विवेक शर्मा/ ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 9 सितंबर
कैंसर के ज्यादातर मरीजों की पहचान एडवांस स्टेज में होती है। इस वजह से इस बीमारी का इलाज करना एक चुनौती बन जाता है। अब एक ऐसी तकनीक विकसित हुई है, जिससे कैंसर का प्रभावी इलाज किया जा सकता है। इस तकनीक को ‘कार-टी’ (सीएआर-टी) सेल थेरेपी का नाम दिया गया है। पीजीआई चंडीगढ़ में इस थेरेपी से तीन मरीजों को नयी जिंदगी दी गई है। पीजीआई में अभी इसका ट्रायल चल रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से इसे जल्द ही मंजूरी मिलने की संभावना है। पीजीआई के अलावा यह तकनीक केवल दो प्राइवेट संस्थानों में अपनाई गई है। सरकारी संस्थानों में ऐसा करनामा करने वाला पीजीआई देश का एकमात्र संस्थान है। इस तकनीक से मरीजों काे कीमो का दर्द नहीं झेलना पड़ेगा। यह खुलासा पीजीआई के डायरेक्टर प्रो. विवेक लाल ने शनिवार को अपनी टीम के साथ पत्रकार वार्ता में किया।
फिलहाल कार-टी सेल थेरेपी काफी महंगी है। अमेरिका में इस पर करीब 5 करोड़ रुपये खर्च आता है, जबकि पीजीआई में 50-60 लाख खर्च हाे रहे हैं। डॉ. लाल ने बताया कि जैसे-जैसे यह तकनीक विकसित होगी, वैसे-वैसे नयी दवा कंपनियां मैदान में आएंगी और इलाज सस्ता होता जाएगा। कीमोथेरेपी से अलग यह दवा रोगी को केवल एक बार दी जाती है। कार-टी सेल थेरेपी का इस्तेमाल गंभीर ब्लड कैंसर, मल्टीपल मायलोमा, ग्लायोब्लास्टोमा, हेपेटोसेलुलर कार्सीनोमा और टाइप-2 डायबिटीज के उपचार में किया जाएगा।
टी सेल्स को दी जाती है लड़ने की ताकत
कार-टी सेल (शिमेरिक एंटीजन रिसेप्टर टी-सेल) थेरेपी एक प्रकार की इम्यूनोथेरेपी होती है। इसमें टी सेल्स का इस्तेमाल किया जाता है। ये सेल्स इम्यून सिस्टम का ही एक हिस्सा होते हैं। इस थेरेपी में मरीज के ब्लड से ही टी सेल्स का एक सैंपल लेकर उसे मॉडिफाई करते हैं। इस दौरान इनमें जीन एडिटिंग की जाती है। इसमें कैंसर सेल्स को खत्म करने की ताकत बनाई जाती है। जब ये सेल्स पूरी तरह मॉडिफाई हो जाते हैं, तो इन्हें फिर से ही मरीज में इंसर्ट कर दिया जाता है। ये टी सेल्स क्लॉडिन नाम के एक खास एंटीजन पर हमला करते हैं और कैंसर पैदा करने वाले खतरनाक सेल्स को खत्म करते हैं। टी सेल थेरेपी का सबसे अधिक प्रयोग ब्लड कैंसर के इलाज में किया जाता है। जब मरीज पर रेडियो और कीमोथेरेपी और कैंसर के किसी भी प्रकार के इलाज का असर नहीं होता है, तब डॉक्टर टी सेल थेरेपी का इस्तेमाल करते हैं।