देश-विदेश के पर्यटकों से भारत में पहले पसंदीदा टूरिस्ट स्पॉट के बारे में पूछा जाए तो गोवा का ही नाम आएगा। समुद्र की हिचकोले लेती लहरों के साथ यहां की हरियाली पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है। हरियाली के मामले में हिमाचल प्रदेश की वादियां गोवा से कहीं आगे हैं, लेकिन उतना बड़ा पर्यटन केंद्र अभी तक भी हिमाचल नहीं बन पाया। दोनों राज्यों में काफी समानताएं भी हैं। हिमाचल को इंटरनेशनल टूरिस्ट मैप पर लाने की मुहिम में सूबे की सरकार ही नहीं, यहां के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर भी सिरे चढ़ाने में अपनी भूमिका निभाएंगे। गोवा में लम्बे समय तक सक्रिय राजनीति कर चुके, गोवा विधानसभा के अध्यक्ष और गोवा सरकार में वन एवं पर्यावरण मंत्री रह चुके हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने प्रदेश की वादियों में पर्यटकों को लाने और यहां की परंपराओं व संस्कृति से देश-दुनिया को रूबरू करवाने का बीड़ा उठाया है। संवैधानिक पद के बावजूद पाठशालाओं में बच्चों के साथ बैठकर उनमें पढ़ने की ललक पैदा करने में जुटे हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर से दैनिक ट्रिब्यून के संपादक नरेश कौशल ने विस्तृत चर्चा की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश…
सीएम से भी ऊंचा ओहदा होता है राज्यपाल का। कुछ समय से इन पदों पर आ रही विभूतियां जमीन पर रहकर काम करना पसंद कर रही हैं। आप भी धरातल से जुड़े रहते हैं, यह बदलाव क्यों?
आम लोगों की यही धारणा रहती है कि राज्यपाल के पास जा पाना संभव नहीं है। कारण साफ है, इस पद के अपने शिष्टाचार और प्रोटोकॉल हैं। राज्यपाल बनने से पहले मेरा भी यही अनुभव था और ऐसी ही सोच थी। सक्रिय राजनीति में रहते हुए मैं कई बार मर्यादाओं में रहकर महामहिम से मिला। मैं आपको बताता हूं कि पिछले कुछ सालों से धरातल से जुड़े लोग राज्यपाल बन रहे हैं। सामाजिक जीवन में उन्होंने अपना जीवन व्यतीत किया है। ऐसे लोगों को ही मोदीजी राज्यपाल बनाना चाहते हैं जो लोगों से जुड़कर रह सकें। सामाजिक प्रगति की दृष्टि से यह अच्छी बात है।
गोवा आपका घर है। हिमाचल को भी अब आप अच्छे से समझ गए होंगे। क्या समानता देखते हैं?
मुझे एक दिन भी यह अहसास नहीं हुआ कि मैं गोवा से बाहर हूं। गोवा जैसी प्राकृतिक संपदा हिमाचल में भी है। दोनों राज्य प्राकृतिक सौंदर्य के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। टूरिज्म के लिहाज से गोवा की तरह हिमाचल भी काफी पोटेंशियल है।
दोनों राज्य पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं। आप दोनों राज्यों के बीच एक कड़ी हैं। हिमाचल में पर्यटन को बढ़ावा देने में क्या योगदान देंगे?
गोवा और हिमाचल दोनों में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। दुनिया के किसी भी कोने में जाकर किसी से पूछेंगे कि भारत में कहां जाना चाहेंगे तो वे गोवा कहेंगे। एक साल से मुझे लगने लगा है कि जब कोई गोवा का नाम लेता है तो उसके मुंह में हिमाचल का नाम क्यों नहीं आता। इसे बढ़ावा देने की जरूरत है। गोवा आज पर्यटन की दृष्टि से बहुत आगे निकल चुका है। अनेक सरकारों ने इसके लिए प्रयास किए हैं। लोगों ने भी प्रयास किए हैं। गोवा की तरह ही हिमाचल में अपने लोगों, सरकार, संस्थाओं व कमर्शियल संस्थाओं को मिलकर काम करने की जरूरत है।
आपको क्या लगता है कि हिमाचल के लिए क्या होना चाहिए?
हिमाचल की प्राकृतिक संपदा को एक्सपोजर देने की जरूरत है। पर्यटन को इंडस्ट्री का स्टेटस देने की जरूरत है। इससे लोग स्वयं भागीदार बनने को राजी होंगे। केवल प्राकृतिक सुंदरता ही नहीं, यहां के लोगों की सोच भी बहुत अच्छी है। वे चाहते हैं कि उनके घर कोई आए। अतिथि देवो भव: का प्रतिरूप मुझे हिमाचल के लोगों में दिखता है। इन सभी बातों को इकट्ठा करके अगर हम योजनाएं बनाएंगे तो पर्यटन की दृष्टि से हम छलांग लगा सकते हैं।
पहले राज्यपाल को यूनिवर्सिटी के चांसलर के रूप में देखा जाता था। आपके समकक्ष पंजाब, हरियाणा व गुजरात के राज्यपालों ने इस छवि को तोड़ा है। आचार्य देवव्रत तो प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। आपने भी ऐसी कोई मुहिम शुरू की है?
