दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
रोहतक, 20 मई
हार्ट ऑफ जाटलैंड यानी रोहतक संसदीय क्षेत्र में 1952 से अभी तक हुए 19 चुनावों (दो उपचुनाव सहित) में हुड्डा परिवार का दबदबा रहा है। नौ बार हुड्डा परिवार यहां से चुनाव जीता है। अब 20वें चुनाव में दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों – कांग्रेस व भाजपा में सिर-धड़ की बाजी लगी है। आजादी की लड़ाई में अग्रणी रहे इस इलाके में इस बार बड़ी लड़ाई हो रही है। हुड्डा के सामने जहां अपने ‘दुर्ग’ को बचाने की चुनौती है। वहीं सत्तारूढ़ भाजपा इस सीट पर जीत के जरिये विधानसभा चुनावों के लिए अपनी राह आसान करना चाहती है।
बेशक, इसमें भी कोई दो-राय नहीं है कि 2019 के मुकाबले इस बार के चुनावों में राजनीतिक हालात पूरी तरह से बदले हुए हैं। पूर्व सीएम मनोहर लाल के चुनावी रण में आने की वजह से करनाल सीट प्रदेश की सबसे हॉट सीट है। लेकिन रोहतक सीट पर भी पूरे प्रदेश व देश की नजरें लगी हैं। रोहतक भी राज्य की हॉट सीट में शुमार है। 2019 के चुनावों में दीपेंद्र की हार के बाद इस बार कांग्रेस पिछले छह महीने से ग्राउंड पर काम शुरू कर चुकी है। खुद दीपेंद्र और हुड्डा परिवार शहरों में व्यापारियों के अलावा घरों में डोर-टू-डोर प्रचार में जुटे हैं।
हुड्डा ने अपने इस ‘राजनीतिक किले’ की इस बार मजबूत ‘किलेबंदी’ की हुई है। लगातार दस वर्षों तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा खुद भी रोहतक से चार बार सांसद रह चुके हैं। हुड्डा का इस बेल्ट में प्रभाव है। लगातार तीन बार पूर्व डिप्टी पीएम चौ़ देवीलाल को शिकस्त दे चुके हुड्डा पूरी मजबूती और प्लािनंग के साथ लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। नायब सरकार को समर्थन देने वाले छह निर्दलीय विधायकों में से तीन – सोमबीर सांगवान, धर्मपाल गोंदर और रणधीर सिंह गोलन द्वारा कांग्रेस को समर्थन देने के ऐलान का भी चौपालों और हुक्कों पर असर दिख रहा है। इस बार एक राजनीतिक पहलू यह भी है कि पिछले चुनाव में बसपा उम्मीदवार कृष्ण लाल पांचाल ने 38 हजार 364 मत हािसल किए थे। वहीं इस बार बसपा उम्मीदवार रहे राजेश टिटौली दीपेंद्र हुड्डा के समर्थन में अपना नामांकन-पत्र वापस ले चुके हैं। बसपा के वोट बैंक को जीत-हार में निर्णायक माना जा सकता है। दीपेंद्र की मिलनसार छवि भी मतदाताओं को रास आती है। भाजपा भी माइक्रो मैनेजमेंट पर काम कर रही है। शहरों में भाजपा का अच्छा प्रभाव माना जाता है। ऐसे में इस बार भाजपा ने शहरों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों पर भी विशेष वर्किंग की है।
बताते हैं कि संघ की टीम भी अपना काम शुरू कर चुकी है। 2019 के चुनाव में दीपेंद्र की हार में सबसे बड़ा रोल कोसली हलके ने निभाया था। कोसली के प्रभाव को कांग्रेस समय पूर्व भांप चुकी थी। ऐसे में कोसली में इस बार कहीं अधिक काम किया है। जगदीश यादव सहित इस बेल्ट के कई बड़े और प्रभावी अहीर नेताओं को कांग्रेस में शामिल करवाया जा चुका है। कांग्रेस कोसली हलके से हार-जीत के मार्जन को कम से कम करने की कोशिश में जुटी है। वहीं भाजपा की कोशिश है कि कोसली के मार्जन को बढ़ाया जाए ताकि दीपेंद्र हुड्डा को उनके प्रभाव वाले हलकों में मिलने वाली लीड को कवर किया जा सके।
सीट पर ऐसे हैं समीकरण
वर्तमान में ग्राउंड रियल्टी यह है कि कांग्रेस को कोसली, झज्जर शहर, बहादुरगढ़ व रोहतक शहर में और भी अधिक काम करने की जरूरत है। बेशक, पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार कुछ मोर्चों को कांग्रेस ने संभाला भी है। वहीं महम, गढ़ी-सांपला-किलोई, बादली, बेरी व कलानौर हलकों के अलावा झज्जर और बहादुरगढ़ हलके के ग्रामीण एरिया में भाजपा के लिए चुनौतियां बढ़ी हुई नजर आ रही हैं। भाजपा के रणनीतिकार भी इस बात को समझ रहे हैं। इसलिए गांवों में वर्किंग बढ़ाई गई है। नौकरियों के अलावा मोदी व मनोहर सरकार के फैसलों व नीतियों के बारे में लोगों को बताकर उनका भरोसा जीतने की कोशिशें भी हो रही हैं।