ज्ञान ठाकुर
निज संवाददाता
शिमला, 1 मई
हिमाचल प्रदेश की वादियों में जल्द ही केरल के विश्व प्रसिद्ध मसालों की महक घुलेगी। केरल के इडुक्की जिले के मैलाडुपारा में स्थित भारतीय इलायची अनुसंधान संस्थान हिमाचल में मसालों की खेती को बढ़ावा देने के लिए आगे आया है। इसके लिए संस्थान की ओर से ऊना में संस्थान का एक केंद्र खोला गया है। ये केन्द्र हिमाचल में इलायची सहित स्कंदमूल की श्रेणी में आने वाले मसालों की खेती की संभावनाओं का पता लगा रहा है।
भारतीय इलायची अनुसंधान संस्थान के निदेशक डा. धनप्पा ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ कार्यक्रम के तहत केरल भ्रमण पर गए पत्रकारों के एक दल से विशेष बातचीत में कहा कि छोटी और बड़ी इलायची गर्म इलाके में पैदा होने वाला मसाला है और हिमाचल के वह इलाके इसके लिए उपयुक्त है जहां का तापमान 30 से 40 डिग्री के बीच रहता है। इसके लिए ऊना, कांगड़ा, हमीरपुर, बिलासपुर, मंडी, सोलन और सिरमौर जिला के कई हिस्से उपयुक्त हो सकते हैं।
उन्होंने बताया कि भारत दुनिया भर में छोटी और बड़ी इलायची के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है। हालांकि अब ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु में आ रहे परिवर्तन से उत्पादन भी प्रभावित हुआ है। भारत में पैदा होने वाली छोटी व बड़ी इलायची का 70 प्रतिशत हिस्सा भारत में ही घरेलू स्तर पर उपयोग होता है। यही कारण है कि दुनिया में इलायची उत्पादन में दूसरे स्थान पर होने के बावजूद भारत विश्व को अधिक मात्रा में इलायची निर्यात नहीं करता।
भारतीय इलायची अनुसंधान संस्थान मैलाडुपारा में छोटी इलायची पर बीते लगभग अढ़ाई दशक से अनुसंधान कर रहे विशेषज्ञ डा. सदानायिका के अनुसार जलवायु में बहुत तेजी से परिवर्तन आ रहा है और तापमान में ठंडक कम होती जा रही है। ऐसे में इलायची सहित अन्य मसालों पर कीट-पतंगों के हमले बढ़े हैं और इससे किसानों की समस्याएं भी बढ़ी हैं।
जैविक मसालों की मांग बढ़ी
देश व दुनिया में रासायनिक खेती से जिस तरह से लोग दूरियां बना रहे हैं उसी तरह से मसालों के क्षेत्र में भी जैविक मसालों का प्रचलन बढ़ा है। भारतीय इलायची अनुसंधान संस्थान द्वारा करवाए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार जैविक मसालों की पैदावार में निरंतरता है और इन मसालों की बाजार में काफी मांग बढ़ गई है।