अजय बनर्जी/ट्रिन्यू
नयी दिल्ली, 7 सितंबर
अपने रक्षा दिवस (6 सितंबर) के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम में पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने भारत के खिलाफ मई-जुलाई 1999 के कारगिल युद्ध को याद किया और कहा कि उनके देशवासी स्वतंत्रता के महत्व को समझते हैं।
बेशक कारगिल में पाकिस्तानी सेना की भूमिका का पहले भी उल्लेख हुआ है, लेकिन अब युद्ध के 25 साल बाद इसका जिक्र तब हो रहा है जब नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर उसने सेना की अधिक तैनाती की है। जनरल मुनीर ने कहा, ‘पाकिस्तान बहादुरों का देश है जो स्वतंत्रता के महत्व और इसके लिए कुर्बानी को समझता है। चाहे 1948 की बात हो, 1965, 1971 या 1999 का कारगिल युद्ध, हजारों सैनिकों ने देश और इस्लाम के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।’
भारतीय मीडिया में चला- पड़ोसी की स्वीकारोक्ति
मुनीर के बयान के तुरंत बाद कई भारतीय सोशल मीडिया हैंडल ने दावा किया कि यह पाकिस्तान द्वारा कारगिल में अपनी सेना के शामिल होने की पहली स्वीकारोक्ति है। हालांकि ऐसा पहले भी हो चुका है। असल में कारगिल युद्ध के 11 साल बाद 2010 में पाकिस्तान की सेना ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया और 1999 के संघर्ष में मारे गए 453 सैनिकों और अधिकारियों के नाम बताए। उसने सिलसिलेवार कई और बातों का भी जिक्र किया। उल्लेखनीय है कि युद्ध के बीच में भी, भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को उनके झंडे में लिपटे ताबूतों में शव सौंपे थे। पाकिस्तान ने पहले तो शवों को लेने से इनकार कर दिया, लेकिन बाद में उसने कुछ शव ले लिए।
मुशर्रफ ने किताब में किया था जिक्र
कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान के सेना प्रमुख रहे जनरल परवेज मुशर्रफ ने 2006 में ‘इन लाइन ऑफ फायर’ नामक पुस्तक लिखी थी। पुस्तक में उन्होंने लिखा, ‘कारगिल एक बार का ऑपरेशन नहीं था, बल्कि नियंत्रण रेखा पर भारत और पाकिस्तान द्वारा सामरिक स्तर पर किए गए कदमों और जवाबी कार्रवाई की शृंखला का एक रूप था।’ यह पुस्तक मुशर्रफ के पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहते हुए प्रकाशित हुई थी, जिससे यह पहली स्वीकृति बन गई थी।