मीरा गौतम
राजवंती मान का यात्रा-वृत्तांत ‘थेम्स तरल इतिहास है!’ इतिहास, पुरातत्व और विचारों का असाधारण दस्तावेज़ है, जिसमें लेखिका ने अपनी लंदन यात्रा के अनुभवों को दर्ज़ किया है। थेम्स लंदन के बीच बहने वाली एक नदी है, जिसे टेम्स भी कहा जाता है।
यह यात्रा-वृत्तांत इस तथ्य से परिचित कराता है कि इतिहास, समय का घटनात्मक ब्योरा भर नहीं होता बल्कि इसमें सियासत और समय का हस्तक्षेप निरंतर जारी रहता है। सियासत समय के इतिहास को राजनीति के लैंडस्केप की तरह इस्तेमाल करती है और इतिहास की छायाओं को छद्म में बदलकर रख देती है।
लंदन की लाइब्रेरी और संग्रहालयों को खंगालते हुए, राजवंती मान कई बार वितृष्णा और विक्षोभ से भर उठीं जब उन्होंने अपने देश के गौरवशाली इतिहास को उपेक्षित और बदला हुआ पाया। वे जानती हैं कि वह उस देश की यात्रा कर रही हैं, जिसका उनके देश के साथ शाह-गुलाम का नाता रहा है।
दस खंडों में विभाजित इस पुस्तक के ‘आत्मकथ्य’ में लेखिका ने बताया है कि सन् 2017 के नवम्बर से 2018 की जनवरी के पहले पखवाड़े में की गयी लंदन यात्रा के बिखरे हुए इतिहास को अनुभव करने की ज़रूरत है।
‘देश से विदेश के बीच’ शीर्षक में, दिल्ली से लंदन की 6704 किलोमीटर की इस नौ घन्टों की यात्रा में, लेखिका जिन शहरों के ऊपर से गुज़री हैं, उन शहरों के इतिहास की पोटलियां खोलकर, उन शहरों की सभ्यता, संस्कृति, भूगोल, जलवायु और उनकी ख़ासियत के बारे में बताती हुई, पाठकों से आत्मीय संवाद करती हुई आगे बढ़ती हैं।
‘जिन्ने लाहौर नईं वेख्या’ में लाहौर को बसाने वाले राम के पुत्र लव के साथ कुश द्वारा बसाये गये कसूर का ज़िक्र करते हुए लेखिका जानकारी देती हैं कि लाहौर ने, ‘गजनवियों, गौरियों, तुगलकों और मुगलों’ का शासन झेला। अकबर के नवरत्नों में राजा टोडरमल, महाराजा रणजीत सिंह, गुरु रामदास, गुरु अर्जुनदेव, सन् 1846 में ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन, चौधरी छोटूराम का घर ‘शक्ति भवन’, शहीद भगत सिंह के जन्म-स्थान और टोबा टेकसिंह को याद करती हुई। वह काबुल शहर का विस्तृत ब्योरा देती हैं।
ईरान के फारसी कवि फिरदौसी के ‘शाहनामा’ के ज़िक्र पर लेखिका बताती हैं कि यह ‘एक लम्बी कविता है, जिसे (बुक ऑफ किंग्स) राष्ट्रीय महाकाव्य का सम्मान प्राप्त है।’
‘कैस्पियन सागर–काला सोना’ में लेखिका कैस्पियन सागर से जुड़े भूगोल और इतिहास का परिचय देती हैं। गैस, तेल, स्टर्जन मछली, सामरिक महत्व और पर्यावरण की दृष्टि से यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।
आस्त्राखान और वोल्गाग्राद जैसे रूसी शहरों तथा बर्लिन, स्वास्तिक और नेताजी सुभाष पर भी लेखिका महत्वपूर्ण चर्चा करती हैं। विमान अब नीचे उतर रहा है। लंदन के बीच बहती, भूरी और गंदले पानी से भरी हुई सर्पीली थेम्स लेखिका को सवालों के घेरे में ला खड़ा करती है।
घर तक पहुंचाने वाली परिवहन की सुव्यवस्था से प्रसन्न लेखिका ‘फ्लोरिन कोर्ट’ में, बेटी शिक्षा के घर पहुंचकर, बर्फीली हवाओं की तीखी ठंडक को वात्सल्यमयी ऊष्मा में बदल देती हैं।
गीली सड़कें, असमय बारिश, चार बजे छिप जाता सूरज और चार्ल्स डार्विन के प्रजाति विकास का परिणाम नाना रंग के कबूतर और कच्ची मिट्टी के गायब होते निशान जैसी चीजें उन्हें भारत से अलग दिखीं। पास में लुडगेट हिल पर स्थित ‘सेन्ट पॉल कैथेड्रल चर्च’ यहां की राष्ट्रीय पहचान है, जिसमें चर्चिल और मारग्रेट थैचर के पार्थिव अवशेष रखे गये हैं। यह प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्धों के अन्त में होने वाली शांति सभाओं का भी साक्षी है।
‘इतिहास तो समूचा बोध है!’ में लेखिका ब्रिटेन द्वारा संजोकर रखे गये इतिहास को देखकर प्रभावित हैं और दुःखी इस बात को लेकर हुई हैं कि जिस भारत ने विश्व को इतना कुछ दिया, अब वह सब कहां है?
