ले. जनरल एसएस मेहता (से.नि.)
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) नियुक्त करके सरकार ने सेना के अंगों में बहु-प्रतीक्षित एकीकृत प्रक्रिया विकसित करने वाले बदलावों पर अमल किया है, जिससे प्रभावशाली सामरिक निर्देशन, संयुक्त कमान के लिए थिएटर्स की पहचान, दोहराव का खात्मा, संसाधनों का बेहतरीन इस्तेमाल यकीनी बनाने और बृहद राष्ट्रीय शक्ति का स्तर बढ़ाने को आपसी तालमेल में इजाफा हो सकेगा। इस ध्येय की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले यत्नों में उन जरूरी विषयों पर विचार करने की जरूरत है, जिनसे रूपांतर पर फर्क पड़ सकता है।
जैसा कि होना चाहिए और जैसा कि भारत को एक आत्मविश्वासपूर्ण, लोकतांत्रिक, बहु-सांस्कृतिक और आर्थिक एवं सैन्य रूप से शक्तिसंपन्न राष्ट्र की तरह देखा जाता है ndash; वह जिसकी विचारधारा हमारे संविधान में लिखित लोकतंत्र के सिद्धातों के लिए प्रतिबद्ध है और जो विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में दुनिया के अग्रणी देशों में एक है, उसे बहु-ध्रुवीय विश्व में अपनी अलग पहचान वाला देश बनना है,किसी संभावित खतरे से निबटने के लिए व्यावहारिक और आत्मविश्वास पूर्ण क्षमता से लैस एक ऐसी स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय ताकतndash;जो न किसी को दबाए व न ही आधिपत्य बनाए। वास्तव में, बहु-ध्रवीय वैश्विक व्यवस्था हमारे राष्ट्रीय हितों के लिए उपयुक्त होगी और भारत को बतौर एक ध्रुव अपनी जिम्मेवारी निभाने के लिए तैयारी करने की जरूरत है।
हमारे सीमा संबंधी हित उत्तर में पामीर पर्वत शृंखला से लेकर दक्षिण में हिंद महासागर में अफ्रीका के पूर्वी तटों से आगे मलक्का जलडमरू से परे दक्षिण प्रशांत महासागरीय क्षेत्र तक फैले हुए हैं। इस भौगोलिक परिधि के अंदर पैदा होने वाली ऐसी कोई स्थिति, जिससे हमारे वजूद को खतरा बने, तो वह हमारे लिए तत्काल और आगामी मध्यम अवधि के हिसाब से आकलन करने और ध्यान देने की विषयवस्तु है। हमारी भौगोलिक सीमाओं में परमाणु हथियार से लैस वे विरोधी शक्तियां हैं, जिनके बारम्बार कृत्य दर्शाते हैं कि वे अपनी इलाकाई महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए वार्ता की बजाय युद्ध -परोक्ष या अपरोक्ष- का सहारा लेते हैं। उनकी सीमाएं हमारे उत्तर, पूर्व और पश्चिम से सटी हैं।
अब संघर्ष क्षेत्र का दायरा थल-जल-नभ के अलावा अंतरिक्ष तक फैल चुका है और रिवायती तौर-तरीकों से बदल यह संकरित या मिश्रित युद्धक ढंग में तब्दील हो गया है। इसके अलावा, खतरा गतिज या गैर-गतिज क्षेत्र से बन गया है, जिसमें पर्दे के पीछे से नॉन स्टेट तत्वों से गठजोड़ बनाकर आतंकवाद, साइबर-इलेक्ट्रॉनिक और भ्रामक सूचनाएं जैसे हथकंडों से अराजकता फैलाई जाती है। ये सब हमारे लिए अपनी शांति कायम रखने और लड़ाई से पहले युद्ध जीतने की क्षमता को दरपेश खतरों की गहराई और विशालता जानने के संकेतक हैं।
