नयी दिल्ली, 18 अगस्त (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने लैंगिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए बुधवार को पात्र महिलाओं को राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) में प्रवेश के लिए 5 सितंबर को होने वाली परीक्षा में शामिल होने की अनुमति दे दी। न्यायालय ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को इस आदेश के मद्देनजर अधिसूचना जारी करने और इसका उचित प्रचार करने का भी निर्देश दिया। हालांकि, परीक्षा का परिणाम याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन होगा। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने कुश कालरा की याचिका पर यह अंतरिम आदेश दिया। इस याचिका में ‘राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और नौसेना अकादमी परीक्षा’ में योग्य महिला उम्मीदवारों को शामिल होने और एनडीए में प्रशिक्षण की अनुमति देने का अनुरोध किया गया है। सुनवाई के दौरान कालरा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता चिन्मय प्रदीप शर्मा ने कहा कि उन्हें मंगलवार को केंद्र का जवाबी हलफनामा मिला है। इस हलफनामे में सरकार ने कहा है कि यह विशुद्ध रूप से नीतिगत फैसला है और अदालत को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा कि सेना और नौसेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने से संबंधित फैसले के बाद यह अब निराधार है, हमें यह बेतुका लग रहा है। अदालत ने कहा, ‘क्या न्यायिक आदेश पारित होने के बाद ही सेना कार्यवाही करेगी? यदि आप ऐसा चाहते हैं, तो फिर हम आदेश पारित करेंगे।’ भाटी ने कहा कि सेना ने कई महिलाओं को स्थायी कमीशन दिया है। इस पर पीठ ने कहा, ‘आपने इसका (स्थायी कमीशन) विरोध तब तक किया था, जब तक कि इस अदालत द्वारा आदेश पारित नहीं किया गया। आपने खुद से कुछ नहीं किया। नौसेना और वायु सेना अधिक आगे आ रही थी, जबकि सेना में किसी तरह का पूर्वाग्रह दिखता है।’
यह भेदभाव का मामला
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल भाटी ने कहा कि सेना में प्रवेश के कई तरीके हैं, जैसे एनडीए, भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) और अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी (ओटीए)। महिलाएं ओटीए और आईएमए के माध्यम से बल में प्रवेश कर सकती हैं। पीठ ने कहा, ‘यह एनडीए के जरिए क्यों नहीं है। क्या सह-शिक्षा में समस्या है?’ भाटी ने कहा कि यह नीतिगत फैसला है कि एनडीए में महिलाओं को अनुमति नहीं है। इस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि यह नीतिगत फैसला लैंगिक भेदभाव पर आधारित है। अगर यह नीतिगत मामला है तो भी सरकार 2 अन्य तरीकों से महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दे रही है, फिर वह तीसरे रास्ते को ना क्यों कहेगी।
मानसिकता बदलने की जरूरत
पीठ ने कहा, ‘यह सिर्फ लैंगिक सिद्धांत का मामला नहीं है, बल्कि यह भेदभाव का मामला है।… मानसिकता बदलने की बात है जो बिल्कुल भी नहीं बदल रही। स्थायी कमीशन की सुनवाई के दौरान भी सरकारी वकील ने सेना को मनाने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी थी। वायु सेना और नौसेना ने अधिक उदार तरीके से काम किया है। सेना में, आप उन्हें 5-5 साल की नौकरी देते रहे और सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक कभी स्थायी कमीशन नहीं दिया। अगर आप महिलाओं को सेना में शामिल कर रहे हैं तो एनडीए में अड़चन क्यों लगाते हैं?’ पीठ ने कहा कि हम प्रतिवादियों (केंद्र) को शीर्ष अदालत के फैसले के मद्देनजर मामले पर रचनात्मक दृष्टिकोण रखने का निर्देश देते हैं।