ट्रिब्यून न्यूज सर्विस
चंडीगढ़, 3 फरवरी
हरियाणा में ‘शहरों की सरकार’ बड़ी दुविधा में है। निकायों – नगर निगमों, नगर परिषदों व नगर पालिकाओं में मेयर व चेयरमैन के कार्यकाल पर हमेशा ही तलवार लटकी रहेगी। भाजपा-जेजेपी गठबंधन सरकार द्वारा कानून में बदलाव के बाद डायरेक्ट चुनाव के बाद भी चुने गए मेयर और चेयरमैन एक साल के बाद ही हट सकेंगे। अहम बात यह है कि इनका चुनाव तो शहर की जनता करेगी लेकिन हटाने का अधिकार पार्षदों को ही दे दिया है।
चुने गए मेयर व चेयरमैन सरकार के इस फैसले के खिलाफ हो गए हैं। अंदरखाने उन्होंने बैठकें भी करनी शुरू कर दी हैं। मामला मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर तक भी पहुंचेगा। इसके लिए पूरा ड्रॉफ्ट तैयार हो रहा है। वहीं प्रदेश के शहरी स्थानीय निकाय मंत्री इस पूरे सिस्टम से ही संतुष्ट नहीं हैं। वे तो निकायों में डायरेक्ट चुनाव करवाए जाने के ही पक्षधर नहीं हैं। ऐसे में अगर चुने हुए प्रतिनिधियों के साथ विज भी आवाज बुलंद कर सकते हैं।
खट्टर सरकार ने पहले कार्यकाल में निगमों में मेयर के डायरेक्ट चुनाव करवाने का निर्णय लिया। इसके बाद यमुनानगर, करनाल, पानीपत, रोहतक व हिसार में पहली बार सीधे चुनाव हुए। पांचों निगमों में मेयर का चुनाव भाजपा ने जीता। इसके बाद सरकार ने नगर परिषद में चेयरमैन और नगर पालिका में अध्यक्ष के चुनाव भी सीधे करवाने के लिए कानून में बदलाव किया। हालिया तीन निगमों –पंचकूला, अंबाला सिटी व सोनीपत, रेवाड़ी नगर परिषद तथा सांपला, उकलाना व धारूहेड़ा नगर पालिका में अध्यक्ष के चुनाव भी सीधे हुए। इन चुनावों से पहले ही सरकार ने कानून में संशोधन करके तय किया कि डायरेक्ट इलेक्शन में चुने गए मेयर व चेयरमैन के खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकेगा। संबंधित निकाय के चुने हुए पार्षद ही मेयर/चेयरमैन को हटाने के लिए 1 साल के बाद अविश्वास प्रस्ताव ला सकेंगे। ऐसे में अगर मेयर या चेयरमैन की कुर्सी जाती है तो फिर उन्हें घर ही जाना हो। चूंकि एक बार मेयर से हटने के बाद वे पार्षद भी नहीं रहेंगे। इसके बाद मेयर या चेयरमैन के लिए नये सिरे से चुनाव होगा।
काम नहीं कर सकेंगे मेयर व चेयरमैन
सीधे चुने गए मेयर व चेयरमैन की दलील है कि सरकार के इस फैसले के बाद उन पर हमेशा दबाव बना रहेगा। वे शहर में विकास करवा ही नहीं सकेंगे। पार्षदों द्वारा उन्हें ‘दबाया’ भी जाएगा और ‘ब्लैकमेल’ भी किया जाएगा। उनकी दलील है कि जिस तरह से सांसद और विधायक सीधे जनता चुनती है, उसी तरह से उनका भी डायरेक्ट चुनाव होता है। पार्षदों की उनके चुनाव में कोई भूमिका ही नहीं है तो फिर सरकार ने उन्हें हटाने के अधिकार पार्षदों को क्यों दिए।
विज कमेटी का ही था फैसला
निकायों के चुनावों को लेकर खट्टर सरकार ने पहले कार्यकाल में अनिल विज की अध्यक्षता में कैबिनेट सब-कमेटी का गठन किया था। कमेटी में उस समय की निकाय मंत्री कविता जैन व बड़खल विधायक सीमा त्रिखा बतौर सदस्य शामिल थीं। विज कमेटी की सिफारिशों पर ही निगमों में मेयर के सीधे चुनाव करवाने का निर्णय लिया गया था।
क्या कहते हैं विज
शहरी स्थानीय निकाय मंत्री अनिल विज ने कहा कि निगमों में मेयर तथा परिषद व पालिका में चेयरमैन के खिलाफ एक साल के बाद अविश्वास प्रस्ताव आ सकेगा। हाल ही में सरकार ने कानून में संशोधन करके यह प्रावधान किया है। उन्होंने कहा कि मैं तो शुरू से ही डायरेक्ट चुनाव के खिलाफ रहा हूं। बहरहाल, इस मामले में कुछ नहीं कहा जा सकता। अभी तो फैसला हुआ है। आगे अगर जरूरत हुई तो कानून में संशोधन भी किया जा सकता है।