यूमेंट्री हैं। लेकिन, सत्यजित रे की बनाई पहली क्लासिक फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ का कोई तोड़ नहीं है। ‘वर्ल्ड क्लासिक फिल्मों’ की फेहरिस्त में यह बांग्ला मूवी भी शामिल है। असल में फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ में वैश्विक अनुभूति से लेकर ऐसी संवेदनाएं जगह-जगह आपको दिखेंगी, जो सरहद पार बैठे दर्शकों को सहज ही आकर्षित करती हैं। इस फिल्म को पूरा करने के लिए सत्यजित रे ने पत्नी विजया रे के गहने तक बेचे। अपने दुर्लभ गानों के रेकार्ड्स बेचने के बावजूद ‘पाथेर पांचाली’ पूरी नहीं हुई, तो पश्चिम बंगाल सरकार आगे आई। तत्कालीन मुख्यमंत्री विधानचंद्र ने ‘पाथेर पांचाली’ की कहानी सुनी और अंश देखे व इसका अंत बदलने को कहा, लेकिन रे अड़े रहे।
‘अंत बदलवाने’ से जुड़ा किस्सा
कहते हैं कि ‘पाथेर पांचाली’ का अंत बदलने को लेकर सत्यजित रे कुर्सी से उठ खड़े हुए थे। मुख्यमंत्री ने दूसरे दिन सत्यजित रे को अपने चैंबर में फिर बुलाया और कहा – ‘बैठो ! मैं तुम्हारी भावना को उस दिन परख रहा था। घर जाओ, खाओ और सो जाओ। हमारी सरकार तुम्हारी फिल्म को फाइनेंस करेगी। इस फिल्म को पश्चिम बंगाल सरकार के ग्रामीण विकास विभाग से आर्थिक मदद दी गई।
वैश्विक स्तर पर मचाई धूम
उसके बाद ‘पाथेर पांचाली’ ने वैश्विक स्तर पर जो धूम मचाई, वह फिल्म इतिहास का अब एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। विश्व की मशहूर ब्रिटिश पत्रिका ‘साइट एंड साउंड’ ने सत्यजित रे को एशिया के टॉप 10 निर्देशकों में शुमार किया। ‘पाथेर पांचाली’ को ढेर सारे पुरस्कार मिले। विदेशी फिल्म महोत्सवों में गोल्डन लायन, गोल्डन बियर, दो सिल्वर बियर , सत्यजित रे को वर्ष 1978 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की मानद उपाधि तथा वर्ष 1992 में ‘ऑनरेरी एकेडेमी’ पुरस्कार मिला। उसी वर्ष रे को ‘भारत रत्न’ से भी नवाजा गया।
आम आदमी के संघर्ष की आवाज
मानवीय जटिलताएं, सामाजिक विरूपण और आम आदमी का संघर्ष सत्यजित रे की फिल्मों का सार व कथ्य रहा है। रे ने फिल्म बनाने के अलावा बांग्ला में बच्चों के लिए कहानियां और जासूसी उपन्यास भी लिखे हैं। उनकी फिल्म ‘सोनार केल्ला’ और उनका ‘फेलुदा सीरीज’ बंगाल के घर-घर में लोकप्रिय है।
रे की दो फिल्में हिंदी में भी
सत्यजित रे ने अपनी मातृभाषा में ढेर सारी फिल्में बनाईं। दो काम हिंदी में भी किये। एक हिंदी फिल्म थीं ‘शतरंज के खिलाड़ी’ (1977) और दूसरी थी दूरदर्शन के लिए ‘सद्गति’ (1981)। ये दोनों फिल्में प्रेमचंद की रचनाओं पर आधारित थीं। फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में हिंदी संवाद सत्यजित रे, शमा ज़ैदी और ज़ावेद सिद्दीकी ने लिखा था, जबकि दूरदर्शन फिल्म ‘सद्गति’ में संवाद सत्यजित रे और प्रेमचंद के बेटे अमृत राय का था।
‘शतरंज के खिलाड़ी’
सत्यजित रे की हिंदी फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ (1977) विदेशों में काफी सराही गई। इस फिल्म में बिरजू महाराज ने नृत्य का निर्देशन किया था, जबकि संजीव कुमार (मिर्ज़ा सज्जाद अली), सईद जाफ़री (मीर रौशन अली), अमज़द खान (वाजिद अली शाह), रिचर्ड एटनबरो (जनरल आउट्रम), शबाना आज़मी (खुर्शीद), फरीदा जलाल (नफीसा), विक्टर बनर्जी (अली नकवी खान, प्रधानमंत्री), फारुख शेख़ (अकील), टॉम आल्टर (कैप्टन वेस्टर्न) और लीला मिश्रा (सिरिया) के किरदार में थीं। पूरे 113 मिनट की इस फिल्म में म्यूजिक सत्यजित रे का था। ‘सद्गति (1981), सत्यजित रे की टेलीविजन फिल्म थीं। इस टेली फिल्म में ओमपुरी (दुखी चमार), स्मिता पाटिल (झुरिया, दुखी की पत्नी), ऋचा मिश्रा (धनिया, दुखी की बेटी), मोहन अगाशे (घासी राम), गीता सिद्धार्थ (लक्ष्मी, घासी राम की पत्नी) और भैयालाल हेदाव (गोंड) ने खास भूमिका निभाई थीं।