नयी दिल्ली, 25 जुलाई (एजेंसी)कोरोना वायरस महामारी के चलते लंबे समय से बंद रहने की वजह से देश भर के ज्यादातर निजी स्कूलों के राजस्व में 20-50 फीसदी की गिरावट आयी है जिससे उनमें से कुछ स्कूलों ने शिक्षकों के वेतन में कटौती की है। भारत में गुणवत्तापूर्ण स्कूल शिक्षा पर काम कर रहे एनजीओ सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन (सीएसएफ) की एक नयी रिपोर्ट में यह जानकारी दी गयी है। यह रिपोर्ट एक अध्ययन पर आधारित है जिसमें 20 राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों के 1,100 से अधिक अभिभावक, स्कूल प्रशासक और शिक्षक शामिल हुए। 55 प्रतिशत से अधिक स्कूलों ने कहा कि इस अकादमिक वर्ष में नए दाखिलों में भारी कमी आयी। गैर अल्पसंख्यक निजी स्कूलों को 25 प्रतिशत शिक्षा का अधिकार कोटा के तहत राज्य सरकार द्वारा चयनित छात्रों को नि:शुल्क दाखिला देना होता है। नि:शुल्क दाखिले के बदले में राज्य निर्धारित राशि का अग्रिम भुगतान करता है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘ज्यादातर स्कूलों के राजस्व में 20-50 फीसदी की कमी आयी है लेकिन खर्च पहले जितना ही बना हुआ है जिसके चलते पहले की तरह स्कूल का संचालन मुश्किल हो गया है। अभिभावकों के नियमित तौर पर फीस न देने के कारण स्कूलों के राजस्व में कमी आयी है। शहरी स्कूलों में यह ज्यादा है। 55 प्रतिशत स्कूलों ने सुझाव दिया कि इस अकादमिक वर्ष में नए दाखिलों की संख्या में भारी कमी आयी है।” कम से कम 77 प्रतिशत स्कूलों ने कहा कि वे कोविड-19 के दौरान स्कूलों की वित्तीय मदद के लिए कर्ज नहीं लेना चाहते और केवल तीन प्रतिशत ने ही सफलतापूर्वक कर्ज लिया जबकि पांच फीसदी अपने कर्ज को मंजूरी दिए जाने का इंतजार कर रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान निजी स्कूलों के कम से कम 55 प्रतिशत शिक्षकों के वेतन में कटौती हुई। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘कम फीस वाले स्कूलों ने 65 प्रतिशत शिक्षकों का वेतन रोक रखा है जबकि अधिक फीस वाले स्कूलों ने 37 प्रतिशत शिक्षकों का वेतन रोक रखा है। कम से कम 54 प्रतिशत शिक्षकों की आय का कोई अन्य स्रोत नहीं है, जबकि 30 प्रतिशत शिक्षक ट्यूशन पढ़ा रहे हैं।” वहीं, कम से कम 70 प्रतिशत अभिभावकों ने कहा कि स्कूल की फीस पहले जैसी ही है और केवल 50 प्रतिशत अभिभावक ही फीस दे रहे हैं जो स्कूलों के राजस्व में कमी का संकेत है।