ट्रिब्यून न्यूज सर्विस, चंडीगढ़, 17 अक्तूबर
Anil Vij: हरियाणा भाजपा के सबसे वरिष्ठतम नेताओं में शुमार अनिल विज के कद और उनकी वरिष्ठता का भाजपा ने पूरा ख्याल रखा है। बेशक, नायब सरकार के पहले कार्यकाल में वे कैबिनेट से बाहर रहे लेकिन इस बार नायब सिंह सैनी के बाद पार्टी ने उन्हें शपथ दिलाकर उनका राजनीतिक कद और बढ़ाने का काम किया है। प्रदेश में भाजपा के बड़े पंजाबी चेहरे के रूप में पहचान बना चुके अनिल विज अब नायब कैबिनेट के सबसे वरिष्ठ मंत्री बन गए हैं।
बेशक, मनोहर लाल सरकार में गृह व स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए कई मुद्दों पर उनका सीधा मुख्यमंत्री और सीएमओ (मुख्यमंत्री कार्यालय) से टकराव भी हुआ। अनिल विज, भाजपा के अकेले उन नेताओं में शामिल हैं, जो सातवीं बार विधानसभा पहुंचे हैं।
प्रदेश की मौजूदा यानी 15वीं विधानसभा में विज के अलावा बेरी से कांग्रेस विधायक डॉ. रघुबीर सिंह कादियान अकेले ऐसे विधायक हैं, जो सातवीं बार विधानसभा पहुंचे हैं। हालांकि कादियान ने लगातार छह बार चुनाव जीतकर नया रिकार्ड कायम किया है।
शुरू से ही संघ में रहे सक्रिय
शुरू से ही संघ विचारधारा के रहते अनिल विज जवानी के दिनों में संघ गतिविधियों में तो एक्टिव रहे लेकिन राजनीति में आने का उनका इरादा नहीं था। वे अंबाला कैंट में एसबीआई में नौकरी कर रहे थे। उस समय पूर्व केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज अंबाला कैंट से विधायक हुआ करती थीं। सुषमा स्वराज के राज्यसभा जाने के बाद 1990 में अंबाला कैंट में उपचुनाव के हालात बने। ऐसे में संघ की ओर से अनिल विज को चुनाव लड़ने की पेशकश की गई।
बैंक की नौकरी छोड़ राजनीति में आए
बैंक की नौकरी छोड़कर विज ने 1990 में पहली बार विधानसभा का उपचुनाव लड़ा। वे अपना पहला ही चुनाव जीतने में कामयाब रहे। हालांकि बाद में उन्होंने किसी वजह से भाजपा को अलविदा भी बोल दिया। लेकिन वे किसी पार्टी में नहीं गए। उन्होंने 1996 और 2000 का चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर अंबाला कैंट से जीता। 2005 का चुनाव भी उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लड़ा लेकिन कांग्रेस के देवेंद्र कुमार बंसल के हाथों वे महज 615 मतों से चुनाव हार गए।
हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पर भारी पड़ते थे
इसके बाद विज फिर से भाजपा में शामिल हो गए। विज ने 2009 में भाजपा टिकट पर जीत हासिल की। इस चुनाव में भाजपा के केवल चार ही विधायक बने थे। लेकिन विज अकेले ही उस समय भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पर भारी पड़ते थे। उन्हें कई बार विधानसभा से नेम करके बाहर भी निकाला गया। 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने कुलदीप बिश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) के साथ मिलकर लड़ा। हजकां अपने हिस्से की दोनों सीटों पर चुनाव हार गईं। वहीं भाजपा ने 8 में से सात संसदीय सीटों पर जीत हासिल की।
भाजपा पर बनाया था अकेले चलो का दबाव
2014 के विधानसभा चुनावों के दौरान विज ने भाजपा ‘अकेले चलो’ का दबाव बनाया। उन्होंने दलील दी कि भाजपा को किसी के साथ गठबंधन करने की जरूरत नहीं है। आखिर भाजपा ने सभी नब्बे सीटों पर अपने बूते पर चुनाव लड़ा और 47 विधायकों के साथ पहली बार राज्य में पूर्ण बहुमत से भाजपा की सरकार बनी। मनोहर लाल प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए और अनिल विज उनकी कैबिनेट में स्वास्थ्य व तकनीकी शिक्षा मंत्री रहे। 2019 में विज ने अंबाला कैंट से जीत की हैट्रिक लगाई।
मनोहर सरकार में थे गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री
उन्हें मनोहर सरकार में गृह व स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। इस बार उन्होंने अंबाल कैंट से लगातार चौथी बार और कुल सातवीं बार विधानसभा का चुनाव जीता है। हालांकि चुनावों के दौरान विज ने यह बयान भी दिया था कि वे वरिष्ठता के हिसाब से इस बार भाजपा से मुख्यमंत्री पद की मांग भी करेंगे। हालांकि जब विधायक दल का नेता चुनने की बात आई तो विज ने खुद ही नायब सिंह सैनी के नाम का अनुमोदन किया। अपने मुखर बोल के लिए अलग पहचान रखने वाले विज को अपनी जिद की वजह से बड़ा राजनीतिक नुकसान भी उठाना पड़ा है।
हर मुद्दे पर रखते हैं पक्ष
विज प्रदेश भाजपा के पहले ऐसे नेता हैं, जो प्रदेश ही नहीं, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी पक्ष रखते हैं। बेशक, पूर्व के दस वर्षों के कार्यकाल में वे कई बाद अपने बोल्ड स्टैंड और बोल की वजह से विवादों में भी आए हैं। सबसे अहम बात यह है कि विज हरियाणा भाजपा के उन चुनिंदा नेताओं में शामिल हैं, जिनके समर्थक प्रदेश के हर जिले में मौजूद हैं। मंत्री रहते हुए अंबाला कैंट में ‘जनता दरबार’ लगाते रहे विज इस वजह से भी अधिक सुर्खियों में आए हैं। अंबाला के एसडी कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई करने वाले विज का जन्म 15 मार्च, 1953 को हुआ। उनके पिता भीमसेन रेलवे में अधिकारी रहे।
अविवाहित रहे, घर तक नहीं लिया
अनिल विज अविवाहित हैं। वे हरियाणा के अकेले ऐसे नेता हैं, जिन्होंने करीब दस वर्षों तक सरकार में कैबिनेट मंत्री रहते हुए भी सरकारी कोठी नहीं ली। वे अंबाला कैंट के शास्त्री नगर स्थित अपने घर से ही अपडाउन करते रहे। इतना ही नहीं, विधायक रहते हुए भी अनिल विज ने एमएलए फ्लैट नहीं लिया। अनिल विज 1970 में एबीवीपी के महासचिव बने। 1991 में वे भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष भी रहे।