नयी दिल्ली (एजेंसी): राज्यसभा में विभिन्न विपक्षी दलों ने कृषि संबंधी संबंधी विधेयकों की तीखी आलोचना की। कांग्रेस के प्रताप सिंह बाजवा ने आरोप लगाया कि दोनों विधेयक किसानों की आत्मा पर चोट हैं, यह गलत तरीके से तैयार किए गए हैं तथा गलत समय पर पेश किए गए हैं। उन्होंने कहा कि हम किसानों के ‘डेथ वारंट’ पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे। बाजवा ने आरोप लगाया कि सरकार का इरादा एमएसपी को खत्म करने और कार्पोरेट जगत को बढ़ावा देने का है। उन्होंने आरोप लगाया कि दोनों विधेयक देश के संघीय ढांचे के साथ भी खिलवाड़ हैं। माकपा सदस्य केके रागेश, तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन, द्रमुक के टी शिवा और कांग्रेस के केसी वेणुगापोल ने दोनों विधेयकों को प्रवर समिति में भेजे जाने का प्रस्ताव पेश किया।
शिरोमणि अकाली दल के नरेश गुजराल ने दोनों विधेयकों को पंजाब के किसानों के खिलाफ बताते हुए उन्हें प्रवर समिति में भेजने की मांग की। उन्होंने कहा कि सरकार को पंजाब और हरियाणा के किसानों के असंतोष पर गौर करना चाहिए तथा वहां जो चिंगारी बन रही है, उसे आग में नहीं बदलने देना चाहिए।
पूर्व प्रधानमंत्री और जेडीएस नेता एचडी देवेगौड़ा ने कहा, सरकार को बताना चाहिए कि जल्दबाजी में और कोरोना के दौरान अध्यादेश क्यों लाए गए।
शिवेसना के संजय राउत ने सवाल किया कि अगर ये विधेयक सुधार के लिए हैं तो पंजाब, हरियाणा के किसान सड़कों पर क्यों हैं? उन्होंने कहा कि पूरे देश में इनका विरोध नहीं हो रहा है। इसका मतलब है कि कुछ भ्रम है?
बसपा के सतीशचंद्र मिश्रा ने कहा कि एमएसपी को नियम या कानून में ही शामिल कर लेते तो विरोध की नौबत ही नहीं आती। सपा के रामगोपाल यादव ने दोनों विधेयक को किसान विरोधी बताते हुए कहा, ‘ऐसा लगता है कि कोई मजबूरी है जिसके कारण सरकार जल्दबाजी में है। दोनों महत्वपूर्ण विधेयक हैं और इन्हें लाने से पहले सरकार को विपक्ष के नेताओं, तमाम किसान संगठनों से बात करनी चाहिए थी।’
राकांपा के प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि सरकार को ये विधेयक लाने के पहले विभिन्न पक्षों से बातचीत करनी चाहिए थी। आप के संजय सिंह ने कहा कि दोनों विधेयक पूरी तरह से किसानों के खिलाफ हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार विभिन्न कानूनों के जरिए राज्यों के अधिकार अपने हाथ में लेना चाहती है।
कांग्रेस के अहमद पटेल ने कहा कि यह सरकार ‘पैकेजिंग, मार्केटिंग और मीडिया को मैनेज’ करने में माहिर है। उन्होंने कहा कि सरकार ने इन विधेयकों की चर्चा करते हुए कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र का जिक्र किया। लेकिन सरकार ने चुनिंदा रूप से ही कांग्रेस के घोषणा पत्र का अध्ययन किया। उसने किसानों के लिए न्याय योजना सहित प्रस्तावित अन्य कार्यक्रमों पर गौर नहीं किया।