कई बार लगता है कि एकांत ही आत्मालाप का सबसे बढ़िया रास्ता है, ठीक उस पगडंडी की तरह जिस पर लोगों की लगातार आवाजाही होती रहती है। लेकिन असल में वह पगडंडी अकेली होती है। यदि आप गाम घर के पगडंडी को ध्यान से देखेंगे तो उसके एकांत को महसूस कर पाएंगे। यह महसूस करने के भाव को असल में वही समझ सकता है जिसने वह दुपहरी को जिया हो जब खेत का काम समाप्त कर घर को लौटा जाता है। या तब जब खेतों में काम के लिए जाया जाता है। आप जरा इस दृश्य को समझिये- दोपहर में जब खेत का काम लगभग खत्म हो चुका है, धूप मध्यम हो चुकी है, तब चिड़ियों की आवाजें तेज हो गई हैं। इस मौसम में खेत सज-संवर कर तैयार है। तैयार खेत के आल पर गिलहरियों की आवाजाही देखने वाली होती है। चंचल गिलहरियों को देखना असल में आत्मालाप ही है। हम उन्हें देखकर कुछ विचारमंथन में डूबते हैं या कुछ सोचते हैं, यह आत्मालाप ही है।
खेत के आल पर चिड़ियों के बीच गिलहरियों को दौड़ते-भागते देखना किसी योग की तरह है। आपको स्थिर मन से इन जीवों की चंचलता को अनुभव करना होगा। उधर, खेत से इतर आवासीय परिसर में पहाड़ी मैना और नीलकंठ चिड़ियां अपनी आवाज़ों से जुगलबंदी कर रही हैं। आसपास कहीं बच्चे खेल कूद रहे हैं। बिजली के खंबे पर गिलहरियां कूद-फांद रही हैं। आसपास जब इतनी चीजें एक साथ होती दिखती हैं, तब लगता है असल एकांत यही है, जहां हर एक जीव जीने की जुगत में कुछ न कुछ जरूर कर रहा है। सोचिए जरा-सी आहट में तुरंत भागने को आतुर होने वाले ये जीव-जंतु जब कुछ न कुछ कर रहे हों तो जाहिर है यह सब एकांत तो ही है। आत्मालाप ही है।
फूलबारी में सफेद और गुलाबी रंग के गुलाबों पर तितलियां मंडरा रही हैं। इन सबको देखते हुए मन में कोई संगीत बजने लगा है, स्मृति में दिल्ली विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैंपस में किसी साल देखे स्पिक मैके की संगीत संध्या की याद ताज़ा हो चली है। हवा में गुलाबी ठंड का अहसास सरोद वादक अयान अली बंगश के करीब पहुंचा रही है। जीवन संगीत का आलाप ही तो है, हर कोई रियाज़ में लगा है, अपने-अपने एकांत में। सच में एकांत भी सबके अपने-अपने हैं। अपने एकांत की परिभाषा को गढ़िये, समझिये और आत्मालाप कीजिए।
साभार : अनुभव डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम