नयी दिल्ली, 6 जून (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पीड़ित को मुआवजा देना सजा कम करने का आधार नहीं हो सकता। न्यायालय ने कहा कि यदि सजा कम करने के लिए मुआवजे का भुगतान एक विकल्प बन जाता है, तो इसका आपराधिक न्याय व्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। न्यायालय ने कहा कि आपराधिक मामले में पीड़ित को मुआवजा देने का उद्देश्य उन लोगों का पुनर्वास करना है जिन्हें अपराध के कारण नुकसान उठाना पड़ा हो या उन्हें चोट पहुंची हो और यह सजा कम करने का आधार नहीं हो सकता।
अदालत ने कहा कि इसका नतीजा यह होगा कि अपराधियों के पास न्याय से बचने के लिए बहुत सारा पैसा होगा, जिससे आपराधिक कार्यवाही का मूल उद्देश्य ही खत्म हो जायेगा। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 357 न्यायालय को दोषसिद्धि का निर्णय सुनाते समय पीड़ितों को मुआवजा देने का अधिकार देती है।
न्यायालय राजेंद्र भगवानजी उमरानिया नामक एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिका में गुजरात हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें एक आपराधिक मामले में दो व्यक्तियों की पांच साल की सजा को घटाकर चार साल कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घटना को 12 वर्ष बीत चुके हैं और दोषियों ने पहले ही पांच लाख रुपए जमा कर दिए हैं। पीठ ने कहा, ‘हम उन्हें चार वर्ष की अतिरिक्त सजा भुगतने का निर्देश देने के पक्ष में नहीं हैं।’
क्या कहा कोर्ट ने
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, ‘पीड़ित को मुआवजा देना दंडात्मक उपाय नहीं है और इसकी प्रकृति केवल प्रतिपूरक है।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 357 का उद्देश्य पीड़ित को आश्वस्त करना है कि उन्हें आपराधिक न्याय प्रणाली में भुलाया नहीं गया है।