श्रीनगर (समान लतीफ) : जिन कश्मीरी पंडितों ने 1990 के दशक में घाटी नहीं छोड़ी, जिन्होंने तीन दशकों तक आतंकवाद का सामना किया, उन्होंने भी अब इस क्षेत्र में वर्तमान सुरक्षा व्यवस्था पर विश्वास खो दिया है। कश्मीर में लक्षित हत्याओं के बढ़ते मामलों के बीच कई लोगों का कहना है कि ‘अभूतपूर्व असुरक्षा का डर’ उन्हें अब घाटी छोड़ने के लिए मजबूर कर देगा। गैर-प्रवासी कश्मीरी पंडित रतन चाकू ने ट्रिब्यून से कहा, ‘हमने घाटी नहीं छोड़ी और इतने वर्षों में दो समुदायों के बीच की खाई को पाटने की कोशिश की, लेकिन अब मैं अपने बच्चों से कहता हूं कि कश्मीर अब किसी के लिए सुरक्षित जगह नहीं है।’
लगभग 808 गैर-प्रवासी पंडित परिवार पूरे कश्मीर में रह रहे हैं, जिनमें से अधिकांश घोर गरीबी में जी रहे हैं और उनके बच्चे ज्यादातर बेरोजगार हैं। श्रीनगर के गणपतियार मोहल्ले के 52 वर्षीय चाकू निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं और उनके दो बेटे इंजीनियरिंग की डिग्री होने के बावजूद बेरोजगार हैं। चाकू ने कहा, 1990 के दशक में, हमें यहां एक सुरक्षित जीवन जीने की उम्मीद थी, लेकिन अब यह एक निराशाजनक स्थिति है। हमारे बच्चों का कोई भविष्य नहीं है। ‘अज्ञात बंदूकधारियों’ द्वारा लक्षित हत्याओं ने कश्मीर में भय का अभूतपूर्व माहौल बना दिया है।’
नागरिकों की लक्षित हत्याएं पिछले अक्तूबर में शुरू हुईं, जब आतंकवादियों ने श्रीनगर में प्रसिद्ध कश्मीरी व्यवसायी माखन लाल बिंदरू की हत्या कर दी। यह 2003 के नदीमर्ग नरसंहार के बाद गैर-प्रवासी कश्मीरी पंडित की पहली हत्या थी। कश्मीर पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू इसके बाद से श्रीनगर के बरबरशाह इलाके में अपने घर से बाहर नहीं निकल पाए हैं। उन्होंने कहा, ‘मुझे पुलिस ने बताया है कि मेरी जान को आतंकवादियों से खतरा है। अक्तूबर के बाद से मैं कहीं भी जा नहीं पा रहा।’ घाटी में रह रहे अन्य कश्मीरी पंडित भी बिगड़ती सुरक्षा स्थिति के कारण कहीं आ-जा नहीं पा रहे। टिक्कू का कहना है, ‘ऐसा कोई नहीं है जहां हम अपनी बात रख सकें। राजनीतिक सरकारों में हमारी आवाज थी, लेकिन अब नौकरशाह किसी की नहीं सुनते। वे अपनी मर्जी से यूटी चला रहे हैं।’