ललित शौर्य
नटखट हर्ष बातें बनाने में भी बहुत तेज था। भले वह सबको अपनी बातों से घुमा देता, लेकिन मम्मी, पापा, दादा, दादी सभी का दुलारा था। हर्ष को कविता पढ़ना-बोलना और भाषण देना बहुत पसंद था। वह अपने विद्यालय के हर कार्यक्रम में भाग लेता था। पंद्रह अगस्त को उसने भाषण प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। तैयारी भी कर रहा था। उसे लगता था की पंद्रह अगस्त स्वतंत्रता का दिन है, यह दिन उसे कुछ भी करने की अनुमति देता है। पंद्रह अगस्त के कारण ही वह मनमानी कर सकता है।
चौदह अगस्त को वह स्कूल से घर को जा रहा था। उसने देखा तीन-चार लड़के हाथ में तिरंगा पकड़े बेतरतीब बाइक चला रहे हैं। वे लोग राह चलते लोगों को भी नहीं देख रहे थे। उनके ऐसे बाईक दौड़ाने से लोग बहुत परेशान हो रहे थे, लेकिन हर्ष को लग रहा था यही तो आजादी है। उन लड़को को खुलकर अपनी आजादी व्यक्त करने का यही मौका है। लेकिन साथ चल रहे उसके दादाजी बहुत गुस्सा आ रहा था। वे इन बाकइर्स को देखकर कुछ बड़बड़ा भी रहे थे। हर्ष को दादाजी का व्यवहार कुछ अजीब लग रहा था। घर पहुंचकर हर्ष ने दादाजी से पूछा, ‘आज जब हम स्कूल से आ रहे थे तो आप उन बाईक सवार लड़कों पर गुस्सा क्यों कर रहे थे।’ ‘अरे तुमने उन लड़कों की हरकतें देखी। ऐसा भी भला कोई करता है,’ दादाजी ने कहा। ‘अरे दादाजी कल पंद्रह अगस्त है। स्वतन्त्रता दिवस है। वे तो अपनी आजादी को सेलिब्रेट कर रहे थे। ये उनका अधिकार है। आपने उनके हाथों में तिरंगा नहीं देखा। कितने देशभक्त लग रहे थे,’ हर्ष बोला। ‘तुम उनका समर्थन कर रहे हो। ये अच्छी बात नहीं है हर्ष’ दादाजी ने हल्की नाराजगी जताई। ‘मुझे तो उनमें कोई बुराई नजर नहीं आई। ये उनकी स्वतन्त्रता है।’ हर्ष ने सफाई दी। ‘बेटा इसे स्वतन्त्रता नहीं स्वछंदता कहते हैं। स्वतन्त्रता और स्वछंदता में अतर मालूम है तुम्हें।’ दादाजी ने पूछा।
इसके बाद दादाजी ने स्वच्छंदता और स्वतंत्रता का फर्क बताया। आखिर दूसरों को परेशानी में डालना कैसी स्वतंत्रता। दादाजी की बातों का हर्ष पर असर पड़ने लगा। दादाजी ने समझाया, ‘आजादी बड़े संघर्षों के बाद मिली है। स्वतंत्रता के लिए हजारों देशभक्तों ने अपने प्राण न्योछावर किये हैं। इसे हमें इतना सस्ता नहीं बनाना चाहिए। हमारा संविधान इस तरह की आज्ञा नहीं देता। इसीलिए कायदे और कानून बने हैं। हमारी आजादी वहीं तक सीमित है जहां तक हम दूसरे की स्वतंत्रता में दखल नहीं देते। अगर हमारे व्यवहार और कार्यो से दूसरे व्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में पड़ती है तो ये ठीक नहीं है। हम सड़क पर गाड़ी चलाने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन अनियंत्रित तरीके से गाड़ी चलाकर दूसरों की जान खतरे में डालने को स्वतन्त्र नहीं हैं।’ दादाजी की बातें सुनकर हर्ष कुछ सोचने लगा। उसे भाषण प्रतियोगिता के लिए विषय मिल गया। उसने सोच लिया कि वह स्वतंत्रता और स्वछंदता पर ही बोलेगा।
अगले दिन स्कूल में भाषण प्रतियोगिता में सभी बच्चों ने अपनी बातें रखीं। हर्ष ने स्वतंत्रता पर स्वछंदता का ग्रहण न लगने देने की बात कही। उसने सभी बच्चों से स्वतंत्रता की रक्षा करने का संकल्प लेने को कहा। हर्ष का भाषण सुनकर हॉल में बैठे सभी लोगों ने खूब तालियां बजाईं। कुछ देर बाद भाषण प्रतियोगिता का परिणाम आया। हर्ष को प्रथम स्थान मिला था। उसे स्कूल की तरफ से एक ट्रॉफी मिली। उसने घर जाकर दादाजी को ट्रॉफी देते हुए कहा, ‘आज मैं यह ट्रॉफी आपकी वजह से जीता हूं। मुझे स्वतंत्रता का असल महत्व समझ आ गया है। साथ ही मैं अपने साथियों को भी इसके महत्व को समझाने में सफल रहा।’ दादाजी ने मुस्कुराते हुए हर्ष को गले से लगा लिया।