राजेंद्र कुमार कनोजिया
बहुत अच्छी और सच्ची
लगती हैं, जब
खिलखिलातीं हैं, बेटियां।
जैसे नदी की कोई लहर
वेग के साथ बहे तो जैसे
संगीत ही फूट पड़े
जीवन का,
जीवन के उत्सव का।
बेटियां डाकिया होती हैं,
ले जाती हैं, एक परिवार के
तमाम संस्कार, पहचान
दूसरे परिवार में।
बेटियां तितलियां होती हैं,
बेरंग माहौल में भर देती हैं
रंग, सुनहरा, धानी,
कत्थई और चंपई
सारे परिवेश में।
बेटियां होती हैं, मेघ की फुहार,
बरसती हैं तो जैसे
बरस रही हो
उम्मीद, आश्वासन
थके असमान से।
बेटियां आशीर्वाद होती हैं,
पिता की, जिस पर सबका
अधिकार होता है।
आशीर्वाद भरा हाथ
हमेशा सबके साथ होता है।
बेटियां मासूम होती हैं,
जैसे सुबह के कच्चे सपने।
बेटियां अासमान होती हैं,
एक घर से दूसरे तक
फैल जाती हैं जैसे
इंद्रधनुष, सात रंगे ख़्वाबों के,
भर देती हैं, घर-आंगन
अपनी ऊर्जा, प्रेम, समर्पण
जीवन में।
बेटियां होती हैं
परिवार में ईश्वर का आशीर्वाद,
घर को घर बनाने की कला
सिर्फ़ बेटियों को आती है।
घर में बेटियां
बड़े नसीब से आती हैं।