गुजरात के गर्वनर आचार्य देवव्रत जी ने प्राकृतिक खेती में बहुत ही सुंदर काम किया है। हिमाचल को ऐसा पहला प्रदेश बनाया। इसका अनुसरण बाकी प्रदेशों को करना चाहिए।
मैं भी उनका आभारी हूं। उनके द्वारा किए कार्यों को आगे लेकर जाने का प्रयास है। मैंने हिमाचल के स्कूलों के बच्चों के बीच जाने का कार्यक्रम शुरू किया है।
क्या कोई रोचक पत्र आया, जिसे बताना चाहें?
सोलन के पास एक स्कूल में मैंने बच्चों से पंद्रह दिन में पुस्तक पढ़कर चिट्ठी लिखने को कहा। एक विद्यार्थी ने लिखा– मुझे अपने पाठ्यक्रम के अतिरिक्त भी पढ़ना चाहिए, यह पहले किसी ने नहीं बताया। आपने मुझे बताया तो मेरी पढ़ाई में रुचि हो गई है। एक अन्य बच्चे ने लिखा– ऐतिहासिक लोगों के बारे में हम तो पाठ्यक्रम में ही पढ़ते थे। उनसे जुड़ी और भी पुस्तकें हैं, यह हमें पता ही नहीं था।
कहां से लाते हैं किताबें, ये कैसी पुस्तकें होती हैं और खर्च कौन उठाता है?
पुस्तकें विशिष्ठ विषयों पर होती हैं। हमारे देश में अनेक हस्तियां रही हैं, जिन्होंने समाज, देश व संस्कृति के लिए बहुत बड़ा योगदान दिया है। कोई इंडस्ट्री का लीडर हो सकता है। किसी ने कला के क्षेत्र में योगदान दिया है तो किसी के धार्मिक विचारों व संस्कारों से लोग प्रभावित हुए हैं। स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत से लोगों ने बलिदान दिया है। उनकी जीवनी से जुड़ी पुस्तकें बच्चों को देता हूं ताकि एक दिशा में पढ़ने का प्रयास हो जाए। मेरी कोशिश है कि बच्चों को उनकी परंपराओं, संस्कृति व इतिहास का ज्ञान हो सके। पुस्तकें मैं अपने खुद के खर्चे से मार्केट से खरीदता हूं।
आप किन हस्तियों से प्रभावित हैं?
बिरसा मुंडे, डॉ. भीमराव अाम्बेडकर, महात्मा गांधी जी व महर्षि वेद व्यास जैसी कई विभूतियां रही हैं, जिनके बारे में युवा पीढ़ी को जानना चाहिए। सूची लंबी है। हर इंसान का कर्तव्य है कि वह समाज के प्रति कुछ करे। जिस समाज की वजह से आप एक स्थान पर पहुंचे हैं, उसके प्रति दायित्व भी समझना चाहिए।
राज्यपालों की सक्रियता आमतौर पर सरकारों को नहीं भाती, विपक्ष भी उंगली उठाता है। कैसे संतुलन बनाते हैं?
संतुलन बनाकर रखना एक कला है, उसे बनाए रखना चाहिए। सरकार हो या विपक्ष, मेरे लिए दोनों समान हैं। सरकार को लगना चाहिए कि राज्यपाल जो कर रहे हैं, उससे सरकार के कार्यों पर विपरीत असर नहीं पड़ेगा। मैं तो सरकार को कहता हूं कि आप अपना काम कीजिए। मेरा उसमें कोई सहयोग चाहिए तो मुझे बताइए। सौभाग्य से हिमाचल की सरकार, मुख्यमंत्री व अन्य मंत्रियों से मेरे बहुत अच्छे संबंध हैं। उनसे बात करते हैं तो वे अपनी दिक्कतें भी बताते हैं। मैं निराकरण करने की भी कोशिश करता हूं। विपक्ष के भी अनेक नेता हैं प्रदेश में। उनके साथ भी मेरे अच्छे संबंध हैं।
हिमाचल भी नशे की चपेट में आ रहा है। युवाओं को इससे दूर करने के लिए क्या प्रयास करेंगे?
यह गंभीर समस्या है। हम सबको इससे मिलकर लड़ना होगा। मैंने सीएम और डीजीपी से बात की। वे भी चाहते हैं कि इसमें प्रयास होने चाहिए। सरकारी तौर पर प्रयास होते हैं। अगर इसमें समाज का योगदान हो जाए तो कामयाबी मिल सकती है। मैं जिस भी विश्वविद्यालय में जाता हूं वहां यह विषय रखता हूं।
गोवा में भी तो नशे की समस्या बढ़ गई है?
