पुस्तक : मीडिया का लोकतंत्र लेखक : विनीत कुमार प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 326 मूल्य : रु. 399.
केवल तिवारी
‘हवाबाजी’ और तथ्यात्मक पत्रकारिता की विस्तृत पड़ताल समझने के लिए विनीत कुमार की हालिया प्रकाशित पुस्तक ‘मीडिया का लोकतंत्र’ पढ़ी जानी चाहिए। खासतौर पर इस विषय को पढ़ने, समझने के इच्छुक लोगों को। पत्रकारिता की पारंपरिक परिपाटी ही नहीं, उसके नवीनतम रूप, खासतौर पर सोशल मीडिया पर लेखक ने शोधपरक काम किया है।
वर्ष 2014 के बाद मीडिया और सियासत के बीच के संबंधों की तो विस्तृत वर्णन किताब में किया ही गया है, समाचारों की ‘पैदावार’ और विज्ञापन एजेंसियों की कठपुतली बनते पत्रकारों पर भी तथ्यात्मक जानकारी दी गयी है। जाहिर है जब खबरें उगाई जा रही हों तो जनता या यूं कहें कि संबंधित समाचार को पढ़ने, सुनने या देखने वाले तक ‘आर्गेनिक न्यूज’ कैसे पहुंचेंगी। जनता तक पहुंचने से पहले ही उस खबर को खाद, पानी और रसायन अन्य स्रोतों से मिल चुका होता है। यह अलग बात है कि ऐसा हर खबर के साथ नहीं होता।
अखबार, चैनल से इतर यूट्यूब, ट्विटर (अब एक्स), फेसबुक के जरिये भी कैसे ‘नैरेटिव’ निर्धारित करने का प्रयास किया जाता है और हकीकत से उसका रिश्ता कितना गहरा है, इन सबकी पड़ताल विनीत कुमार ने पूरी तफ्तीश से की है। ‘छोटी-सी खबर’ को ‘व्यापक फलक’ देना, ‘मुद्दे की बात’ को ‘सप्रयास दबाना’ जैसे खेल और कुछ न्यूज चैनल एंकर्स का नाम लेकर लेखक ने बताने की कोशिश की है कि कैसे हवा बनायी जाती है। अनेक खबरों, विज्ञापनों और उनके स्रोतों और डिस्प्ले पर टिप्पणी के साथ-साथ लेखक ने तथ्य, तारीख और तर्क को यथास्थितिपूर्ण रखा है।