दिनेश भारद्वाज
ट्रिब्यून न्यूज सर्विस
चंडीगढ़, 25 अगस्त
हरियाणा की ग्राम पंचायतों में सरपंचों की ‘मनमर्जी’ नहीं चलेगी। चुने गये पंचों को बेशक सरपंच को हटाने का अधिकार नहीं है, लेकिन अब गांव के वोटर ही सरपंच को कुर्सी से उतार सकेंगे। प्रदेश की भाजपा-जेजेपी गठबंधन सरकार ‘राइट-टू-रिकॉल’ कानून लाने की तैयारी में है। विकास एवं पंचायत विभाग इसका बिल ड्रॉफ्ट तैयार कर चुका है। इसी मानसून सत्र में इस विधेयक को पास करवाने की कोशिश है। अगले साल फरवरी में प्रस्तावित पंचायती राज संस्थाओं–ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों व जिला परिषदों पर यह कानून लागू होगा। माना जा रहा है कि ग्राम पंचायतों में यह फैसला लागू और सफल रहने के बाद सरकार निकायों में भी इसी तरह राइट-टू-रिकॉल कानून लागू कर सकती है।
कई राज्यों में है कानून
मध्य प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक के अलावा दक्षिण भारत के कई राज्यों में यह कानून है। हरियाणा में कर्नाटक की तर्ज पर कानून बनाया जा रहा है। राजस्थान में भी कानून बना हुआ है, लेकिन यहां चुने हुए पंच ही सरपंच के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकते हैं।
हरियाणा में इस तरह करेगा कानून काम
हरियाणा द्वारा बनाए जा रहे कानून में यह अधिकार ग्राम सभा को होगा। गांव के कुल मतदाताओं में ग्राम सभा के 60 प्रतिशत प्रतिनिधि भी अगर सरपंच की कार्यशैली से संतुष्ट नहीं होंगे तो उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकेगा। सरपंची के चुनावों के एक वर्ष बाद यह प्रस्ताव लाया जा सकता है। ग्राम सभा द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के बाद बीडीओ के पास केस जाएगा। ड्रॉफ्ट बिल में सरकार इस तरह के मामलों में बीडीओ स्तर के अधिकारी को ही अधिकार देगी। अविश्वास प्रस्ताव पर बीडीओ द्वारा वोटिंग के लिए तारीख और समय तय किया जाएगा। तय दिन सरपंच के पक्ष व विरोध में मतदान होगा। अगर ग्राम सभा के 60 प्रतिशत वोटर सरपंच के खिलाफ मतदान करेंगे तो अविश्वास प्रस्ताव को सफल माना जाएगा और सरपंच को कुर्सी छोड़नी होगी। राज्य में सरपंचों के चुनाव सीधे होते हैं यानी सरपंच का फैसला संबंधित गांव के वोटर ही करते हैं। ऐसे में उन्हें हटाने का अधिकार भी मतदाताओं को ही मिलेगा। जिला परिषद व पंचायत समिति में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का फैसला जिला पार्षद व पंचायत समिति सदस्यों द्वारा किया जाता है। ऐसे में जिला परिषद के चेयरमैन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का अधिकार जिला पार्षदों के पास ही रहेगा। प्रदेश के शहरी स्थानीय निकायों में भी यह अधिकार चुने हुए वार्ड पार्षदों के पास ही था लेकिन अब नगर निगमों में मेयर के सीधे चुनाव करवाए जाने के बाद पार्षदों के पास अविश्वास मत लाने का अधिकार नहीं है।
यह है ड्रॉफ्ट बिल का प्रारुप
विकास एवं पंचायत विभाग द्वारा तैयार किए गए ड्रॉफ्ट बिल में स्पष्ट किया गया है कि अगर गांव के लोग सरपंच को बदलना चाहते हैं तो कुल मतदाताओं में से 33 प्रतिशत मतदाताओं को इकट्टे होकर ग्राम सभा की बैठक बुलानी होगी। 33 प्रतिशत मतदाताओं द्वारा बुलाई गई इस ग्राम सभा की बैठक में अगर 60 प्रतिशत वोटर सरपंच के खिलाफ वोटिंग करेंगे तो सरपंच को कुर्सी से हाथ धोना पड़ेगा।
क्या कहते हैं डिप्टी सीएम
डिप्टी सीएम, दुष्यंत सिंह चौटाला ने कहा है कि चौ़ देवीलाल ने यह सपना देखा था। वे चाहते थे कि अगर जनप्रतिनिधि जनता का विश्वास खो दे तो उसे वापस बुलाने का अधिकार जनता को ही मिलना चाहिए। हरियाणा सरकार ग्राम पंचायतों के लिए यह कानून लागू करेगी। विधानसभा के मानसून सत्र में ही इससे जुड़ा बिल पेश किया जाएगा। इस फैसले से सरपंचों की जनता के प्रति जवाबदेही बढ़ेगी। गांवों में होने वाले विकास कार्यों में पारदर्शिता भी इससे बढ़ेगी।