भारत प्रायद्वीप वह सामरिक भूखंड है जिसका प्रसार हिंद महासागर में काफी अंदर तक है। ऐतिहासिक रूप से, उत्तर में पहाड़ रूपी प्राकृतिक सुरक्षा दीवार और यहां से होकर हुए आक्रमणों ने हमारी रणनीतिक सोच को सीमित और थल-केंद्रित कर डाला ndash; यह हिंद महासागर में अंदर तक फैली हमारी तटीय सीमा और द्वीपों के उन बिंदुओं के सामरिक महत्व को गौण करने वाला है, वहां पर जकड़ बनाने से विश्व के व्यस्ततम नौवहनीय आवागमन को घोंटकर आधिपत्य बनाया जा सकता है। हिंद महासागर में, चाहे यह हमारे प्रायद्वीप की पूर्वी दिशा हो या पश्चिमी, आज हमें बड़ी शक्तियों की आपसी होड़ के पैंतरे देखने को मिल रहे हैं, इसका हिंद महासागरीय क्षेत्र को शांतिपूर्ण बनाए रखने पर गंभीर असर है।
सेना की उत्तरी कमान के भौगोलिक कार्यक्षेत्र में चीन और पाकिस्तान की सरहदें और विशेष ध्यान योग्य जम्मू-कश्मीर इलाका आता है। किस्मत से, यहां हमें सामरिक फायदा मिल रहा है, क्योंकि हमारा इलाका ऐसा है जो अंदरूनी आपूर्ति शृंखला से जुड़ा है, जिससे कि कुमुक और अन्य जरूरतों की वस्तुएं जल्द पहुंच सकती हैं, जबकि हमारे विरोधियों को आपूर्ति के लिए दुरूह और लंबी दूरी वाला रास्ता तय करना पड़ता है। शून्य से नीचे तापमान और निम्न ऑक्सीजन स्तर वाली ऊंचाइयों को सुरक्षित बनाने की कुंजी आपूर्ति शृंखला में है और इस लिहाज से हमारे इलाके की भौगोलिकता तमाम मुसीबतों से निबटने में सहायक है। उत्तरी कमान, जिसके तहत एक ओर चिनाब नदी के दक्षिण में अतंर्राष्ट्रीय सीमा के साथ पाकिस्तानी सरहद है तो पूरब में लद्दाख तक फैला इलाका है, यह एक सक्रिय थलीय रणक्षेत्र है। दूसरी सक्रिय सीमारेखा है, पूरब में चीनी सरहद, जोकि वर्तमान में पूर्वी कमान के कार्यक्षेत्र में है। तीसरी पाकिस्तान के साथ लगती अंतर्राष्ट्रीय सीमा है। मौजूदा पश्चिम, दक्षिण पश्चिमी और दक्षिणी कमानों को पश्चिमी थिएटर में रूपांतरित किया जाना चाहिए। तब हमारे उपमहाद्वीप पर बने खतरे का सामना उत्तरी, पूर्वी और पश्चिमी कमान के सम्मिलित रणनीतिक प्रयासों से हो सकेगा।
हालांकि वायु सुरक्षा यकीनी बनाना विशुद्ध रूप से वायुसेना का काम है तथापि वायुसेना के लिए – जो है और जो होना चाहिए- वह है वायु और अंतरिक्ष रूपी बहु-अधिकारक्षेत्र में बढ़त बनाना, इससे सामरिक कार्य के लिए बनाए विशेष बल की क्षमता में भी बढ़ोतरी होगी। यह जरूरत वायुसेना के लिए दो थिएटर्स बनाती है ndash; वायु सुरक्षा और सामरिक वायुक्षेत्र। कई मर्तबा यह दलील दी जाती है कि वायु सुरक्षा देना किसी एक इकाई (सैन्य अंग) की जिम्मेवारी नहीं हो सकती और लगातार यह हो भी