भोले मन वाले बच्चे-सी,
मस्ती मुझको दे दे,
हाजिर इक हस्ती,
हमदर्दी सारी मुझ से ले ले।
हे दाता! पौधे, पत्ते, फूलों-सा
हंस दूं और गाऊं
धूप, धरा, जल, आसमान-सा,
काम सभी के आऊं।
मैं तो अपने अन्दर बाहर,
खोज रही हूं आशा,
विष से भरी नहीं मांगूं मैं
कोई भी परिभाषा
रंगों का मौसम भी,
मन को, तृप्त किया करता है
सहज, सुयोग ज़िन्दगी का,
अन्तर्मन को भरता है
आसपास या दूर देश तक,
जब भी मैं जा पाऊं
स्नेह, सलिल बांटूं जगती को,
और मस्त हो जाऊं।
द्वेष, घृणा या दर के झगड़े,
क्यों हम को छलते हैं
मेरे मन में तो भावों के,
सपने ही पलते हैं
गली, मोहल्ला, गांव, नगर,
बस घर ही सुख का साथी
औरों से बतियाते, बोलते
योगु स्नेह अपनाती।
योगेश्वर कौर