हमारे यहां समाज, संस्कृति और इतिहास के प्रति इतनी उपेक्षा क्यों है? नालंदा और तक्षशिला के इतिहास को संजोने के लिए कोई राष्ट्रीय संग्रहालय भी नहीं है। आर्य भट्ट, रामानुजन जैसे महान वैज्ञानिक सीमाओं में कैद कर दिये गये हैं।
ब्रिटेन के संग्रहालय में रोमन गणतंत्र और रोमन साम्राज्य के दस्तावेज़ों को देखकर लेखिका कहती हैं कि रोमनों ने ब्रिटेन के लोगों को नहाना-धोना सिखाया। नाखून काटने, सफाई रखने और बीमारियों से दूर रहने के भी ढंग बताए। ब्रिटेनवासियों ने यह इतिहास न मिटाया और न ही छिपाया। तो, कैसे थे ये ब्रिटेन के लोग?
‘नीरो बंसी बजा रहा था’ प्रकरण में नीरो की महत्वाकांक्षा, रोम में आग, सत्ता-लोभ में अपनी माता का वध, कुल तीस साल की आयु में तेरह बरस का शासन और पांच विवाहों का विवरण भी इतिहास में मिलता है। नीरो ने ‘गोल्डन हाउस’ के लिए ज़मीन की इच्छा के चलते रोम में आग ख़ुद लगायी थी और ‘स्वर्ण महल’ (डोमस ओरिया) बनवाया था ।
‘सिटिंग ऑन हिस्ट्री-ब्रिटिश लाइब्रेरी’ में प्रवेश द्वार पर तांबे-पीतल की किताबनुमा कलाकृति, यहां के ऐतिहासिक अभिलेख, श्रवण दस्तावेज, सन् 1663 में प्रकाशित ‘मिस्टर विलियम शेक्सपियर्स कॉमेडीज़; हिस्ट्रीज़ एंड ट्रेजडीज’ की पहली प्रति, जॉन मिल्टन के महाकाव्य ‘पैराडाइज लॉस्ट’ के प्रथम संस्करण की प्रति भी यायावर मान ने देखी है।
अपने स्वर्णिम इतिहास और आंग्ल इतिहास की तुलना में लेखिका लंदन की नयी वास्तुशिल्प में गढ़ी इमारतों, कला दीर्घाओं, संग्रहालयों और कला केन्द्रों में संजोकर रखे गये इतिहास को देखकर कहती हैं, ‘हमने तो इतिहास को कूड़े के डिब्बे में डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। तोड़-मरोड़कर, तोस-मोसकर किनारे फेंक दिया।’
‘चार्ल्स डार्विन के देश में ‘शीर्षक लेखिका द्वारा वर्णित लंदन के ‘प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय’ का पूरा विवरण, चार्ल्स डार्विन की ‘ओरिजन ऑफ स्पीशीज़’, हीरे-जवाहरात की दीर्घा, विशेष तिजोरी में बहुमूल्य धातुओं की वस्तुएं और उनका इतिहास जैसे साक्ष्यों को दर्ज़ करा रहा है।
‘थेम्स तरल इतिहास है!’ वृत्तांत में थेम्स नदी के उद्गम, इतिहास, यातायात के साधन रूप में उसका प्रयोग, शहर की तमाम गंदगी, मानव कंकालों, कारखानों के गंदे पानी को ढोती उसकी सड़ांध और बदबू से बजबजाती इसकी धारा कि संसद की कार्यवाही तक रुक जाए? जैसे तथ्य, इसकी सिसकियों के इतिहास की गवाही देते हैं। चार्ल्स डिकिन्स ने ‘अवर म्यूचुअल फ्रेंड’ में यह ज़िक्र किया है कि कूड़ा बीनने वाला अपनी बेटी के साथ तैरती लाश खींच रहा है ताकि उसकी जेब टटोल सके! यही है थेम्स का तरल इतिहास है!
‘ब्रिटिश संग्रहालय’ के एशिया प्रखंड में गंगा से गुजरात तक फैली सिन्धु घाटी की सभ्यता के उत्खनन से निकली संगृहीत सामग्री शामिल है। महाराजा रणजीत सिंह का स्वर्ण-आसन और छोटे पुत्र दिलीप सिंह की बेटी सोफिया की महीन सोने से कढ़ी साड़ी तक यहां मौजूद है। सोफिया को प्रथम विश्व युद्ध में घायल सिख सैनिकों की देखभाल करने के लिए जाना भी जाता है।
‘नई शलाकाओं की ओर’ में प्लेग जैसी महामारी को झेलने वाले लंदन को कूड़ा-कर्कट, चूहों और नेवलों के जमा होने का भय है। वहां कच्ची ज़मीन इसीलिए नहीं छोड़ी जाती है। स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली ‘राइम्स’ में ब्रिटेन का इतिहास दर्ज़ है, जिसे भारत के अंग्रेजी मीडियम स्कूलों के पाठ्यक्रम में बड़ी शान से पढ़ाया जाना विस्मित करता है।
पुस्तक : थेम्स तरल इतिहास है! लेखिका : राजवंती मान प्रकाशक : रामबाग प्रकाशन, कानपुर (उ.प्र.) पृष्ठ : 144 मूल्य : रु. 350.