नहीं पाएगा। शांतिकाल के दौरान वायु सुरक्षा, जब विमानों की संख्या बढ़ रही हो, तब वह एक इकाई के अंतर्गत हो। लेकिन जब हम रक्षा तंत्र और उत्पादन सुविधाओं पर विचार करने बैठें तो नाजुक बिंदुओं और विषयवस्तु की सूची बहुत लंबी हो जाती है और इसमें वायुसेना के लिए उसकी भौगोलिक स्थिति और सुरक्षा आवरण बनाए रखने वाले व्यवहार्य अवयवों की जरूरत पड़ती है। युद्ध के समय, वायु रक्षा का महत्व बिना शक सभी थिएटर्स के लिए जरूरी है।
इसी स्थिति को भांपते हुए थल सेना अपना अलग वायु रक्षा अंग बनाने में सक्रिय हुई है और स्वतंत्र रूप से काम करने वाली यह इकाई तोपखाने से अलग किए गए हिस्से से बनेगी।
भारत की प्रायद्वीपीय संरचना हमारे नौसेना के कार्यक्षेत्र तय करती है, इसमें पूर्वी और पश्चिमी जलसीमा में पानी के ऊपर और नीचे, विशेष आर्थिक क्षेत्र और द्वीपों की सुरक्षा यकीनी रखना शामिल है। हमारे पूर्वी और पश्चिमी आइलैंड ऐसी सामरिक जगह पर हैं जहां से हम अपने प्रायद्वीप की दोनों दिशाओं से होकर गुजरने वाले नौवहनीय आवागमन को घोंट सकते हैं और यह हमारी सुरक्षा की पहली पंक्ति बन सकती है। लिहाजा हमें अपने मौजूदा और भावी गठजोड़ उनके साथ रखने चाहिए जो सम्मिलित वैश्विक हितार्थ शांतिपूर्ण नौवहनीय वातावरण बनाए रखने के हामी हों।
तय है, उक्त थिएटर्स बनाने का काम कई चरणों में होगा। प्रत्येक थिएटर के लिए वहनयोग्य संसाधनों की जरूरत पड़ेगी, जोकि समय के साथ बनते जाएंगे। फिर भी, नौसेना के लिए कम से कम दो थिएटर्स बनाना जरूरी है।
सभी थिएटर्स का सीडीएस के सीधे नियंत्रण के तहत काम करना आवश्यक है। सेना के तीनों अंगों के प्रमुखोंं की संयुक्त कमेटी के अध्यक्ष के तौर पर सीडीएस इन तीनों को साथ लेकर उन निर्णयों को क्रियान्वित करेगा, जिनपर राजनीतिक नेतृत्व से आए आदेशों पर अंतर-थिएटर अमल की जरूरत है। एक बार यह रणनीतिक व्यवस्था अपनी जगह कायम हो जाए तो सेना के तीनों अंगों के मुखिया संसाधन आवंटन का गतिशील पुनर्गठन करके सुदृढ़ता बनाने या फिर किसी एक थिएटर के बूते से परे बनी स्थिति को संभालने में सीडीएस की मदद करेंगे।
कमान और नियंत्रण बनाने में एकदम जरूरी है सभी सैन्य अंगों के मुख्यालयों के मौजूदा ढांचे में छंटनी करना। भारी संख्या में तैनात और गैरजरूरी सहायक स्टाफ की संख्या में कमी करने का मंतव्य चुस्त और परिणाम देने वाले तैयार-प्रशिक्षित-सुसज्जित स्टाफ बनाना हो।
युद्ध के बदलते स्वरूप के मद्देनजर एकीकृत कमान तले बहु-नियंत्रण क्षमता बनाने की आवश्यकता है। यह हमारी बृहद राष्ट्रीय शक्ति की खड़ग भुजा बनेगी जिसका त्रिआयामी काम होगा : शांति स्थापना, युद्ध से पहले लड़ाई जीतना, चुनौती बनने पर : ‘अंगुलियों से नहीं, घूंसे से लड़कर जीतना’।
लेखक पश्चिमी कमान के कमांडर रहे हैं।