आणंद (गुजरात), 16 दिसंबर (एजेंसी)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को कहा कि भले ही रसायन और उर्वरकों ने हरित क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो लेकिन अब खेती को रसायन की प्रयोगशाला से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ने का समय आ गया है और इस दिशा में कृषि से जुड़े प्राचीन ज्ञान को न सिर्फ फिर से सीखने की जरूरत है बल्कि उसे आधुनिक समय के हिसाब से तराशने की भी आवश्यकता है। प्राकृतिक खेती पर यहां आयोजित राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन के समापन सत्र को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने पराली जलाने के मुद्दे पर भी चिंता जताई और कहा कि इससे खेतों की उत्पादकता प्रभावित होती है।
उन्होंने ‘इलाज से परहेज बेहतर’ तात्पर्य वाली एक गुजराती कहावत का उल्लेख करते हुए कहा कि इससे पहले की खेती से जुड़ी समस्याएं भी विकराल हो जाएं, उससे पहले बड़े कदम उठाने का यह सही समय है। उन्होंने कहा, ‘यह सही है कि रसायन और उर्वरक ने हरित क्रांति में अहम रोल निभाया है, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि हमें इसके विकल्पों पर भी साथ ही साथ काम करना होगा और अधिक ध्यान देना होगा। इससे पहले कि खेती से जुड़ी समस्याएं भी विकराल हो जाएं, बड़े कदम उठाने का यह सही समय है। हमें अपनी खेती को कैमिस्ट्री की लैब से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ना ही होगा। जब मैं प्रकृति की प्रयोगशाला की बात करता हूं तो ये पूरी तरह से विज्ञान आधारित ही है।’
मोदी ने किसानों से प्राकृतिक खेती को अपनाने का आह्वान किया और कहा कि इस दिशा में नए सिरे से शोध करने होंगे और प्राचीन ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक सांचे में ढालना होगा।
जन आंदोलन बनायें सभी राज्य
प्रधानमंत्री ने सभी राज्यों से प्राकृतिक खेती को जन आंदोलन बनाने का आह्वान किया और कहा कि आत्मनिर्भर भारत तब ही बन सकता है जब उसकी कृषि आत्मनिर्भर बने, एक-एक किसान आत्मनिर्भर बने। और ऐसा तभी हो सकता है जब अप्राकृतिक खाद और दवाइयों के बदले, मिट्टी का संवर्धन, गोबर-धन से व प्राकृतिक तत्वों से करें। केंद्रीय गृह व सहकारिता मंत्री अमित शाह ने भी इस सम्मेलन को संबोधित किया।