दुर्भाग्य से हिमाचल में जिस तरह की परेशानी है, वही गोवा में भी है। मेरा मानना है कि गोवा और यहां का कनेक्शन है। यहां से ड्रग वहां जाता है और वहां से यहां आता है। डीजीपी से मैंने पूरा रिकार्ड व डाटा लिया है। उनके एक अधिकारी को साथ लेकर यूनिवर्सिटी में जाना शुरू किया है। वहां विद्यार्थियों की चपेट में आने की आशंका ज्यादा है। उन्हें सतर्क करता हूं।
पांच मिनट की बात और प्रशंसा
राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर बिना रुके और देखे लंबा बोल सकते हैं। अलग-अलग मुद्दों पर उनकी पकड़ है। कुछ माह पूर्व राष्ट्रपति का हिमाचल में आना हुआ। उस समय विधानसभा का विशेष सत्र चल रहा था। राज्यपाल को लगा कि राष्ट्रपति के सामने उन्हें बोलने का क्या मौका मिलेगा, लेकिन राज्यपाल होने के नाते पांच मिनट बोलने का अवसर मिला। राज्यपाल ने विधानसभा में बैठे पक्ष और विपक्ष से कहा कि हम सभी मिलकर प्रदेश के विकास के लिए कुछ न कुछ कर सकते हैं। इस पर राष्ट्रपति ने भी उन्हें बधाई दी। वहां मौजूद विपक्षी विधायकों व सरकार के कई अधिकारियों ने भी उनके सुझावों को बेहतर माना।
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naresh.kaushal@tribunemail.com)
यूजीसी पे-स्केल के सवाल पर बोले
यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सरकार से नाखुश हैं। क्या उन्हें यूजीसी पे-स्केल मिलेगा?
आपकी बात बिल्कुल सही है। मैं जिस भी यूनिवर्सिटी में जाता हूं, वहां के प्रोफेसर इस मामले को उठाते हैं। मुझसे बात भी करते हैं। मैं इस विषय को सरकार के सामने भी पहुंचा चुका हूं। खासतौर पर सीएम से मैंने बात भी की है। मुझे पूरा विश्वास है कि सीएम इस पर विचार करके जल्द ही निर्णय करने वाले हैं। सीएम भी इस पर पॉजिटिव हैं। इस तरह के मामलों में पहले बजट का प्रावधान करना होता है। मुझे लगता है कि बहुत जल्द मुख्यमंत्री इस पर विचार करके सकारात्मक निर्णय ले सकते हैं।
पढ़ने-लिखने की ललक पैदा करने का जुनून
क्या है कार्यक्रम और आपकी सोच ?
असल में, मैं प्राइमरी स्कूलों के बच्चों के बीच जाता हूं। क्लास में उनके साथ ही बैठकर उनसे बातचीत करता हूं। उनकी बातें सुनता हूं। मन की बात करता हूं। आमतौर पर बच्चे स्कूली पाठयक्रम की पुस्तकों तक ही सीमित रहते हैं। मैं उन्हें पढ़ने के प्रति जागरूक करता हूं। ऐसी किताबें उन्हें भेंट करता हूं, जो पहले उन्होंने कभी पढ़ी ही नहीं। इसका मकसद है, बच्चों में पढ़ने की ललक पैदा करना है।
कैसे आया यह आइडिया ?
आप भी देख रहे हैं कि आजकल बच्चों का अधिक समय मोबाइल फोन, टैब व लैपटॉप पर बीतता है। यह सही है कि दौर डिजिटल का है, लेकिन इसकी भी अपनी मर्यादाएं हैं। मैंने बच्चों और अभिभावकों में तकरार भी सुनी। फिर सोचा, उनके हाथों से मोबाइल निकालना तो सही नहीं है, इससे वे और बिगड़ेंगे। इसलिए उनसे संवाद शुरू किया। पाठ्य पुस्तकों से बाहर उनका दायरा नहीं होता। मैं उनसे कहता हूं कि पढ़ने की आदत डालिए, पुस्तकों को पढ़िए। कुछ स्कूलों में गया और नौवीं कक्षा के विद्यार्थियों से बैठे-बैठे मैं भी शिक्षक की तरह उनसे चर्चा करने लगा। पढ़ने की आदत अच्छी है। हमारा जीवन किताबों के कारण संस्कारित ही हुआ है।
किताब देने के बाद आप क्या संदेश देते हैं ?
मैं जब स्कूलों में जाता हूं तो अपने साथ पुस्तकें ले जाता हूं। बच्चों में उन्हें बांटकर कहता हूं कि वे पुस्तक पढ़कर मुझे पत्र लिखकर बताएं कि उन्हें इन किताबों को पढ़ना कैसा लगा? खुशी की बात यह है कि बच्चों की चिट्ठियां आने लगी हैं। इससे दो फायदे हुए। एक तो पढ़ने की आदत और दूसरी लिखने की आदत।